अपने घर में यदि एक अलग कमरे की व्यवस्था न हो सके तो एक अलग कोने को अपने लिए आरक्षित कर लो। उस स्थान का उपयोग केवल अपनी साधना के लिए ही करो। वहीं बैठ कर अपना भजन/साधन नित्य करो। धीरे-धीरे वह स्थान जागृत हो जायेगा। जब भी वहाँ बैठोगे तो पाओगे कि आपकी चेतना भगवान से जुड़ गई है।
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आपके आसन ने जितना स्थान घेर रखा है वह आपका राज्य है। वहाँ से आकाश में जितनी ऊंचाई तक आपकी कल्पना जाती है, वह आपका साम्राज्य है। आपके साम्राज्य को आपसे कोई नहीं छीन सकता। आप वहाँ के चक्रवर्ती सम्राट हो। अपने साम्राज्य में भगवान को निमंत्रित करो, और अपना सारा साम्राज्य, और स्वयं को उन्हें समर्पित कर दो। आगे की ज़िम्मेदारी उनकी है, आपकी नहीं।
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जीवन के इस संध्याकाल में अब कहीं भी जाने, या चला कर किसी से भी मिलने की कोई कामना नहीं रही है। भगवान अपनी इच्छा से कहीं भी ले जाये या किसी से भी मिला दे, उसकी मर्जी, पर मेरी स्वयं की कोई इच्छा नहीं है। जीवन से पूर्ण संतुष्टि और ह्रदय में पूर्ण तृप्ति है, कोई असंतोष नहीं है।
जहां तक आध्यात्म का सम्बन्ध है, कण मात्र भी कोई संशय या शंका नहीं है। इस अति अल्प और अति सीमित बुद्धि में समा सकने योग्य गहन से गहन आध्यात्मिक रहस्य भी रहस्य नहीं रहे है। सब कुछ स्पष्ट है। परमात्मा की पूर्ण कृपा है। कहीं कोई कमी नहीं है। भगवान ने मुझे अपना निमित्त बनाया यह उनकी पूर्ण कृपा है। सारी साधना वे ही कर रहे हैं, साक्षी भी वे ही हैं, साध्य साधक और साधना भी वे ही हैं। मुझे करने योग्य कुछ भी नहीं है, सब कुछ वे ही कर रहे हैं।
आप सब महान आत्माओं को नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ शिव! ॐ ॐ ॐ!!
कृपा शंकर
११ नवम्बर २०२४