Monday, 24 March 2025

अति संक्षेप और सरलतम भाषा में नवरात्रों का महत्व :---

 अति संक्षेप और सरलतम भाषा में नवरात्रों का महत्व :-

भारतीय संस्कृति में नवरात्रों का एक विशेष महत्व है| यह भारतीय संस्कृति के सर्वाधिक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक उत्सवों में से एक है| इसका ज्ञान प्रत्येक भारतीय को होना चाहिए|
ईश्वर की जगन्माता के रूप में भी साधना भारतीय संस्कृति की विशेषता है| यह पर्व जगन्माता की व भगवान राम की साधना का पर्व है|
जगन्माता का प्राकट्य मुख्यतः तीन रूपों में है - (१)महाकाली (२)महालक्ष्मी (३)महासरस्वती|
नवरात्रों की साधना माँ के उपरोक्त तीन रूपों की प्रीति के लिए है|
(१)महाकाली:- श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को अर्जित करने के लिए चित्त की समस्त विकृतियों को नष्ट
करना आवश्यक है जो महाकाली की साधना द्वारा होता है| महाकाली हमारे भीतर की दुष्ट वृत्तियों का नाश कर देती है| 'महिष' तमोगुण का प्रतीक है| आलस्य, अज्ञान, जड़ता और अविवेक ये सब तमोगुण हैं| महिषासुर वध हमारे भीतर के तमोगुण के विनाश का प्रतीक है| महाकाली का बीजमंत्र 'क्लीम्' है|
(२)महालक्ष्मी:- तैतीरिय उपनिषद में प्रार्थना है कि हमें सांसारिक वैभव तभी प्रदान करना जब हममें सभी सद्गुण पूर्ण रूप से विकसित हो जाएँ| बिना आत्मानुशासन और आत्म-संयम के भौतिक संपदा नष्ट हो जाती है| जीवन का प्राथमिक लक्ष्य है मन पर विजय प्राप्त करना| वेदों का आदेश है -- "अश्माभव परशुर्भव हिरण्यमस्तृताम् भव|" यह तभी संभव है जब चित्त शुद्ध हो| चित्त को शुद्ध करने की प्रक्रिया ही महालक्ष्मी की साधना है| ये हमें चित्त की शुद्धि प्रदान करती हैं| महालक्ष्मी का बीजमंत्र 'ह्रीम्' है|
(३)महासरस्वती:- गीता में भगवान कहते हैं -- 'अपनी आत्मा का ज्ञान ही ज्ञान है, वही मेरी विभूति है, वही मेरी महिमा है|' आत्मज्ञान के सर्वोत्तम रूप की प्राप्ति महासरस्वती की आराधना से होती है| महासरस्वती का बीजमंत्र 'ऐम्' (अईम्) है|
नवार्णमन्त्र महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली से प्रार्थना ही है कि माँ मेरी अज्ञानरुपी ग्रंथि का नाश करो|
जब चित्त की अशुद्धियाँ नष्ट हो जाएँ, हमारा चित्त सद्गुणों से संपन्न हो जाए और आत्मज्ञान की प्राप्ति हो जाए तब चित्त में 'राम' का जन्म होता है| वे जो सब के हृदयों में रमण कर रहे हैं वे ही श्रीराम हैं| राम वह सच्चिदानंद ब्रह्म हैं जिनमें समस्त योगी सदैव रमण करते हैं| राम, ज्ञान के स्वरूप हैं; सीताजी भक्ति हैं| अयोध्या हमारा ह्रदय है|
भगवान राम ने भी शक्ति की उपासना की थी क्योंकि उन्हें समुद्र लांघना था| यह समुद्र अविद्द्या और अविवेक का महासागर है| अपने भीतर के शत्रुओं को नष्ट करने के लिए इसे पार करना ही पड़ेगा|
जय जय माँ, जय जय श्री राम ! सनातन हिंदू धर्म और भारत माता की जय !
२५ मार्च २०१२

हमारी आध्यात्मिक साधना का एकमात्र उद्देश्य सत्य सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण है ---

हमारी आध्यात्मिक साधना का एकमात्र उद्देश्य सत्य सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण, व भारत माता को अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बैठाना है| हमारी आत्मा नित्य मुक्त है| किसी भी तरह के मोक्ष या मुक्ति की हमें आवश्यकता नहीं है| जब तक हमारा संकल्प पूरा नहीं होता हम बार बार इसी धरा पर जन्म लेंगे|

