Tuesday, 1 April 2025

समस्त नवविवाहिता व कुआंरी कन्याओं को गणगौर पर्व की शुभ कामनाएँ|

 समस्त नवविवाहिता व कुआंरी कन्याओं को गणगौर पर्व की शुभ कामनाएँ|

यह पर्व बहुत धूमधाम से प्रायः सारे राजस्थान और हरियाणा व मालवा के कुछ भागों में आज चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जा रहा है| इस दिन नवविवाहिताएँ अपने वैवाहिक जीवन की सफलता, और कुंआरी कन्याएँ अच्छे पति की प्राप्ति के लिए गौरी (पार्वती) जी की आराधना करती हैं|
होली के दूसरे दिन से ही यह आराधना आरम्भ हो जाती है और चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलती है|
राजस्थानी प्रवासी चाहे वे कहीं भी हों, इस पर्व को अवश्य मनाते हैं| कल द्वितीया के दिन सिंजारे थे| इस दिन कन्याओं व नव विवाहिताओं को उनके माता पिता व भाई खूब लाड करते हैं, उनकी मन पसंद मिठाइयाँ आदि देते हैं और उनकी हर इच्छा यथासंभव पूरी करते हैं|
आज सायं गणगौर की सवारी राजस्थान के प्रायः प्रत्येक नगर में बहुत धूमधाम से निकलेगी|
पुनश्चः समस्त मातृशक्ति को शुभ कामनाएँ|
२ अप्रैल २०१४

"रामनवमी" पर सभी का अभिनंदन, बधाई व शुभ कामनायें.

 "रामनवमी" पर सभी का अभिनंदन, बधाई व शुभ कामनायें.

