(निम्न पोस्ट मैंने अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए लिखी है, किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं। सनातन धर्म पर सब आघात करते हैं, व इसे नष्ट करना चाहते हैं। अपने धर्म की रक्षा मेरा दायित्व है। किसी को मेरी पोस्ट अच्छी लगे तो कॉपी/पेस्ट कर के रख लें)।
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(Re-Posted) मुझे बहुत लंबे समय से अनुभूत हो रहा है कि जीसस क्राइस्ट एक काल्पनिक चरित्र हैं, जिनको सेंट पॉल नाम के एक पादरी ने परियोजित किया। जीसस क्राइस्ट की कल्पना सेंट पॉल के
दिमाग की उपज थी जो बाद में एक सामाजिक/राजनीतिक व्यवस्था बन गयी। ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं जिनसे किसी को आहत नहीं होना चाहिए| मुझे तो यही अनुभूत होता है कि जीसस क्राइस्ट का कभी जन्म ही नहीं हुआ था, और उनके बारे में लिखी गयी सारी कथाएँ काल्पनिक हैं| उनके जन्म का कोई प्रमाण नहीं है|
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यूरोप के शासकों ने अपने उपनिवेशों व साम्राज्य का विस्तार करने के लिए ईसाईयत का प्रयोग किया| उनकी सेना का अग्रिम अंग चर्च होता था| रोम के सम्राट कांस्टेंटाइन द ग्रेट ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए ईसाईयत का सबसे आक्रामक प्रयोग किया| कांस्टेंटिनोपल यानि कुस्तुन्तुनिया उसी ने बसाया था जो आजकल इस्तांबूल के नाम से जाना जाता है| यूरोप का सब से बड़ा धर्मयुद्ध (ईसाइयों व मुसलमानों के मध्य) वहीं लड़ा गया था| कांस्टेंटाइन द ग्रेट एक सूर्योपासक था इसलिए उसी ने रविवार को छुट्टी की व्यवस्था की| उसी ने यह तय किया कि जीसस क्राइस्ट का जन्म २५ दिसंबर को हुआ, क्योंकी उन दिनों उत्तरी गोलार्ध में सबसे छोटा दिन २४ दिसंबर को होता था, और २५ दिसंबर को सबसे पहिला बड़ा दिन होता था| आश्चर्य की बात यह है कि ईसाई पंथ का यह सबसे बड़ा प्रचारक स्वयं ईसाई नहीं बल्कि एक सूर्योपासक था| अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए उसने ईसाईयत का उपयोग किया| मृत्यु शैय्या पर जब वह मर रहा था तब पादरियों ने बलात् उसका बपतिस्मा कर के उसे ईसाई बना दिया|
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जीसस क्राइस्ट के नाम पर ही युरोपीय साम्राज्य के विस्तार के लिए वेटिकन के आदेश से पुर्तगाल के वास्कोडिगामा को युरोप के पूर्व में, और स्पेन के कोलंबस को युरोप के पश्चिम में भेजा गया था| युरोप से गए ईसाईयों ने ही दोनों अमेरिकी महाद्वीपों के प्रायः सभी करोड़ों मनुष्यों की ह्त्या कर के वहाँ युरोपीय लोगों को बसा दिया| वहां के जो बचे-खुचे मूल निवासी थे उन्हें बड़ी भयानक यातनाएँ देकर ईसाई बना दिया गया| कालान्तर में यही काम ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड में किया गया|
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पुर्तगालियों ने यही काम गोवा में किया| गोवा में यदि कुछ हिन्दू बचे हैं तो वे भगवान की कृपा से ही बचे हैं| अंग्रेजों ने भी चाहा था सभी भारतवासियों की ह्त्या कर यहाँ सिर्फ अंग्रेजों को ही बसा देना| ब्रिटिश सरकार ने इस कार्य के लिए ब्रिगेडियर जनरल जेम्स जॉर्ज स्मिथ नील को नियुक्त किया था। उसने बिहार में, और उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में लाखों भारतीयों की हत्या करवाई थी। उसको २५ सितंबर १८५७ को लखनऊ में क्रांतिकारियों ने मार दिया। अंग्रेजों ने मद्रास के माउंट रोड़ पर उसकी मूर्ति लगवाई, और अंडमान द्वीप समूह में एक द्वीप का नाम उसके नाम पर रखा। ब्रिटिश फील्ड मार्शल हयूग हेनरी रोज जैसे दुर्दांत हत्यारे भी इसी काम के लिए भारत में भेजे गए थे। उसके नाम पर भी अंडमान के एक द्वीप का नाम रखा गया, जो वहाँ का मुख्यालय था। भगवान की यह भारत पर कृपा थी कि अंग्रेजों को इस कार्य में सफलता नहीं मिली|
