Friday, 28 March 2025

मन लगे या न लगे, चाहे यंत्र की तरह ही करनी पड़े, किसी भी परिस्थिति में ईश्वर की साधना हमें नहीं छोड़नी चाहिए ---

मन लगे या न लगे, चाहे यंत्र की तरह ही करनी पड़े, किसी भी परिस्थिति में ईश्वर की साधना हमें नहीं छोड़नी चाहिए ---
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जीवन की यह एक बहुत बड़ी शिक्षा है जो स्वयं भगवान ने गीता में दी है। मन लगे या न लगे, चाहे यंत्र की तरह ही करनी पड़े, किसी भी परिस्थिति में ईश्वर की साधना नहीं छोड़नी चाहिए। गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें स्पष्ट आदेश देते हैं कि यज्ञ, दान और तप -- किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ने चाहियें। हमारी निष्काम साधना एक यज्ञ है, जिसमें हम अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार की आहुतियाँ भगवान को देते हैं। अपने सदविचारों से हम समष्टि का कल्याण करते हैं, यह बहुत बड़ा दान है। इन सब के लिए जो प्रयास करते हैं, वह तप है। कर्मफल और आसक्ति का त्याग ही वास्तविक त्याग है जो भगवान ने गुरु रूप में हमें सिखाया है।
यज्ञों में स्वयं को भगवान ने जपयज्ञ बताया है। अतः किसी भी परिस्थिति में जपयज्ञ नहीं छोड़ना चाहिए। जो भी जितनी भी मात्रा में जप का संकल्प लिया है, उसे भगवान की प्रसन्नता के लिए करना ही चाहिए। अनेक बातें हैं जो भगवान ने हमें सिखाई हैं। हृदय में भगवान के प्रति परमप्रेम हो तो वे अपने सारे रहस्य अपने भक्तों के लिए अनावृत कर देते हैं। चेतना में इस समय केवल भगवान छाए हुये हैं। यह सम्पूर्ण जीवन उन्हें समर्पित है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर

२९ मार्च २०२३ 

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