Monday, 11 November 2024

अपने घर में यदि एक अलग कमरे की व्यवस्था न हो सके तो एक अलग कोने को अपने लिए आरक्षित कर लो ---

 अपने घर में यदि एक अलग कमरे की व्यवस्था न हो सके तो एक अलग कोने को अपने लिए आरक्षित कर लो। उस स्थान का उपयोग केवल अपनी साधना के लिए ही करो। वहीं बैठ कर अपना भजन/साधन नित्य करो। धीरे-धीरे वह स्थान जागृत हो जायेगा। जब भी वहाँ बैठोगे तो पाओगे कि आपकी चेतना भगवान से जुड़ गई है।

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आपके आसन ने जितना स्थान घेर रखा है वह आपका राज्य है। वहाँ से आकाश में जितनी ऊंचाई तक आपकी कल्पना जाती है, वह आपका साम्राज्य है। आपके साम्राज्य को आपसे कोई नहीं छीन सकता। आप वहाँ के चक्रवर्ती सम्राट हो। अपने साम्राज्य में भगवान को निमंत्रित करो, और अपना सारा साम्राज्य, और स्वयं को उन्हें समर्पित कर दो। आगे की ज़िम्मेदारी उनकी है, आपकी नहीं। .
जीवन के इस संध्याकाल में अब कहीं भी जाने, या चला कर किसी से भी मिलने की कोई कामना नहीं रही है। भगवान अपनी इच्छा से कहीं भी ले जाये या किसी से भी मिला दे, उसकी मर्जी, पर मेरी स्वयं की कोई इच्छा नहीं है। जीवन से पूर्ण संतुष्टि और ह्रदय में पूर्ण तृप्ति है, कोई असंतोष नहीं है।
जहां तक आध्यात्म का सम्बन्ध है, कण मात्र भी कोई संशय या शंका नहीं है। इस अति अल्प और अति सीमित बुद्धि में समा सकने योग्य गहन से गहन आध्यात्मिक रहस्य भी रहस्य नहीं रहे है। सब कुछ स्पष्ट है। परमात्मा की पूर्ण कृपा है। कहीं कोई कमी नहीं है। भगवान ने मुझे अपना निमित्त बनाया यह उनकी पूर्ण कृपा है। सारी साधना वे ही कर रहे हैं, साक्षी भी वे ही हैं, साध्य साधक और साधना भी वे ही हैं। मुझे करने योग्य कुछ भी नहीं है, सब कुछ वे ही कर रहे हैं।
आप सब महान आत्माओं को नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ शिव! ॐ ॐ ॐ!!
कृपा शंकर
११ नवम्बर २०२४

भगवान से मेरा संबंध व्यक्तिगत है, मैं उन्हें कैसे भी पुकारूँ, यह मेरा निजी मामला है ---

भगवान के अनेक नाम हैं, जिनमें से कुछ हैं -- "हरिः", "दुःखतस्कर", और "चोरजारशिखामणी" आदि। इन सब का एक ही अर्थ होता है - "चोर"। वे अपने भक्तों के दुःखों, कष्टों और अभावों की इतनी चुपचाप चोरी कर लेते हैं कि भक्त को पता ही नहीं चलता। मुझे पता नहीं था कि भगवान डाका भी डालते हैं। भगवान ने मुझे भी नहीं छोड़ा, आज सुबह सुबह बहुत बड़ा डाका डाल दिया, और चोरी भी कर ली।

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आज प्रातःकाल भगवान का ध्यान कर रहा था, कि भगवान ने मेरे हृदय पर ही डाका डाल दिया, मुझे और मेरा सामान उठाकर बाहर फेंक दिया। साथ में वहाँ जमा हुआ सारा कचरा भी साफ कर के स्वयं वहाँ विराजमान हो गए।
मैंने कहा - भगवन् अब मैं कहा जाऊँ? मैं बहुत ही असहाय और धनहीन हूँ, मेरा कोई अन्य आश्रय नहीं है। भगवान ने कहा - "तुम मेरे हृदय में रहो।"
अब से मेरा धन, मेरा आश्रय, एकमात्र संबंधी और मित्र सिर्फ भगवान ही हैं। जीवन के अंत समय तक उन्हीं का रहूँगा। वे ही मेरे तीर्थ हैं, वे ही मेरे आश्रम हैं, और वे ही मेरी एकमात्र गति हैं।
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ये सब भाव-जगत की बातें हैं, जिन्हें भगवान के प्रेमी ही समझ सकते हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
११ नवंबर २०२२