परमात्मा से जीवात्मा को, यानि परमात्मा से हमें कौन जोड़ कर रखता है? यह ब्रह्मांड टूट कर बिखरता क्यों नहीं है? किस शक्ति ने ब्रह्मांड को जोड़ कर सुव्यवस्थित रूप से धारण कर रखा है? .
"ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा। शं न इन्द्रो वृहस्पतिः। शं नो विष्णुरुरुक्रमः। ॐ नमो ब्रह्मणे। नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वमेव प्रत्यक्षम् ब्रह्म वदिष्यामि। ॠतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु। तद्वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारम्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
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हमारे शास्त्रों के अनुसार ध्यान-साधना में प्राप्त "आनंद" ही है, जो जीवात्मा को यानि हमें ब्रह्म से जोड़कर एक रखता है। वह आनंद हमारे प्राण-तत्व की अभिव्यक्ति है। ब्रह्म है -- पूर्णत्व, जिसके बारे में श्रुति भगवती कहती है --
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते॥
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
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हमारी भौतिक सृष्टि में Entangled subatomic particles चाहे वे कितनी भी दूर हों, एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। एक अदृश्य शक्ति उन्हें आपस में जोड़ कर रखती है।
यह बात कुछ वर्ष पूर्व जेनेवा स्विट्ज़रलैंड के पास Large Hadron Collider में Unified field theory पर चल रहे प्रयोगों में सिद्ध हुई थी। एक बहुत बड़े भारतीय भौतिक वैज्ञानिक ने बहुत लम्बे समय तक चले प्रयोगों के बाद यह पाया कि जिस तरह Electromagnetism, Gravity और Atomic forces होती हैं, उसी तरह की एक और अति सूक्ष्म Pervasive quantum force होती है जो सारे Subatomic particles को आपस में जोड़ती है। वह Force इतनी सूक्ष्म होती है कि हमारे विचारों से भी प्रभावित होती है। वह force यानि वह शक्ति ही है जो सारे ब्रह्मांड को आपस में जोड़ कर एक रखती है।
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यह खोज जिन वैज्ञानिक ने की उन्होनें बड़ी विनम्रता से अपने नाम पर इस शक्ति का नाम रखने से मना कर दिया, जबकि उन्हें इसका अधिकार था। इस आविष्कार के पश्चात वे एक गहरे ध्यान में चले गए और जब उनकी चेतना लौटी तो इस Conscious universal force का नाम उन्होंने "BLISSONITE" रखा जिसका अर्थ ही होता है -- आनंद की शक्ति।
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एक चुनौतीपूर्ण प्रश्न यह भी रहा है कि quantum particles अपना व्यवहार क्यों बदल देते हैं जब उन्हें observe किया जाता है? यह एक वास्तविकता है जिसका ज्ञान प्राचीन भारत के मनीषियों को था। वे अपने संकल्प से आणविक संरचना को परिवर्तित कर किसी भी भौतिक पदार्थ का बाह्य रूप बदल सकते थे।
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आनंद ने ही हमें परमात्मा से जोड़ रखा है। वह आनंद ही प्राण-तत्व है, जो घनीभूत होकर कुंडलिनी महाशक्ति के रूप में व्यक्त होता है। वह कुंडलिनी महाशक्ति ही परमशिव से मिलकर जीव को शिव के साथ एकाकार कर देती है। वह प्राणतत्व ही पंचप्राणों के द्वारा हमारे शरीर को जीवित रखता है। ये पंचप्राण ही वे गण हैं जिनके अधिपति ओंकार रूप में गणेश जी हैं। इन पंचप्राणों के दस सौम्य, और दस उग्र रूप ही दस महाविद्याएँ हैं।
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किसी भी साधना/उपासना में आनंद की अनुभूति ही परमात्मा की अनुभूति है। आनंद का स्त्रोत प्रेम है। भगवान को हम अपना पूर्ण प्रेम जब देते हैं, तब आनंद की अनुभूति होती है।
भगवान सारे संबंधों से परे भी हैं, और संबंधों में भी हैं। वे माता भी हैं, और पिता भी। सारे ज्ञात-अज्ञात संबंधी, मित्र, शत्रु, और सारे रूप वे ही हैं। वे ही प्रकाश, अंधकार, ज्ञान, अज्ञान, विचार, ऊर्जा, प्रवाह, गति, स्पंदन, आवृतियां, अनंतता, चेतना, प्राण, और विस्तार आदि हैं। जैसा मुझे समझ में आया वैसा ही अपनी सीमित अल्प बुद्धि से लिख दिया। इससे अधिक मुझे कुछ भी नहीं मालूम।
परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को नमन !!
ॐ
तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
५ अप्रेल २०२३