Friday, 28 March 2025

आज नहीं तो कल, कभी तो उनकी कृपा होगी ही, हम सदा अंधकार में नहीं रह सकते ---

आज नहीं तो कल, कभी तो उनकी कृपा होगी ही| हम सदा अंधकार में नहीं रह सकते| हमारी उच्च प्रकृति में परमात्मा के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है| लेकिन निम्न प्रकृति दलदल में है| कोई भी माता हो अपनी संतान को संकट में नहीं देख सकती| जगन्माता जिसने इस सारे ब्रह्मांड को धारण कर रखा है, वह कभी निष्ठुर नहीं हो सकती| इस दलदल से मुझे विरक्त और मुक्त तो उन्हें करना ही होगा|

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भगवान ने अनेक अनुभव दिए हैं, लेकिन हमें तो अनुभव नहीं, स्वयं भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिति चाहिए| वर्षों पहिले की बात है| एक बार इस शरीर से संबंध टूट गया और मैं एक ऐसे स्थान पर पहुँच गया जहाँ अंधकार ही अंधकार था| एक खड़ी सीधी विशाल अंधकारमय सुरंग थी जिसमें इतना गहरा काला अंधकार था कि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था| मुझे ऊपर-नीचे विचरण करने में कोई कठिनाई नहीं हो रही थी, लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि इतना अंधकार क्यों हैं| इतना अवश्य अनुभूत हो रहा था कि वहाँ अनेक जीवात्माएं हैं जो अत्यधिक कष्ट में हैं| अचानक किसी ने चिल्लाकर कर्कश आवाज में मुझ से कहा कि तुम यहाँ कैसे आ गए ? निकलो बाहर ! और मुझे धक्का देकर बाहर फेंक दिया गया| उसी क्षण बापस इस शरीर में आ गया| यह कुछ डरावना अनुभव था| भगवान से प्रार्थना की कि ऐसे अनुभव दुबारा न हों| फिर कभी ऐसे अनुभव नहीं हुए| भगवान की कृपा से एक विधि अवश्य समझ में आई कि अंत समय में ब्रह्मरंध्र से कैसे निकला जाये| इस शरीर के बाहर की अनुभूतियाँ अनेक बार हुई हैं जिनसे मृत्यु का भय नहीं रहा| लेकिन इन सब से संतोष और तृप्ति नहीं हुई है| संतोष और तृप्ति तो भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिती से ही हो सकती है|
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हमारा उद्देश्य किसी तरह के अनुभव लेना नहीं, बल्कि परमात्मा का साक्षात्कार है| भगवान एक न दिन तो अवश्य कृपा करेंगे और इस सांसारिक महामोह से विरक्त और मुक्त करेंगे| और कुछ लिखा ही नहीं जा रहा है| इस लेख को आधा-अधूरा ऐसे ही छोड़ रहा हूँ|
ॐ तत्सत् !!
२९ मार्च २०२१

हमारी रक्षा धर्म ही करेगा, लेकिन तभी करेगा -- जब हम धर्म की रक्षा करेंगे ---

हमारी रक्षा धर्म ही करेगा, लेकिन तभी करेगा -- जब हम धर्म की रक्षा करेंगे ---
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धर्म सदा हम सब भारतीयों के जीवन का केंद्र बिंदु है, और धर्म ही भारत का प्राण है| अतः हमारा आचरण धर्ममय हो, यह धर्म ही हमारी रक्षा करेगा| भगवान से हमारी प्रार्थना है कि हमारा आचरण धर्ममय हो और धर्म सदा हमारी सदा रक्षा करे| धर्म उसी की रक्षा करेगा जो धर्म की रक्षा करेंगे ---
"धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः| तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्|| (म.स्म.८:१५)"
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धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं ---
"धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:| धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌|| (म.स्म.६:९२)"
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धर्म को इस प्रकार परिभाषित किया है --- "यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धि: स धर्म:| (वै.सू.१:१:२)"
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गीता में भगवान ने कहा है ---
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||"