भगवान श्रीराम का ध्यान, उपासना व निज जीवन में उनका अवतरण/प्राकट्य ही भारतवर्ष की रक्षा और सत्य सनातन धर्म का पुनरोत्थान व वेश्वीकरण कर सकेगा| हम सब के हृदय में भगवाम श्रीराम का निरंतर जन्म हो, हम सब उन के हनुमान बनें, तभी हम स्वयं की और समाज व राष्ट्र की रक्षा कर पायेंगे|
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पुनि दसकंठ क्रुद्ध होइ छाँड़ी सक्ति प्रचंड। चली बिभीषन सन्मुख मनहुँ काल कर दंड॥
आवत देखि सक्ति अति घोरा। प्रनतारति भंजन पन मोरा॥
तुरत बिभीषन पाछें मेला। सन्मुख राम सहेउ सोइ सेला॥
लागि सक्ति मुरुछा कछु भई। प्रभु कृत खेल सुरन्ह बिकलई॥
देखि बिभीषन प्रभु श्रम पायो। गहि कर गदा क्रुद्ध होइ धायो॥
रे कुभाग्य सठ मंद कुबुद्धे। तैं सुर नर मुनि नाग बिरुद्धे॥
सादर सिव कहुँ सीस चढ़ाए। एक एक के कोटिन्ह पाए॥
तेहि कारन खल अब लगि बाँच्यो। अब तव कालु सीस पर नाच्यो॥
राम बिमुख सठ चहसि संपदा। अस कहि हनेसि माझ उर गदा॥
उर माझ गदा प्रहार घोर कठोर लागत महि पर्‌यो।
दस बदन सोनित स्रवत पुनि संभारि धायो रिस भर्‌यो॥
द्वौ भिरे अतिबल मल्लजुद्ध बिरुद्ध एकु एकहि हनै।
रघुबीर बल दर्पित बिभीषनु घालि नहिं ता कहुँ गनै॥
उमा बिभीषनु रावनहि सन्मुख चितव कि काउ। सो अब भिरत काल ज्यों श्री रघुबीर प्रभाउ॥
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रावण ने क्रोधित होकर प्रचण्ड शक्ति छोड़ी। वह विभीषण के सामने ऐसी चली जैसे काल (यमराज) का दण्ड हो॥
अत्यंत भयानक शक्ति को आती देख और यह विचार कर कि मेरा प्रण शरणागत के दुःख का नाश करना है, श्री रामजी ने तुरंत ही विभीषण को पीछे कर लिया और सामने होकर वह शक्ति स्वयं सह ली॥
शक्ति लगने से उन्हें कुछ मूर्छा हो गई। प्रभु ने तो यह लीला की, पर देवताओं को व्याकुलता हुई। प्रभु को श्रम (शारीरिक कष्ट) प्राप्त हुआ देखकर विभीषण क्रोधित हो हाथ में गदा लेकर दौड़े॥
(और बोले-) अरे अभागे! मूर्ख, नीच दुर्बुद्धि! तूने देवता, मनुष्य, मुनि, नाग सभी से विरोध किया। तूने आदर सहित शिवजी को सिर चढ़ाए। इसी से एक-एक के बदले में करोड़ों पाए॥
उसी कारण से अरे दुष्ट! तू अब तक बचा है, (किन्तु) अब काल तेरे सिर पर नाच रहा है। अरे मूर्ख! तू राम विमुख होकर सम्पत्ति (सुख) चाहता है? ऐसा कहकर विभीषण ने रावण की छाती के बीचों-बीच गदा मारी॥
बीच छाती में कठोर गदा की घोर और कठिन चोट लगते ही वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसके दसों मुखों से रुधिर बहने लगा, वह अपने को फिर संभालकर क्रोध में भरा हुआ दौड़ा। दोनों अत्यंत बलवान्‌ योद्धा भिड़ गए और मल्लयुद्ध में एक-दूसरे के विरुद्ध होकर मारने लगे। श्री रघुवीर के बल से गर्वित विभीषण उसको (रावण जैसे जगद्विजयी योद्धा को) पासंग के बराबर भी नहीं समझते।
(शिवजी कहते हैं-) हे उमा! विभीषण क्या कभी रावण के सामने आँख उठाकर भी देख सकता था? परन्तु अब वही काल के समान उससे भिड़ रहा है। यह श्री रघुवीर का ही प्रभाव है॥)
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इस संसार में जैसी कुटिलता भरी पड़ी है, उस से मेरा मन भर गया है| अब यहाँ और रहने की इच्छा नहीं है, परमात्मा का साथ ही सर्वश्रेष्ठ है|
परमशिव का ध्यान ही हिमालय से भी बड़ी-बड़ी मेरी कमियों को दूर करेगा| मुझ अकिंचन में अदम्य भयहीन साहस व निरंतर अध्यवसाय की भावना शून्य है| मुझे लगता है कि आध्यात्म के नाम पर मैं अकर्मण्य बन गया हूँ और अपनी कमियों को बड़े बड़े सिद्धांतों के आवरण से ढक लिया है| शरणागति के भ्रम में अपने "अच्युत" स्वरूप को भूलकर "च्युत" हो गया हूँ| जैसा प्रमाद मुझ में छा गया है वह मेरे लिए मृत्यु है ... "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि"|
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हे परात्पर गुरु, आपके उपदेश मेरे जीवन में निरंतर परिलक्षित हों, आपकी पूर्णता और अनंतता ही मेरा जीवन हो, कहीं कोई भेद न हो| सब बंधनों व पाशों से मुझे मुक्त कर मेरी रक्षा करो| इन सब पाशों से मुझे इसी क्षण मुक्त करो| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ अप्रेल २०२०

हम लोग पश्चिमी प्रचार-तंत्र से प्रभावित हैं ---

 हम लोग पश्चिमी प्रचार-तंत्र से प्रभावित हैं। भारत की बिकी हुई टीवी समाचार मीडिया वही समाचार दिखा रही है, जैसा उसको अमेरिकी गुप्तचर संस्था CIA द्वारा निर्देशित किया जा रहा है। दो दिन पहले ही रूस ने घोषणा कर दी थी कि युद्ध का उसका पहला लक्ष्य पूरा हो गया है। अब दूसरा लक्ष्य भी वे शीघ्र ही प्राप्त कर लेंगे। कुछ महत्वपूर्ण बाते हैं ---