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अंग्रेजों ने जब देखा कि वे सारे भारतियों को नहीं मार सकेंगे तो उन्होने भारत की शिक्षा व्यवस्था को ही नष्ट कर दिया। भारत में लाखों गुरुकुल थे, वे बंद करवा दिये गए, संस्कृत भाषा के प्रयोग पर प्रतिबंध लगवा दिया, और अङ्ग्रेज़ी पढ़ाई आरंभ करवाई व सरकारी स्कूलों में हिन्दू धर्म की पढ़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया जो आज तक चालू है।
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मुस्लिम शासकों ने अत्याचार करना ईसाईयों से ही सीखा| ईसाइयों ने इतिहास में जितने अत्याचार और छल-कपट किया है, उतना तो ज्ञात इतिहास में किसी ने भी नहीं किया है। सार की बात यह है कि जीसस क्राइस्ट की कल्पना एक राजनीतिक उद्देश्य के लिए की गई थी, जिसका उद्देश्य युरोपीय साम्राज्य का विस्तार था।
२३ मार्च २०१९
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पुनश्च: --- यह सन १४९२ ई.की बात है| एक बार पुर्तगाल और स्पेन में लूट के माल को लेकर झगड़ा हो गया| दोनों ही देश दुर्दांत समुद्री डाकुओं के देश थे जिनका मुख्य काम ही समुद्रों में लूटपाट और ह्त्या करना होता था| दोनों ही देश कट्टर रोमन कैथोलोक ईसाई थे अतः मामला वेटिकन में उस समय के छठवें पोप के पास पहुँचा| लूट के माल का एक हिस्सा पोप के पास भी आता था| अतः पोप ने सुलह कराने के लिए एक फ़ॉर्मूला खोज निकाला और एक आदेश जारी कर दिया| ७ जून १४९४ को "Treaty of Tordesillas" के अंतर्गत इन्होने पृथ्वी को दो भागों में इस तरह बाँट लिया कि यूरोप से पश्चिमी भाग को स्पेन लूटेगा और पूर्वी भाग को पुर्तगाल|
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वास्कोडिगामा एक लुच्चा लफंगा बदमाश हत्यारा और समुद्री डाकू मात्र था, कोई वीर नाविक नहीं| अपने धर्मगुरु की आज्ञानुसार वह भारत को लूटने के उद्देश्य से आया था| कहते हैं कि उसने भारत की खोज की| भारत तो उसके बाप-दादों और उसके देश पुर्तगाल के अस्तित्व में आने से भी पहिले अस्तित्व में था| वर्तमान में तो पुर्तगाल कंगाल और दिवालिया होने की कगार पर है जब कि कभी लूटमार करते करते आधी पृथ्वी का मालिक हो गया था|
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ऐसे ही स्पेन का भी एक लुटेरा बदमाश हत्यारा डाकू था जिसका नाम कोलंबस था| अपने धर्मगुरु की आज्ञानुसार कोलंबस गया था अमेरिका को लूटने के लिए और वास्कोडीगामा आया था भारतवर्ष को लूटने के लिए| कोलंबस अमेरिका पहुंचा तब वहाँ की जनसंख्या दस करोड़ से ऊपर थी| कोलम्बस के पीछे पीछे स्पेन की डाकू सेना भी वहाँ पहुँच गयी| उन डाकुओं ने निर्दयता से वहाँ के दस करोड़ लोगों की ह्त्या कर दी और उनका धन लूट कर यूरोपियन लोगों को वहाँ बसा दिया| वहाँ के मूल निवासी जो करोड़ों में थे, वे कुछ हजार की संख्या में ही जीवित बचे| यूरोप इस तरह अमीर हो गया|
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कितनी दुष्ट राक्षसी सोच वाले वे लोग थे जो उन्होंने मान लिया कि सारा विश्व हमारा है जिसे लूट लो| कोलंबस सन १४९२ ई.में अमरीका पहुँचा, और सन १४९८ ई.में वास्कोडीगामा भारत पहुंचा| ये दोनों ही व्यक्ति नराधम थे, कोई महान नहीं जैसा कि हमें पढ़ाया जाता है|