२९ मार्च २०२१ 

पशुपतिनाथ भगवान शिव से प्रार्थना :---

 पशुपतिनाथ भगवान शिव से प्रार्थना :---

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हे पशुपतिनाथ, मैंने चारों ओर घूर-घूर कर खूब अच्छी तरह से देख लिया है| आपके आसपास मुझे तो कोई पशु दिखाई नहीं देता| आपके तो स्मरण मात्र से ही सारे पाश नष्ट हो जाते हैं, जिनसे बंधा मनुष्य अपने पशुत्व से मुक्त हो जाता है| फिर आपने अपना एक नाम पशुपतिनाथ क्यों रखा है? अपना नाम सार्थक करो, और मुझे ही पशु बनाकर सदा के लिए स्थायी रूप से अपने साथ रख लो|
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आध्यात्मिक दृष्टि से पशु का अर्थ जानवर यानि Animal नहीं है| जो पाशों (बंधनों) से बंधा है, वह पशु है| इन पाशों से मुक्ति भगवान की कृपा ही दिला सकती है|
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पशुपतिनाथ स्तोत्र :--
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।१।
महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।२।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।३।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।४।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।५।
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।६।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।७।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।८।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।९।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।१०।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।११।
ॐ ॐ ॐ !!
२९ मार्च २०२१

मन लगे या न लगे, चाहे यंत्र की तरह ही करनी पड़े, किसी भी परिस्थिति में ईश्वर की साधना हमें नहीं छोड़नी चाहिए ---

मन लगे या न लगे, चाहे यंत्र की तरह ही करनी पड़े, किसी भी परिस्थिति में ईश्वर की साधना हमें नहीं छोड़नी चाहिए ---
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जीवन की यह एक बहुत बड़ी शिक्षा है जो स्वयं भगवान ने गीता में दी है। मन लगे या न लगे, चाहे यंत्र की तरह ही करनी पड़े, किसी भी परिस्थिति में ईश्वर की साधना नहीं छोड़नी चाहिए। गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें स्पष्ट आदेश देते हैं कि यज्ञ, दान और तप -- किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ने चाहियें। हमारी निष्काम साधना एक यज्ञ है, जिसमें हम अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार की आहुतियाँ भगवान को देते हैं। अपने सदविचारों से हम समष्टि का कल्याण करते हैं, यह बहुत बड़ा दान है। इन सब के लिए जो प्रयास करते हैं, वह तप है। कर्मफल और आसक्ति का त्याग ही वास्तविक त्याग है जो भगवान ने गुरु रूप में हमें सिखाया है।
यज्ञों में स्वयं को भगवान ने जपयज्ञ बताया है। अतः किसी भी परिस्थिति में जपयज्ञ नहीं छोड़ना चाहिए। जो भी जितनी भी मात्रा में जप का संकल्प लिया है, उसे भगवान की प्रसन्नता के लिए करना ही चाहिए। अनेक बातें हैं जो भगवान ने हमें सिखाई हैं। हृदय में भगवान के प्रति परमप्रेम हो तो वे अपने सारे रहस्य अपने भक्तों के लिए अनावृत कर देते हैं। चेतना में इस समय केवल भगवान छाए हुये हैं। यह सम्पूर्ण जीवन उन्हें समर्पित है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर

२९ मार्च २०२३ 

रामनवमी के त्योहार और माँ सिद्धिदात्री की आराधना के साथ नवरात्रों के समापन की अनंत मंगलमय शुभ कामनायें ---

 राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने॥"

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भगवान श्रीराम अपने परम ज्योतिर्मय रूप में हमारे चैतन्य में प्रकट हों, और हमारे राष्ट्र भारत के भीतर छाए हुए असत्य का सारा अंधकार दूर करें। उनके प्रति हमारा समर्पण पूर्ण हो। हमारी हर कमी दूर हो। "रां रामाय नमः।"
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रामनवमी के त्योहार और माँ सिद्धिदात्री की आराधना के साथ नवरात्रों के समापन की अनंत मंगलमय शुभ कामनायें।
कृपा शंकर
३० मार्च २०२३