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(१) युद्ध के आरंभ होते ही उकराइन की वायुसेना और नौसेना को रूस ने पंगु कर के निष्क्रिय कर दिया था। आज तक उकराइन की वायुसेना के एक भी विमान ने युद्ध में भाग नहीं लिया है। इसी तरह उकराइन की नौसेना भी निष्क्रिय कर दी गई थी, और कुछ भी करने में असमर्थ है।
(२) उकराइन की ओर से लड़ने में वहाँ की नियमित थलसेना के वरिष्ठ अधिकारियों की कोई रुचि नहीं है। वे सब रूस द्वारा प्रशिक्षित हैं। उनको पता है कि वर्तमान युद्ध का एकमात्र कारण NATO द्वारा रूस की घेराबन्दी करने में उकराइन का दुरुपयोग है।
(३) उकराइन की ओर से -- अमेरिका द्वारा गठित नात्सी विचारधारा की अवैध "अजोव बटालियन", और विभिन्न देशों में NATO द्वारा प्रशिक्षित भाड़े के सिपाही और आतंकवादी लड़ रहे हैं। उकराइन अपने नागरिकों का ढाल की तरह उपयोग कर रहा है। उनकी महिलाओं और बच्चों को तो शरणार्थी बनाकर पोलेंड में भेज दिया गया है, और पुरुषों को सैनिक वेशभूषा पहिनाकर लड़ने को बाध्य किया जा रहा है।
(४) अजोव बटालियन की स्थापना उकराइनी सेना की एक नयी शाखा के तौर पर तब की गयी थी जब उकराइन के रूसी भाषियों का नरसंहार करने का निर्णय CIA, और उसके द्वारा अवैध तरीके से गठन की गई वर्तमान उकराइनी सरकार ने लिया। उकराइन की सेना एक professional army है, वह नरसंहार नहीं कर सकती। दूसरे देशों से CIA द्वारा प्रशिक्षित आतंकी गुण्डों को बुलाकर नयी बटालियनें बनायी गई थी, वे ही यूक्रेनी सेना के नाम पर लड़ रहे हैं।
(५) अजोव बटालियन ने रूसी भाषी जनसंख्या के दुधमुँहे बच्चों की सामूहिक हत्या की है जिसके प्रमाण रूस के पास हैं। उनमें से कई हत्यारों को पकड़ा गया है, और युद्ध समाप्त होते ही उन पर मुकदमा चलाया जाएगा।
(६) रूसी समाचार मीडिया पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगा दिया गया है। अतः उनका पक्ष कहीं भी नहीं सुना जाता।
(७) रूस ने अब तक क्यिव पर अधिकार करने का प्रयास ही नहीं किया। क्यिव के तीन ओर भयानक दलदल है, जिसे पार करने के पुल उकराइन ने उड़ा दिये थे। अब सिर्फ दक्षिण दिशा से ही क्यिव में प्रवेश किया जा सकता है, जहाँ रूसी सेना अभी तक गई ही नहीं है। एक रणनीति के अंतर्गत क्यिव के पास इरपिन नगर पर रूसी सेना ने अधिकार किया था जिससे लगे कि अगला लक्ष्य क्यिव है। अब अपनी रणनीति के अंतर्गत वहाँ से भी रूसी सेना पीछे हट गई है। उकराइन की सरकार यह झूठा प्रचार कर रही है कि उसकी सेना ने रूस को पीछे खदेड़ दिया है।
(८) अब रूस सिर्फ उन्हीं क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर रहा है जहाँ रूसी-भाषी बहुसंख्यक हैं। जहाँ जहाँ उकराइनी-भाषी बहुसंख्यक हैं, उन क्षेत्रों से रूस पीछे हट रहा है।
(९) अमेरिका झूठे प्रचार द्वारा स्केंडेनेवियन देशों को भी NATO में लाने का प्रयास कर रहा है।
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भारत को अमेरिकी डॉलर की गुलामी से मुक्त हो जाना चाहिए। भारत की राजनीति में और प्रशासन में बहुत सारे अमेरिका-भक्त बैठे हुए हैं जो ऐसा नहीं होने दे रहे हैं। रूस और चीन दोनों ही अमेरिकी डॉलर के विरुद्ध हैं।
इस युद्ध में अमेरिका व NATO के देश हारेंगे। अंततः रूस विजयी होगा। इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
२ अप्रेल २०२२