कौन क्या सोचता है क्या कहता है, इस से भी हमें कोई मतलब नहीं है| आज नव संवत्सर पर हम अपने संकल्प को दुहरा रहे हैं| भगवान हमारे हृदय में है और उन की शक्ति हमारे साथ है| भगवान "हैं", यहीं पर "हैं", सर्वत्र "हैं", इसी समय "हैं", हर समय "हैं", वे ही हमारे हृदय में धडक रहे "हैं", वे ही इन नासिकाओं से सांसें ले रहे "हैं", इन पैरों से वे ही चल रहे "हैं", इन हाथों से वे ही हर कार्य कर रहे "हैं", इन आँखों से वे ही देख रहे "हैं", इस मन और बुद्धि से वे ही सोच रहे "हैं", हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व वे ही "हैं"| सारा ब्रह्मांड, सारी सृष्टि वे ही "हैं"| वे परम विराट और अनंत "हैं"| हम तो निमित्त मात्र, उन के एक उपकरण हैं| भगवान स्वयं ही हमें माध्यम बना कर सारा कार्य कर रहे हैं| कर्ता हम नहीं, स्वयं भगवान हैं| सारी महिमा भगवान की है| भगवान ने जहाँ भी रखा है और जो भी दायीत्व दिया है उसे हम नहीं, स्वयं भगवान ही कर रहे हैं| वे ही जगन्माता हैं, वे ही परमपुरुष हैं| हम उन के साथ एक हैं| कोई भेद नहीं है| ॐ ॐ ॐ ||
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ मार्च २०२०

होली की दारुणरात्रि का पूरा आध्यात्मिक लाभ उठाएँ ---

 होली की दारुणरात्रि का पूरा आध्यात्मिक लाभ उठाएँ ---

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इसके लिए तैयारी अभी से करनी होगी| आध्यात्मिक साधना और मंत्र-सिद्धि के लिए चार रात्रियों का बड़ा महत्त्व है| ये हैं --- कालरात्रि (दीपावली), महारात्रि (महाशिवरात्रि), मोहरात्रि (जन्माष्टमी), और दारुणरात्रि (होली)| होली की रात्रि -- दारुणरात्रि है, जो मन्त्र-सिद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ है| इस रात्रि को किया गया ध्यान, जप-तप, भजन --- कई गुणा अधिक फलदायी होता है| दारुणरात्रि को की गयी मंत्र-साधना बहुत महत्वपूर्ण और सिद्धिदायी होती है|
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इस अवसर पर अभी से श्रीमद्भगवद्गीता के आत्मसंयमयोग (छठे अध्याय) का स्वाध्याय आरंभ कर देना चाहिये| आत्म-विस्मृति सब दुःखों का कारण है| इस दारुण-रात्रि को गुरु प्रदत्त विधि से अपने आत्म-स्वरुप यानि सर्वव्यापी परमात्मा का ध्यान करें| इस रात्रि में सुषुम्ना का प्रवाह प्रबल रहता है अतः निष्ठा और भक्ति से साधना करने पर सिद्धि अवश्य मिलेगी|
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इस सुअवसर का सदुपयोग करें और समय इधर उधर नष्ट करने की बजाय आत्मज्ञान ही नहीं बल्कि धर्म और राष्ट्र के अभ्युदय के लिए भी साधना करें| धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए एक विराट आध्यात्मिक ब्रह्मशक्ति के जागरण की हमें आवश्यकता है| यह कार्य हमें ही करना पड़ेगा, इसका कोई विकल्प नहीं है।
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भक्त प्रहलाद की जय !! भगवान नृसिंह की जय !!
ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ मार्च २०२१

भगवान का निरंतर मानसिक स्मरण ही सबसे अच्छा सत्संग है ---

 सत्संग ---

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भगवान का निरंतर मानसिक स्मरण ही सबसे अच्छा सत्संग है। अपने इष्ट देवी/देवता को हर समय अपनी स्मृति में रखो, उन्हें सर्वत्र, व सब में उन्हीं को देख​ते हुए मानसिक रूप से उनका नाम-जप करते रहो। भगवान का स्मरण करते हुए धर्मग्रंथों का स्वाध्याय भी बहुत अच्छा सत्संग है। अच्छे विरक्त तपस्वी महात्माओं का आजकल सत्संग मिलना बहुत दुर्लभ है। इसलिए सबसे अच्छा सत्संग तो भगवान के साथ ही है। भगवान स्वयं ही एकमात्र सत्य, यानि सत्य-नारायण हैं। भगवान का जो भी नाम-रूप हमें पसंद है, उसको सदा अपने चित्त में रखो। इससे अच्छा सत्संग कोई दूसरा नहीं है।
वासनाएँ बहुत अधिक शक्तिशाली हैं, जिनसे हम नहीं लड़ सकते। वासनाओं का प्रतिकार हम निरंतर सत्संग से ही कर सकते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं --
"सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः॥६:२९॥"
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
अर्थात् --
योगयुक्त अन्त:करण वाला और सर्वत्र समदर्शी योगी आत्मा को सब भूतों में और भूतमात्र को आत्मा में देखता है॥
जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता॥
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यह एक ऐसा विषय है जिस पर कितना भी लिखते रहो, लेखनी रुक नहीं सकती। अतः यहीं पर लेखनी को विराम दे रहा हूँ। भगवान का संग ही सबसे अच्छा सत्संग है। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२५ मार्च २०२४

पराशर ऋषि .......

