"प्रथम भगति संतन्ह कर संगा" ---
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इन दिनों संत-महात्माओं, भक्तों और परमात्मा के साथ हमारा बहुत अच्छा सत्संग चल रहा है। चेतना में परमात्मा के सिवाय अन्य कुछ भी अच्छा नहीं लगता। फेसबुक और सोशियल मीडिया पर भी आप सब के साथ सत्संग ही कर रहा हूँ। जिन्हें परमात्मा से प्रेम नहीं है, वे मुझे इसी समय विष के समान त्याग दें, यानि Unfriend और Block कर दें। मेरे में कोई करामात नहीं है। सारी महिमा परमात्मा की है।
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प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥
सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥
आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥
नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना॥
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नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई॥
सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें॥
जोगि बृंद दुरलभ गति जोई। तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई॥
मम दरसन फल परम अनूपा। जीव पाव निज सहज सरूपा॥
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उपरोक्त उपदेश स्वयं भगवान श्रीराम ने मतंग ऋषि के आश्रम में शबरी माता को दिये हैं।
हे मनुष्यो ! श्री रामजी के चरणों में प्रेम करो।
भगवान श्रीराम की उदारता देखिये। उन्होने नौ प्रकार की भक्ति बताई है, जिनमें से यदि एक भी भक्ति आप में है तो वे आपसे प्रसन्न हैं।
२७ मई २०२४