हमारा यह शरीर ही नहीं, यह समस्त सृष्टि --- ऊर्जा व प्राण का घनीभूत स्पंदन और प्रवाह है ---

हमारा यह शरीर ही नहीं, यह समस्त सृष्टि --- ऊर्जा व प्राण का घनीभूत स्पंदन और प्रवाह है, जिसके पीछे परमात्मा का एक विचार है। हम उस परमात्मा के साथ पुनश्च एक हों, यही इस जीवन का उद्देश्य है। एकमात्र शाश्वत उपलब्धि और महत्व -- कुछ बनने का है, पाने का नहीं। पूर्णतः समर्पित होकर हम अपने मूल स्त्रोत परमात्मा के साथ एक हों, यही शाश्वत उपलब्धि है, जिसका महत्व है। अन्य सब कुछ महत्वहीन और नश्वर है। आध्यात्मिक दृष्टी से हम क्या बनते हैं, महत्व इसी का है, कुछ प्राप्त करने का नहीं। परमात्मा को प्राप्त करने की कामना भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि परमात्मा तो पहले से ही प्राप्त है। अपने अहं को परमात्मा में पूर्णतः समर्पित करने की साधना निरंतर करते रहनी चाहिए। हमारा यह समर्पण हमें परमात्मा में मिलायेगा, कोई अन्य साधन नहीं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२ अप्रेल २०२२

मनसा, वाचा, कर्मणा मैंने कभी किसी का कोई अहित किया हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ---

मनसा, वाचा, कर्मणा मैंने कभी किसी का कोई अहित किया हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। जीवन के हर क्षेत्र में मैंने खूब मनमानी की है। प्राय सभी से मेरा व्यवहार बहुत ही गलत था। भगवान ने तो मुझे क्षमा कर दिया है, आप भी क्षमा कर दीजिए।
सारे संचित और प्रारब्ध कर्मफल भी एक न एक दिन कट ही जाएंगे।
महत्व वर्तमान क्षण का है। निमित्त मात्र रहते हुए भगवान को ही कर्ता बनाओ। जीवन में सब सही होगा। किसी भी तरह की किसी कामना या आकांक्षा का जन्म ही न हो।
जय सियाराम !!
ॐ ॐ ॐ !! २ अप्रेल २०२३

इस समय पूरे विश्व में ज्ञात-अज्ञात रूप से अच्छा-बुरा बहुत कुछ हो रहा है, और बहुत कुछ होने वाला है ---