मेरे पास अधिक समय नहीं बचा है, मेरे समक्ष दो मार्ग हैं ---

 मेरे पास अधिक समय नहीं बचा है। मेरे समक्ष दो मार्ग हैं। दो शक्तियाँ मुझ पर कार्य कर रही हैं। एक शक्ति मुझे अधोमार्ग पर ले जाना चाहती है। यह पतन का मार्ग बहुत अधिक आकर्षक और सरल है। मेरे चारों ओर का वातावरण, लगभग सारी परिस्थितियाँ, और सभी लोग उसमें सहायक हैं। अज्ञानतावश लगभग सभी उसी पर अग्रसर हो रहे हैं। मेरी अंतर्रात्मा विद्रोह कर रही है। मैं उस मार्ग का पथिक नहीं हो सकता। जो लोग बाहर से आध्यात्म की बड़ी बड़ी बातें करते हैं, उन सब का अन्तःकरण लालसाओं से भरा हुआ है, और वे सब पतन के मार्ग पर अग्रसर पथिक हैं।

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एक दूसरा ऊर्ध्वमार्ग है, जिसमें सहायक मेरे पूर्व जन्मों के गुरुगण और स्वयं भगवान वासुदेव हैं। वे पूर्ण समर्पण मांगते हैं, अन्यथा वे भी तटस्थ हैं। पूर्ण रूप से समर्पित होने पर ही वे सहायता और रक्षा करते हैं। मुझे बहुत अधिक तप करना बाकी है। इसे टाला नहीं जा सकता। इसलिए बचे हुए पूरे जीवन का सारा समय आध्यात्मिक साधना को समर्पित करना होगा। गीता का बार बार पूरी तरह स्वाध्याय बहुत आवश्यक है। गीता के शब्दों का सही अर्थ भगवान की कृपा से ही समझ में आ सकता है।
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श्रीमद्भगवद्गीता के निम्न श्लोकों में भगवान कहते हैं --
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
(जो सबमें मुझे देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।
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"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥९:२२॥"
(अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ।
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"मयि चानन्ययोगेन भक्तिर्व्यभिचारिणी।
विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि॥१३:११॥"
(अनन्ययोग के द्वारा मुझमें अव्यभिचारिणी भक्ति; एकान्त स्थान में रहने का स्वभाव और (असंस्कृत) जनों के समुदाय में अरुचि।
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रामचरितमानस में हनुमान जी कहते हैं --
"कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई॥"
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बाहर की दुनियाँ का आकर्षण बड़ा प्रबल है। यह संसार आनंद का आश्वासन देता है, लेकिन देता दुःख और कष्ट ही है। गीता मे भगवान कहते हैं --
"इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ।
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ॥३:३४॥"
(इन्द्रियइन्द्रिय (अर्थात् प्रत्येक इन्द्रिय) के विषय के प्रति (मन में) रागद्वेष रहते हैं; मनुष्य को चाहिये कि वह उन दोनों के वश में न हो; क्योंकि वे इसके (मनुष्य के) शत्रु हैं।
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"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३:३५॥"
(सम्यक् प्रकार से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म का पालन श्रेयष्कर है; स्वधर्म में मरण कल्याणकारक है (किन्तु) परधर्म भय को देने वाला है।
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इस विषय को और अधिक अच्छा समझाने की क्षमता मुझमें नहीं हैं। जिस पर भगवान की महती कृपा होगी, वह तो समझ जाएगा। बिना उनकी कृपा के कुछ भी समझना असंभव है।
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणः त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥११:३८॥"
"वायुर्यमोग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च
नमो नमस्तेस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोपि नमो नमस्ते॥११:३९॥"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥११:४०॥"
आप आदिदेव और पुराण (सनातन) पुरुष हैं। आप इस जगत् के परम आश्रय, ज्ञाता, ज्ञेय, (जानने योग्य) और परम धाम हैं। हे अनन्तरूप आपसे ही यह विश्व व्याप्त है।
आप वायु, यम, अग्नि, वरुण, चन्द्रमा, प्रजापति (ब्रह्मा) और प्रपितामह (ब्रह्मा के भी कारण) हैं; आपके लिए सहस्र बार नमस्कार, नमस्कार है, पुन: आपको बारम्बार नमस्कार, नमस्कार है।
हे अनन्तसार्मथ्य वाले भगवन्! आपके लिए अग्रत: और पृष्ठत: नमस्कार है, हे सर्वात्मन्! आपको सब ओर से नमस्कार है। आप अमित विक्रमशाली हैं और आप सबको व्याप्त किये हुए हैं, इससे आप सर्वरूप हैं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ मार्च २०२४

