Thursday, 7 November 2024

आत्मा में स्थित कैसे हों ? --- .

 आत्मा में स्थित कैसे हों ? ---

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गीता में भगवान श्रीकृष्ण, और उपनिषदों के ऋषि बार बार हमें आत्मा में स्थित होने का उपदेश देते हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें निस्त्रैगुण्य, निर्द्वंद्व, नित्यसत्वस्थ, निर्योगक्षेम, और आत्मवान होने का उपदेश देते हैं --
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्‌॥२:४५॥"
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अभी प्रश्न यह है कि हम आत्मवान कैसे ​बनें, यानि आत्मा में स्थित कैसे हों?
इसका स्पष्ट उत्तर देना चाहूँगा कि यह एक गुरु द्वारा सिखाई जाने वाली विद्या है। सिर्फ पुस्तक में पढ़कर आप किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच सकते। आत्मा में स्थित होकर ही आध्यात्म में प्रवेश हो सकता है। कुछ प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान आदि की क्रियाएँ हैं जो हमें आत्मा में स्थित कर सकती हैं। वे सीखने के लिए एक सिद्ध ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय सदगुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है।
इनका थोड़ा-बहुत अभ्यास भी महाभय से हमारी रक्षा करता है --
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥२:४०॥"
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पुनश्च: -----
भगवान श्रीकृष्ण के अमृत वचन जिन्होंने सदा मार्गदर्शन किया ---
"यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्॥६:२६॥"
"सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः॥६:२९॥"
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
अर्थात् --
यह चंचल और अस्थिर मन जिन कारणों से (विषयों में) विचरण करता है, उनसे संयमित करके उसे आत्मा के ही वश में लावे अर्थात् आत्मा में स्थिर करे।।
योगयुक्त अन्त:करण वाला और सर्वत्र समदर्शी योगी आत्मा को सब भूतों में और भूतमात्र को आत्मा में देखता है।।
जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता।।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
०७ नवंबर २०२४

"स्थितप्रज्ञ होकर हम ब्राह्मीस्थिति को प्राप्त हों" --

"स्थितप्रज्ञ होकर हम ब्राह्मीस्थिति को प्राप्त हों" -- यही हमारी आध्यात्मिक साधना है, यही सन्यास है, यही मोक्ष है, यही ब्रह्मनिर्वाण है, और यही परमात्मा की प्राप्ति है ---
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मैं जो लिख रहा हूँ, वह कोई प्रवचन या उपदेश नहीं, मेरी आंतरिक अनुभूतियाँ हैं, जिन्हें व्यक्त करने की मुझे पूर्ण आंतरिक अनुमति और स्वतन्त्रता है।
आत्मा शाश्वत् और अमर है। जिसने किसी भी शरीर में जन्म लिया है, उस शरीर की मृत्यु भी निश्चित है; और मृत्यु के पश्चात् उसका किसी दूसरे शरीर में पुनर्जन्म भी निश्चित है। विभिन्न देहों में हमारा पुनर्जन्म और जीवन का सारा घटनाक्रम --हमारे कर्मफलों के अनुसार होता है। यह शाश्वत सत्य -- सनातन धर्म है, जिससे सारी सृष्टि संचालित हो रही है।
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मनुष्य जीवन पाकर हम बहुत भाग्यशाली हैं, क्योंकि इसी शरीर में हम परमात्मा को उपलब्ध हो सकते हैं। जन्म और मृत्यु के महाभय की चेतना से मुक्त होने के लिए भगवान ने ब्राह्मी-स्थिति की बात की है ---
"विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति॥२:७१॥"
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति॥२:७२॥"
अर्थात् -- जो मनुष्य समस्त भौतिक कामनाओं का परित्याग कर इच्छा-रहित, ममता-रहित और अहंकार-रहित रहता है, वही परम-शांति को प्राप्त कर सकता है।
हे पार्थ! यह आध्यात्मिक जीवन (ब्रह्म की प्राप्ति) का पथ है, जिसे प्राप्त करके मनुष्य कभी मोहित नही होता है, यदि कोई जीवन के अन्तिम समय में भी इस पथ पर स्थित हो जाता है तब भी वह भगवद्प्राप्ति करता है।
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मुझे यह अनुभूत होता है कि यह ब्राह्मी स्थिति केवल उन्हीं को प्राप्त होती है जो स्थितप्रज्ञ हैं, यानि जिनकी प्रज्ञा -- ब्रह्म में स्थिर है। हमारी प्रज्ञा ब्रह्म में स्थिर/स्थित हो, यही हमारी आध्यात्मिक साधना हो।
हम स्थितप्रज्ञ कैसे हों? स्थितप्रज्ञता के लिए हम क्या करें? इसका स्वाध्याय और साधना आप स्वयं करें। इसके लिए क्या क्या आवश्यक है? इसका अनुसंधान भी आप स्वयं करें। जिसको प्यास लगी है वही कुएँ तक जाएगा और वही जलपान करेगा। आपको प्यास नहीं लगी है, यानि अभीप्सा नहीं है तो आध्यात्म आपके लिए नहीं है। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ नवंबर २०२४

हाइफा (इज़राइल) की भारतीय सेना द्वारा मुक्ति ---

इज़राइल की भूमि (फिलिस्तीन) प्रथम विश्व युद्ध तक सल्तनत-ए-उस्मानिया (तुर्की) के आधीन थी। इज़राइल को स्वतन्त्रता २६ वर्षीय कुँवर मेजर दलपत सिंह शेखावत के नेतृत्व में जोधपुर लांसर्स (जोधपुर की सेना) ने तुर्की की सेना को २३ सितंबर १९१८ को हराकर दिलाई थी। इज़राइल इसका अहसान मानता है। उस समय भारत पर अंग्रेजों का राज था, अतः इसका सारा श्रेय अंग्रेजों ने ले लिया।

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लेकिन उस विजय का श्रेय २६ वर्षीय कुँवर मेजर दलपत सिंह शेखावत को जाता है, जिनकी कमांड में जोधपुर की सेना ने तुर्की की सेना को हराया। उस युद्ध में जोधपुर की सेना के करीब नौ सौ राठौड़ सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। मेजर दलपत सिंह भी इस युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए। इस युद्ध ने एक अमर इतिहास लिख डाला, जो आज तक पुरे विश्व में कहीं भी देखने को नहीं मिला था। जोधपुर के वीर राठौड़ सैनिकों ने विजयश्री प्राप्त की और हाइफा पर अधिकार कर के चार सौ साल से भी अधिक पुराने सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) के शासन का अंत कर दिया।
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समाचार सुनने में आ रहे हैं कि वर्तमान में चल रहे युद्ध के पश्चात इज़राइल एक लाख कार्य-कुशल भारतीय हिंदुओं को नौकरी देगा। उनका वेतन अमेरिकी डॉलर में होगा। इज़राइल को निर्माण कार्य, कारखानों और अन्य उद्योगों में काम करने के लिए ऐसे कार्यकुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी जिनकी हमास के प्रति कोई सहानुभूति नहीं हो।
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हाइफा (इज़राइल) के हीरो २६ वर्षीय कुँवर मेजर ठाकुर दलपत सिंह शेखावत का चित्र --- (साभार: विकिपीडिया). (वे देवली के ठाकुर कर्नल हरि सिंह शेखावत के पुत्र थे)