इसकी झलक भी मुझे दिखाई दे रही है। अनेक नकारात्मक और सकारात्मक शक्तियाँ अपना प्रभाव दिखायेंगी। पूरी समष्टि के साथ हम एक हैं, कोई भी या कुछ भी हम से पृथक नहीं है। अगले तीन वर्षों में आप बहुत कुछ देखोगे, और बहुत कुछ सीखोगे। प्रकृति के निर्देशों का पालन करें जिनकी अब और उपेक्षा नहीं कर सकते।
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आज २१ मार्च को अपना सूर्य इस पृथ्वी की भूमध्य रेखा पर रहेगा, जिस कारण पूरी पृथ्वी पर महाबसंत विषुव (Equinox) होगा, यानि दिन और रात की अवधि लगभग बराबर रहेगी। पृथ्वी अपनी धुरी पर २३½° झुके हुए, सूर्य के चक्कर लगाती है, इस प्रकार वर्ष में एक बार पृथ्वी इस स्थिति में होती है जब वह सूर्य की ओर झुकी रहती है, व एक बार सूर्य से दूसरी ओर झुकी रहती है। वर्ष में दो बार ऐसी स्थिति आती है, जब पृथ्वी का झुकाव न सूर्य की ओर होता है, और न ही सूर्य से दूसरी ओर, बल्कि बीच में होता है। इस स्थिति को विषुव या Equinox कहा जाता है। इन दोनों तिथियों में दिन और रात की लंबाई लगभग बराबर होती है।
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पुराण पुरुष को नमन ---
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् - आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सब को जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप ! आपसे ही सम्पूर्ण संसार व्याप्त है।
आप वायु (अनाहतचक्र), यम (मूलाधारचक्र), अग्नि (मणिपुरचक्र), वरुण (स्वाधिष्ठानचक्र) , चन्द्रमा (विशुद्धिचक्र), प्रजापति (ब्रह्मा) (आज्ञाचक्र), और प्रपितामह (ब्रह्मा के भी कारण) (सहस्त्रारचक्र) हैं; आपके लिए सहस्र बार नमस्कार, नमस्कार है, पुन: आपको बारम्बार नमस्कार, नमस्कार है॥
हे अनन्तसार्मथ्य वाले भगवन्! आपके लिए अग्रत: और पृष्ठत: नमस्कार है, हे सर्वात्मन्! आपको सब ओर से नमस्कार है। आप अमित विक्रमशाली हैं और आप सबको व्याप्त किये हुए हैं, इससे आप सर्वरूप हैं॥
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सब का कल्याण हो, सब का जीवन कृतकृत्य और कृतार्थ हो।
कहीं कोई पृथकता का बोध न रहे। ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
२१ मार्च २०२५

जीसस क्राइस्ट एक काल्पनिक चरित्र हैं, जिनको सेंट पॉल नाम के एक पादरी ने परियोजित किया। जीसस क्राइस्ट की कल्पना सेंट पॉल के दिमाग की उपज थी जो बाद में एक सामाजिक/राजनीतिक व्यवस्था बन गयी

 (निम्न पोस्ट मैंने अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए लिखी है, किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं। सनातन धर्म पर सब आघात करते हैं, व इसे नष्ट करना चाहते हैं। अपने धर्म की रक्षा मेरा दायित्व है। किसी को मेरी पोस्ट अच्छी लगे तो कॉपी/पेस्ट कर के रख लें)।