इतना स्वार्थी नहीं हूँ, कि अपने समक्ष आई हुई विकट परिस्थितियों में निरपेक्ष रह सकूँ ---

 मेरी पीड़ा :--- कल २६ मार्च को मैंने तय किया था कि फेसबुक और ट्वीटर पर सात दिन तक नहीं आऊँगा| पर अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं| इतना स्वार्थी नहीं हूँ, कि अपने समक्ष आई हुई विकट परिस्थितियों में निरपेक्ष रह सकूँ| जिस समाज में मैं रहता हूँ उस की स्थिति वास्तव में बड़ी खराब है| इस समाज में जैसी लोगों की सोच है उससे उत्पन्न परिस्थितियाँ बड़ी दयनीय हैं| अपनी पीड़ा और अपनी भावनाओं को व्यक्त किए बिना मैं नहीं रह सकता| इस अभिव्यक्ति का माध्यम वर्तमान में फेसबुक ही है| अतः घूम-फिर कर बापस यहीं आ जाता हूँ|

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समाज में और परिवारों में जैसी स्थिति है उस से लगता है कि या तो मैं स्वयं ही गलत हूँ, या परिस्थितियाँ| परिस्थितियों को मैं दोष नहीं दूँगा, मैं स्वयं ही गलत हूँ, इसी लिए गलत स्थान पर हूँ| मैं अपनी सारी कमियों को भी देख रहा हूँ, मुझे कोई भ्रम या संदेह नहीं है| मुझे पता है कि मेरी क्या क्षमता है, और क्या अभीप्सा|
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सांसारिक दुनियाँ में हम इस शताब्दी के सबसे बड़े संकट में हैं| पूरी मानवता सहमी हुयी है| स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने वाली मनुष्य जाति आज एक अदृश्य वायरस के समक्ष असहाय है| हमारी पीढ़ी का यह सबसे बड़ा संकट है| अगले कुछ सप्ताहों में आम लोग और सरकारें जिस तरह के निर्णय लेंगी वह तय करेगा कि भविष्य में दुनिया की तक़दीर कैसी होगी|
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यह सत्य नहीं है कि केवल सच बोलना ही सत्य है| सत्य तो हमारा धर्म और और हमारा अस्तित्व है| जिसकी सत्ता सदैव रहे वह ही सत्य है| सिर्फ परमात्मा की सत्ता ही नित्य है अतः परमात्मा ही सत्य है| उसकी रचना यह जगत मिथ्या और दुःखदायी है|
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भगवान की पूजा करनी चाहिए लेकिन पूजा करने से भगवान नहीं मिलते| अपने भीतर के देवत्व को जगाने से ही भगवान मिलते हैं| हमें स्वयं में ही भगवान को जागृत करना पड़ेगा, तभी हम भगवान को उपलब्ध हो सकते हैं| भगवान कोई आसमान से या अन्य कहीं से उड़कर आने वाली चीज नहीं है| हमें स्वयं में ही भगवान को व्यक्त करना पड़ता है| बाकी बातें किसी काम की नहीं हैं| भगवान कहीं बाहर नहीं, हमारे में ही अव्यक्त है जिसे व्यक्त करना पड़ेगा| जिनके पीछे पीछे हम भागते हैं, उनसे कुछ भी मिलने वाला नहीं है| सभी का मंगल हो|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मार्च २०२०

विजय सदा धर्म की ही हो, और अधर्म का नाश हो| भगवान हमें इस योग्य बनाए कि हम धर्म की रक्षा कर सकें| भगवान ने भी वचन दिया है .....

 विजय सदा धर्म की ही हो, और अधर्म का नाश हो| भगवान हमें इस योग्य बनाए कि हम धर्म की रक्षा कर सकें| भगवान ने भी वचन दिया है .....