वेदों के अनेक मन्त्रों के दृष्टा और 'पराशर संहिता' के लेखक पराशर मुनि महर्षि वशिष्ठ के पौत्र थे| उनके पिता का नाम था -- शक्ति, और माता का नाम था -- अदृश्यन्ती| कल्माषपाद नाम का एक राजा शक्ति के श्राप से राक्षस हो गया था| राक्षस बनते ही वह शक्ति को चबाकर खा गया| उस समय पराशर अपनी माता के गर्भ में थे| अत्यंत शोकाकुल होकर वशिष्ठ ने बार बार आत्महत्या का प्रयास किया पर हर बार विफल रहे| वशिष्ठ जब आश्रम लौट रहे थे तब पीछे से वेदमंत्र सुनाई दिए| पीछे मुड़कर उन्होंने अपनी पुत्रवधू अदृश्यन्ती को आते देखा जिसने बताया कि उसका गर्भस्थ बालक ही वेदपाठ कर रहा है|

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यह शिशु आगे चलकर पराशर कहलाये| जब वह मातृगर्भ में थे तब वशिष्ठ ने अपने प्राण परासु (पर = त्यागना, असू = प्राण) करना चाहा था इसलिए इस शक्ति के पुत्र बालक का नाम पराशर पड़ा|
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ऋषि पराशर जी ने सब शास्त्रों में पारंगत एक पुत्र की कामना से नर्मदा के तट पर घोर तपस्या की| उन्होंने नर्मदा तट पर एक लाल रंग का शिवलिंग स्थापित किया जिस पर प्राकृतिक रूप से एक त्रिपुंड उभरा हुआ था, और नारायणी गौरी की साधना की जिनके आशीर्वाद से उन्हें सत्यनिष्ठ और सर्वशास्त्रविशारद कृष्णद्वैपायन व्यास नामक पुत्र प्राप्त हुआ| प्राचीन भारत में लोग अपनी हर अभीष्ट की प्राप्ति के लिए तपस्या को ही मूल साधन मानते थे, चाहे वह सांसारिक कामना हो या आध्यात्मिक| पाराशर जैसे महान ऋषि को भी एक महान पुत्र के लिए तपस्या करनी पडी थी| आजकल सारे पुत्र संयोग से ही होते हैं इसीलिए लगता है महान आत्माएं भारत में अवतरित नहीं हो रही हैं|
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ॐ तत्सत् !ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ मार्च २०१६

महान संतान कैसे उत्पन्न होती है? ---

महान संतान कैसे उत्पन्न होती है?

जब स्त्री का अंडाणु और पुरुष का शुक्राणु मिलते हैं तब सूक्ष्म जगत में एक विस्फोट होता है| उस समय पुरुष और स्त्री (विशेष कर के स्त्री) जैसी चेतना में होते हैं, वैसी ही चेतना की आत्मा आकर गर्भस्थ हो जाती है| प्राचीन भारत में गर्भाधान संस्कार होता था| संतान उत्पन्न करने से पूर्व पति और पत्नी दोनों छः माह तक ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और ध्यान साधना द्वारा एक उच्चतर चेतना में चले जाते थे| इसके पश्चात गर्भाधान संस्कार द्वारा वे चाहे जैसी संतान उत्पन्न करते थे| भारत के मनीषियों को यह विधि ज्ञात थी इसीलिए भारत ने प्राचीन काल में महापुरुष ही महापुरुष उत्पन्न किये|
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गर्भाधान के पश्चात भी अनेक संस्कार होते थे| गर्भवती स्त्री को एक पवित्र वातावरण में रखा जाता, जहाँ नित्य वेदपाठ और स्वाध्याय होता था| शिशु के जन्म के पश्चात भी अनेक संस्कार होते थे| वे सारे संस्कार अब लुप्त हो गए हैं| इसीलिए भारत में महान आत्माएं जन्म नहीं ले पा रही हैं| अनेक महान आत्माएं भारत में जन्म लेना चाहती हैं पर उन्हें इसका अवसर नहीं मिल रहा| आप चाहे जैसी संतान उत्पन्न कर सकते हैं, महान से महान आत्मा को जन्म दे सकते हैं|
आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ मार्च २०१६
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पुनश्चः :---- प्राचीन भारत में लोग अपने हर अभीष्ट की प्राप्ति के लिए तपस्या को ही मूल साधन मानते थे, चाहे वह सांसारिक हो या आध्यात्मिक| पाराशर जैसे महान ऋषि ने भी एक महान पुत्र के लिए तपस्या की थी| आजकल की संताने संयोग से ही उत्पन्न हो रही हैं, इसीलिए महान आत्मायें भारत में जन्म नहीं ले रही हैं| ऋषि पराशर जी ने सब शास्त्रों में पारंगत एक पुत्र की कामना से नर्मदा के तट पर घोर तपस्या की थी| जगन्माता के आशीर्वाद से उन्हें सत्यनिष्ठ और सर्वशास्त्रविशारद कृष्णद्वैपायन व्यास नामक पुत्र प्राप्त हुआ|

भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिती पर ही ध्यान दें ---

 हर ओर से ध्यान हटाकर सिर्फ भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिती पर ही ध्यान दें| भगवान "हैं", यहीं पर "हैं", सर्वत्र "हैं", इसी समय "हैं", हर समय "हैं", वे ही मेरे हृदय में धडक रहे "हैं", वे ही इन नासिकाओं से सांसें ले रहे "हैं", इन पैरों से वे ही चल रहे "हैं", इन हाथों से वे ही हर कार्य कर रहे "हैं", इन आँखों से वे ही देख रहे "हैं", इस मन और बुद्धि से वे ही सोच रहे "हैं", हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व वे ही "हैं"| सारा ब्रह्मांड, सारी सृष्टि वे ही "हैं"| वे परम विराट और अनंत "हैं"| हर समय भगवान की उपस्थिती का निरंतर सदा अभ्यास करें|

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यह भाव रखें कि हम तो निमित्त मात्र, भगवान के एक उपकरण हैं, भगवान स्वयं ही हमें माध्यम बना कर सारा कार्य कर रहे हैं| कर्ता हम नहीं, स्वयं भगवान हैं| हम जो भी कार्य करें, वह पूर्ण मनोयोग से, पूरी निष्ठा से करें| अपने काम में किसी भी तरह की कोई कमी न छोड़ें| संसार चाहे हमारी प्रशंसा करे या महिमागान करें, पर सारी महिमा भगवान की है| भगवान ने जहाँ भी रखा है और जो भी दायीत्व दिया है उसे हम नहीं, स्वयं भगवान ही कर रहे हैं|
२४ मार्च २०२०

पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में 1970-71 में जनरल टिक्का खान, जुल्फिकार अली भुट्टो और याहिया खान की सहमति से पाकिस्तानी फौज और जमाते इस्लामी ने मिल कर... 30 लाख बंगाली हिंदुओं को मौत के घाट उतारा था।जिसमें लगभग इतने ही बलात्कार शामिल हैं,अधिकांश बलात्कार पीड़ितों को बलात्कार के बाद निर्ममता से जिबह कर दिया गया।

 बांगलादेश के प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिछले सप्ताह के रहस्योद्घाटन के बाद से दुनिया के सामने एक नई मर्मान्तक तस्वीर को उभारा जाना चाहिए था, मगर प्रेस और मीडिया खामोश है ! पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में 1970-71 में जनरल टिक्का खान, जुल्फिकार अली भुट्टो और याहिया खान की सहमति से पाकिस्तानी फौज और जमाते इस्लामी ने मिल कर... 30 लाख बंगाली हिंदुओं को मौत के घाट उतारा था।जिसमें लगभग इतने ही बलात्कार शामिल हैं,अधिकांश बलात्कार पीड़ितों को बलात्कार के बाद निर्ममता से जिबह कर दिया गया।हिटलर द्वारा 60 लाख यहूदियों की हत्या की घटना के बाद विश्व की यह सबसे बड़ी त्रासदी थी।गुजरात में 2002 की 700 हत्याओं को,जिसमें लगभग 242 हिन्दू थे, को पूरा विश्व जानता है... 30 लाख अभागों को जानने वाले इक्का-दुक्का बचे हैं... क्योकि वह हिन्दू थे...।

एक करोड़ पूर्वी पाकिस्तान से आये,बंगाली हिन्दू शरणार्थियों के धर्म को भारतीयों से ही गोपनीय रखा गया था,अधिकांश लोग समझते रहे कि वह मोमिन होंगे तब आम हिन्दू को पता ही नहीं था कि पूर्वी पाकिस्तान में 30 प्रतिशत आवादी हिंदुओं की थी !
1971 की यह त्रासदी... दबा दी गई, क्योकि 1971 की उस विजय को हाइलाइट करना था,जो बाद में शिमला में पराजय में बदल गयी। २४ मार्च २०२१