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(Re-Posted) मुझे बहुत लंबे समय से अनुभूत हो रहा है कि जीसस क्राइस्ट एक काल्पनिक चरित्र हैं, जिनको सेंट पॉल नाम के एक पादरी ने परियोजित किया। जीसस क्राइस्ट की कल्पना सेंट पॉल के दिमाग की उपज थी जो बाद में एक सामाजिक/राजनीतिक व्यवस्था बन गयी। ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं जिनसे किसी को आहत नहीं होना चाहिए| मुझे तो यही अनुभूत होता है कि जीसस क्राइस्ट का कभी जन्म ही नहीं हुआ था, और उनके बारे में लिखी गयी सारी कथाएँ काल्पनिक हैं| उनके जन्म का कोई प्रमाण नहीं है|
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यूरोप के शासकों ने अपने उपनिवेशों व साम्राज्य का विस्तार करने के लिए ईसाईयत का प्रयोग किया| उनकी सेना का अग्रिम अंग चर्च होता था| रोम के सम्राट कांस्टेंटाइन द ग्रेट ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए ईसाईयत का सबसे आक्रामक प्रयोग किया| कांस्टेंटिनोपल यानि कुस्तुन्तुनिया उसी ने बसाया था जो आजकल इस्तांबूल के नाम से जाना जाता है| यूरोप का सब से बड़ा धर्मयुद्ध (ईसाइयों व मुसलमानों के मध्य) वहीं लड़ा गया था| कांस्टेंटाइन द ग्रेट एक सूर्योपासक था इसलिए उसी ने रविवार को छुट्टी की व्यवस्था की| उसी ने यह तय किया कि जीसस क्राइस्ट का जन्म २५ दिसंबर को हुआ, क्योंकी उन दिनों उत्तरी गोलार्ध में सबसे छोटा दिन २४ दिसंबर को होता था, और २५ दिसंबर को सबसे पहिला बड़ा दिन होता था| आश्चर्य की बात यह है कि ईसाई पंथ का यह सबसे बड़ा प्रचारक स्वयं ईसाई नहीं बल्कि एक सूर्योपासक था| अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए उसने ईसाईयत का उपयोग किया| मृत्यु शैय्या पर जब वह मर रहा था तब पादरियों ने बलात् उसका बपतिस्मा कर के उसे ईसाई बना दिया|
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जीसस क्राइस्ट के नाम पर ही युरोपीय साम्राज्य के विस्तार के लिए वेटिकन के आदेश से पुर्तगाल के वास्कोडिगामा को युरोप के पूर्व में, और स्पेन के कोलंबस को युरोप के पश्चिम में भेजा गया था| युरोप से गए ईसाईयों ने ही दोनों अमेरिकी महाद्वीपों के प्रायः सभी करोड़ों मनुष्यों की ह्त्या कर के वहाँ युरोपीय लोगों को बसा दिया| वहां के जो बचे-खुचे मूल निवासी थे उन्हें बड़ी भयानक यातनाएँ देकर ईसाई बना दिया गया| कालान्तर में यही काम ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड में किया गया|
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पुर्तगालियों ने यही काम गोवा में किया| गोवा में यदि कुछ हिन्दू बचे हैं तो वे भगवान की कृपा से ही बचे हैं| अंग्रेजों ने भी चाहा था सभी भारतवासियों की ह्त्या कर यहाँ सिर्फ अंग्रेजों को ही बसा देना| ब्रिटिश सरकार ने इस कार्य के लिए ब्रिगेडियर जनरल जेम्स जॉर्ज स्मिथ नील को नियुक्त किया था। उसने बिहार में, और उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में लाखों भारतीयों की हत्या करवाई थी। उसको २५ सितंबर १८५७ को लखनऊ में क्रांतिकारियों ने मार दिया। अंग्रेजों ने मद्रास के माउंट रोड़ पर उसकी मूर्ति लगवाई, और अंडमान द्वीप समूह में एक द्वीप का नाम उसके नाम पर रखा। ब्रिटिश फील्ड मार्शल हयूग हेनरी रोज जैसे दुर्दांत हत्यारे भी इसी काम के लिए भारत में भेजे गए थे। उसके नाम पर भी अंडमान के एक द्वीप का नाम रखा गया, जो वहाँ का मुख्यालय था। भगवान की यह भारत पर कृपा थी कि अंग्रेजों को इस कार्य में सफलता नहीं मिली|