"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत| अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्||४:७||"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्| धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे||४:८||"
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जिन्होंने आतताइयों के नाश के लिए हाथ में धनुष धारण कर रखा है, वे भगवान श्रीराम हमें अपना उपकरण बनाकर भारतवर्ष और सनातन धर्म की रक्षा करें .....
"रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।।
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।।
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।।
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।।
ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना।।
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा।।
अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।।
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा।।
सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें।।"
"महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।।"
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जो मनुष्यता की हानि कर रहे हैं, जो गोहत्या का समर्थन कर रहे हैं, जो अपनी विचारधारा और पंथों की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए हिंसा कर रहे हैं, उन सब का नाश हो| जिस संस्कृति की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, गुरु तेगबहादुर, गुरु गोविंदसिंह, बन्दा बैरागी, भाई मतिदास, संभाजी आदि आदि, और स्वतन्त्रता संग्राम के लाखों बलिदानी भारतियों ने अपनी अप्रतिम आहुति दी, उस सनातन संस्कृति की रक्षा हो| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मार्च २०२० . पुनश्च: -- विकट परिस्थितियों में ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ प्रकट होता है| भगवान ने जो भी कार्य सौंपा है वह हम निष्ठापूर्वक करेंगे| वास्तव में कर्ता तो वे स्वयं ही हैं| किसी की निंदा, आलोचना व शिकायत से कोई लाभ नहीं है| हम अपने धर्म का पालन करेंगे| हमारा धर्म है .... हर परिस्थिति में ईश्वर प्रदत्त विवेक के प्रकाश में पूर्ण मनोयोग से सर्वश्रेष्ठ कार्य का सम्पादन| अब हम कभी निराश नहीं होंगे और अपना सर्वश्रेष्ठ करेंगे|

भगवान विष्णु की आराधना के पर्व 'होली' पर आपकी आध्यात्मिक सफलता, स्वास्थ्य (स्व+स्थः), सुख-शान्ति, सद्भावना, निरंतर अभ्युदय व निःश्रेयस की सिद्धि, और सभी आध्यात्मिक विभूतियों की उपलब्धि, के लिए प्रार्थना करता हूँ|

 भगवान विष्णु की आराधना के पर्व 'होली' पर आपकी आध्यात्मिक सफलता, स्वास्थ्य (स्व+स्थः), सुख-शान्ति, सद्भावना, निरंतर अभ्युदय व निःश्रेयस की सिद्धि, और सभी आध्यात्मिक विभूतियों की उपलब्धि, के लिए प्रार्थना करता हूँ| यह पर्व भगवान विष्णु को समर्पित है| आज की दारुण-रात्री का पूरा लाभ उठाएँ और अपने आत्म-स्वरुप यानि सर्वव्यापी परमात्मा का ध्यान रात्रि में कम से कम पाँच-छः घंटों तक करें| इस रात्रि को किया गया ध्यान, जप-तप, भजन --- कई गुणा अधिक फलदायी होता है| गीता के छठे अध्याय का स्वाध्याय, और द्वादशाक्षरी भागवत मंत्र का यथासंभव खूब जाप करें|

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ मार्च २०२१

भगवान हमें निमित्त बनाकर सनातन-धर्म और भारत की रक्षा करें ---

 भगवान हमें निमित्त बनाकर सनातन-धर्म और भारत की रक्षा करें ---

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जिन्होंने आतताइयों के नाश के लिए हाथ में धनुष धारण कर रखा है, वे भगवान श्रीराम हमें अपना उपकरण बनाकर भारतवर्ष और धर्म की रक्षा करें। विजय सदा धर्म की ही हो, और अधर्म का नाश हो। असत्य का अंधकार दूर हो। भगवान ने वचन दिया है --
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्॥४:७॥"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥४:८॥"
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धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण हो। असत्य और अंधकार की शक्तियों का नाश हो। भारत एक सत्यनिष्ठ धर्मावलम्बी अखंड राष्ट्र हो। ॐ तत्सत् ! ॐ स्वस्ति !
कृपा शंकर
२८ मार्च २०२२