Monday, 22 December 2025

जब तक मैं परमात्मा से दूर था ---

जब तक मैं परमात्मा से दूर था, यह जीवन अपने केंद्र-बिन्दु से बहुत दूर एक मरीचिका (Mirage) यानि दृष्टिभ्रम या एक झूठा प्रतिबिंब (false image) मात्र ही था। एक झूठी आशा के पीछे भाग रहा था। सत्य का बोध तो अभी हो रहा है। भगवान श्रीकृष्ण का गीता में यह आश्वासन एक नयी दृष्टि और बोध दे रहा है --

"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥९:२२॥"
अर्थात् - अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ।
But if a man will meditate on Me and Me alone, and will worship Me always and everywhere, I will take upon Myself the fulfillment of his aspiration, and I will safeguard whatsoever he shall attain.
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मैं -- मैं नहीं रहा। जीवन एक सतत प्रक्रिया है, अब तो उनका हृदय छोड़कर अन्यत्र की कल्पना भी मृत्यु है। शिवोहं शिवोहं॥ अहं ब्रह्मास्मि॥ ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१७ दिसंबर २०२५

उस आभामंडल को ही अपना काम करने दें ---

 निरंतर परमात्मा के चिंतन से हमारे चारों और एक आध्यात्मिक आभामंडल का निर्माण हो जाता है। वह आभामंडल ही चुम्बकत्व की तरह उन सब चीजों को आकर्षित करेगा जो जीवन में सर्वश्रेष्ठ है। उस आभामंडल को ही अपना काम करने दें।

जीवन में किसी से भी कोई अनावश्यक बात न करें, और न ही अनावश्यक रूप से किसी से कोई मेलजोल रखें। प्रयास करें की मानसिक रूप से निरंतर किसी पवित्र मंत्र का जप होता रहे, जैसे प्रणव-मंत्र या तारक-मंत्र। यह भाव रखें कि स्वयं परमात्मा ही यह जप कर रहे हैं। जब भी समय मिले परमात्मा को समर्पित होकर कूटस्थ में उनका ध्यान करें। हमारा जीवन धन्य होगा। हरिः ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
१८ दिसंबर २०२५

प्रकाश का अभाव ही अंधकार है ---

"प्रकाश का अभाव ही अंधकार है। चारों ओर छाये हुए असत्य के अंधकार को मिटाने के लिए हमारा सबसे बड़ा योगदान यही हो सकता है कि हम परमात्मा के प्रकाश को प्रकट कर उसका निरंतर विस्तार करें।"
सर्वव्यापी ज्योतिर्मय ब्रह्म के रूप में परमात्मा का ध्यान करो, और उनकी चेतना में निरंतर हर समय बने रहो। यही सबसे बड़ी सेवा है जो हम समष्टि के लिए कर सकते हैं।
हजारों साधनायें और हजारों मंत्र हैं. कौन सी साधना करें? कौन से मंत्र का जप करें?
यह भगवान पर छोड़ दें कि वे किस विधि से उपलब्ध होना चाहते हैं। यह थोड़ा कठिन कार्य है, लेकिन भगवान से प्रार्थना कर के उन पर छोड़ दे। भगवान से उत्तर मिलेगा, निश्चित रूप से मिलेगा, बस हृदय में प्रेम और एक घनीभूत अभीप्सा होनी चाहिए। वे बड़े भाग्यशाली हैं जो मेरी इस बात को समझ सकते हैं। मैं उन्हें नमन करता हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ दिसंबर २०२५