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अंग्रेजों ने जब देखा कि वे सारे भारतियों को नहीं मार सकेंगे तो उन्होने भारत की शिक्षा व्यवस्था को ही नष्ट कर दिया। भारत में लाखों गुरुकुल थे, वे बंद करवा दिये गए, संस्कृत भाषा के प्रयोग पर प्रतिबंध लगवा दिया, और अङ्ग्रेज़ी पढ़ाई आरंभ करवाई व सरकारी स्कूलों में हिन्दू धर्म की पढ़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया जो आज तक चालू है।
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मुस्लिम शासकों ने अत्याचार करना ईसाईयों से ही सीखा| ईसाइयों ने इतिहास में जितने अत्याचार और छल-कपट किया है, उतना तो ज्ञात इतिहास में किसी ने भी नहीं किया है। सार की बात यह है कि जीसस क्राइस्ट की कल्पना एक राजनीतिक उद्देश्य के लिए की गई थी, जिसका उद्देश्य युरोपीय साम्राज्य का विस्तार था।
२३ मार्च २०१९
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पुनश्च: --- यह सन १४९२ ई.की बात है| एक बार पुर्तगाल और स्पेन में लूट के माल को लेकर झगड़ा हो गया| दोनों ही देश दुर्दांत समुद्री डाकुओं के देश थे जिनका मुख्य काम ही समुद्रों में लूटपाट और ह्त्या करना होता था| दोनों ही देश कट्टर रोमन कैथोलोक ईसाई थे अतः मामला वेटिकन में उस समय के छठवें पोप के पास पहुँचा| लूट के माल का एक हिस्सा पोप के पास भी आता था| अतः पोप ने सुलह कराने के लिए एक फ़ॉर्मूला खोज निकाला और एक आदेश जारी कर दिया| ७ जून १४९४ को "Treaty of Tordesillas" के अंतर्गत इन्होने पृथ्वी को दो भागों में इस तरह बाँट लिया कि यूरोप से पश्चिमी भाग को स्पेन लूटेगा और पूर्वी भाग को पुर्तगाल|
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वास्कोडिगामा एक लुच्चा लफंगा बदमाश हत्यारा और समुद्री डाकू मात्र था, कोई वीर नाविक नहीं| अपने धर्मगुरु की आज्ञानुसार वह भारत को लूटने के उद्देश्य से आया था| कहते हैं कि उसने भारत की खोज की| भारत तो उसके बाप-दादों और उसके देश पुर्तगाल के अस्तित्व में आने से भी पहिले अस्तित्व में था| वर्तमान में तो पुर्तगाल कंगाल और दिवालिया होने की कगार पर है जब कि कभी लूटमार करते करते आधी पृथ्वी का मालिक हो गया था|
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ऐसे ही स्पेन का भी एक लुटेरा बदमाश हत्यारा डाकू था जिसका नाम कोलंबस था| अपने धर्मगुरु की आज्ञानुसार कोलंबस गया था अमेरिका को लूटने के लिए और वास्कोडीगामा आया था भारतवर्ष को लूटने के लिए| कोलंबस अमेरिका पहुंचा तब वहाँ की जनसंख्या दस करोड़ से ऊपर थी| कोलम्बस के पीछे पीछे स्पेन की डाकू सेना भी वहाँ पहुँच गयी| उन डाकुओं ने निर्दयता से वहाँ के दस करोड़ लोगों की ह्त्या कर दी और उनका धन लूट कर यूरोपियन लोगों को वहाँ बसा दिया| वहाँ के मूल निवासी जो करोड़ों में थे, वे कुछ हजार की संख्या में ही जीवित बचे| यूरोप इस तरह अमीर हो गया|
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कितनी दुष्ट राक्षसी सोच वाले वे लोग थे जो उन्होंने मान लिया कि सारा विश्व हमारा है जिसे लूट लो| कोलंबस सन १४९२ ई.में अमरीका पहुँचा, और सन १४९८ ई.में वास्कोडीगामा भारत पहुंचा| ये दोनों ही व्यक्ति नराधम थे, कोई महान नहीं जैसा कि हमें पढ़ाया जाता है|

स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा है, इसलिए लिखने का कार्य बंद है ---

 स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा है, इसलिए लिखने का कार्य बंद है। कम से कम दस दिन तक पूर्ण विश्राम करूंगा। हम और हमारे प्रभु एक हैं। अब चाहे सारा ब्रह्मांड टूट कर बिखर जाये, जब तक भगवान की स्वीकृति न हो, तब तक हमें न तो कुछ हो सकता है, और न ही कोई हमारा कुछ बिगाड़ सकता है।

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पूर्व जन्मों में मुक्ति के उपाय नहीं किए, और कोई विशेष अच्छे कर्म नहीं किए, इसलिये इस जीवन में अधर्म का साक्षी बनना पड़ा। लेकिन मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है, न ही किसी की निंदा और आलोचना के लिए मेरे पास कुछ है। यह सृष्टि भगवान की है, मेरी नहीं। इसे अपने नियमों के अनुसार भगवान की प्रकृति चला रही है।
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सभी का मंगल हो॥ ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२४ मार्च २०२५

मैं स्वस्थ रहूँ या अस्वस्थ, कोई अंतर नहीं पड़ता; शांत रूप से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किये बिना नहीं रह सकता ---

 ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः'॥

ॐ वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
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मैं स्वस्थ रहूँ या अस्वस्थ, कोई अंतर नहीं पड़ता। शांत रूप से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किये बिना नहीं रह सकता। यही मेरा जीवन है। अपनी चेतना को सम्पूर्ण सृष्टि में फैलाकर, यानि सम्पूर्ण सृष्टि को अपनी चेतना में लेकर मेरे माध्यम से भगवान स्वयं ही, अपनी साधना करते हैं। मैं तो निमित्त साक्षीमात्र ही रहता हूँ। जब तक जीवित हूँ, तब तक हर साँस से शांत रूप से भगवान की भक्ति का ही प्रचार-प्रसार होगा।
"ॐ सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे। तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:॥"
ॐ तत्सत् ॥ ॐ ॐ ॐ ॥
कृपा शंकर
२६ मार्च २०२५

"ॐ नमःशिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे ---

"ॐ नमःशिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे।

शिवस्य हृदयं विष्णु: विष्णोश्च हृदयं शिव:॥"
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मनुष्य की बुद्धि परमात्मा की ऊंची से ऊंची परिकल्पना जो कर सकती है, वह शिव और विष्णु की है। तत्व रूप में दोनों एक हैं। शिव ही विष्णु हैं, और विष्णु ही शिव हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के पुरुषोत्तम वासुदेव भी वे हैं, रामायण के राम भी वे हैं, और वेदान्त के ब्रह्म भी वे ही हैं। अपनी उच्चतम ऊर्ध्वस्थ चेतना में उनके विराटतम सर्वव्यापी ज्योतिर्मय रूप का ध्यान ही हमें करना चाहिये, जहां कोई भेद नहीं है।
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"भक्ति" -- भगवान से एक स्वाभाविक अनुराग और परमप्रेम को भक्ति कहते हैं, जिसके साथ साथ भगवान को उपलब्ध होने की एक स्वाभाविक अभीप्सा भी हो। बिना अभीप्सा के कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं हो सकती। भक्ति की पूर्णता शरणागति और समर्पण में है।
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"साधना" के लिए आसन, मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान आवश्यक है। साथ साथ दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन भी हो। मन में उठने वाले बुरे विचार और दुष्वृत्तियों से मुक्त होने का अभ्यास भी करते रहना पड़ता है।
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ध्यान हमेशा परमात्मा के अनंत ज्योतिर्मय ब्रह्मरूप और नाद का होता है। हम बह्म-तत्व में विचरण और स्वयं का समर्पण करें, -- यही आध्यात्मिक साधना है। परमात्मा के प्रति परमप्रेम और शरणागति/समर्पण का भाव हो तो साधना का मार्ग सरल हो जाता है।
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भगवान हम से पृथक नहीं हैं। हमें स्वयं को ही ईश्वर बनना पड़ता है। भगवान हमारे ही माध्यम से स्वयं को व्यक्त करते हैं। वे आकाश से उतर कर, या किसी अन्य विश्व से आने वाले कोई नहीं हैं। परमात्मा की अनुभूति में हम सब तरह की सीमितताओं से मुक्त होकर, असीम आनंद और असीम प्रेम (भक्ति) से भर जाते हैं। यह असीम प्रेम (भक्ति) और असीम आनंद ही आत्म-साक्षात्कार है, यही भगवत्-प्राप्ति है। यही हमारे जीवन का उद्देश्य है।
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"सम्पूर्ण भारत से असत्य के अंधकार का नाश हो। भारत के सभी नागरिक अति उच्च शिक्षित, कर्तव्यनिष्ठ व सत्यधर्मावलम्बी हों। सम्पूर्ण भारत में कहीं पर भी अधर्म का अवशेष न रहे।" इस वर्ष-प्रतिपदा पर भगवान श्रीराम से हमारी यही प्रार्थना है। रामराज्य की स्थापना भारत में निश्चित रूप से होगी। भगवान श्रीराम ही भारत की रक्षा करेंगे। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
३० मार्च २०२५
सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ।
ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत्
कृपा शंकर
१ अप्रेल २०२५