Tuesday, 9 September 2025

माओ से-तुंग या माओ ज़ेदोंग (毛泽东) ने चाहे करोड़ों चीनियों की हत्या की हो, पर उसने साम्यवाद/मार्क्सवाद को चीनी-राष्ट्रवाद से जोड़कर चीन का बहुत भला कर दिया| चीन में लोग कैसे भी अत्याचार हों, यदि वे राष्ट्रहित में हैं तो उन्हें सहन कर लेते हैं|

 एक विचार .....

माओ से-तुंग या माओ ज़ेदोंग (毛泽东) ने चाहे करोड़ों चीनियों की हत्या की हो, पर उसने साम्यवाद/मार्क्सवाद को चीनी-राष्ट्रवाद से जोड़कर चीन का बहुत भला कर दिया| चीन में लोग कैसे भी अत्याचार हों, यदि वे राष्ट्रहित में हैं तो उन्हें सहन कर लेते हैं|
भारत में इस से बिल्कुल विपरीत हुआ| मार्क्सवाद को भारत में स्थापित वास्तव में अंग्रेजों ने ही किया था| कार्ल मार्क्स खुद भी जर्मन मूल का एक यहूदी अंग्रेज़ था| भारत में अंग्रेजों ने राष्ट्रवाद के विरुद्ध अपने एजेंट एम. एन.रॉय जैसे विचारकों द्वारा मार्क्सवाद को स्थापित किया| उन्होने भारत में साम्यवाद को राष्ट्रवाद के बिल्कुल विपरीत खड़ा किया|
इससे पूर्व रूस के गृहयुद्ध (जो वास्तव में एक सैनिक विद्रोह था, जो वोल्गा नदी में खड़े अरोरा नामक युद्धपोत से शुरू हुआ था) में जर्मनी की सहायता से लेनिन को घुसाकर बोल्शेविक क्रांति के नाम पर रूस का सर्वनाश कर दिया गया| इसमें भी ब्रिटेन का हाथ था| भारत के मार्क्सवादी वास्तव में भारत के विरुद्ध पश्चिमी हितों को साधते हैं|
भारत में राष्ट्रवाद के विरुद्ध जिहाद की अवधारणा तो थी ही, मार्क्सवाद उससे भी अधिक भयंकर रूप में खड़ा हो गया| जिहादी विचारधारा ने किसी का भला नहीं किया अतः उसका प्रभाव शनैः शनैः कम होता जा रहा है| ऐसे ही मार्क्सवाद का प्रभाव भी धीरे धीरे नष्ट हो जाएगा|
ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं जिनसे किसी को आहत होने की आवश्यकता नहीं है| भारत को नष्ट करने के लिए अनेक लुटेरी आसुरी शक्तियों ने अपना पूरा ज़ोर लगा दिया, पर वे भारत को नष्ट नहीं कर पाये| भारत की आत्मा जीवित है और पुनश्च अपने परम वैभव को प्राप्त करेगी| भारत का भविष्य ही इस सृष्टि का भविष्य है|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० सितंबर २०१९

दूसरों के गले काट कर कोई बड़ा नहीं बन सकता ---

दूसरों के गले काट कर कोई बड़ा नहीं बन सकता| दूसरों की ह्त्या कर के, पराई संपत्ति का विध्वंश कर के, और दूसरों को हानि पहुंचा कर कोई महान नहीं बनता| दूसरों को मारकर, और दूसरों को हानि पहुंचाकर लोग महान और पूर्ण बनना चाहते हैं, पर उनके लिए ऐसी पूर्णता एक मृगतृष्णा ही रहती है| आज भी मानवता अशांत है और दूसरों के विनाश में ही पूर्णता खोज रही है, पर इतने नरसंहार और विध्वंश के पश्चात भी उसे कहीं सुख शांति नहीं मिल रही है| अभी भी अधिकाँश मानवता की यही सोच है कि जो हमारे विचारों से असहमत हैं उनका विनाश कर दिया जाए| पर क्या इस से उन्हें सुख शान्ति मिल जायेगी? कभी नहीं मिलेगी|

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पूर्णता बाहरी संसार में नहीं है, पूर्णता निजात्मा में ही संभव है| पूर्णता की खोज में मनुष्य ने पूँजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद, फासीवाद, सेकुलरवाद, जैसे अनेक वाद खोजे, और अनेक कलियुगी मत-मतान्तरों, पंथों व सम्प्रदायों का निर्माण किया, पर किसी से भी मनुष्य को सुख-शांति नहीं मिली, इन्होने मनुष्यता को कष्ट ही कष्ट दिए| पूर्णता स्वयं की आत्मा में ही हो सकती है, जो परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण से ही व्यक्त होती है| यह जो इतनी भयंकर मार-काट, अन्याय, और हिंसा हो रही है, अप्रत्यक्ष रूप से यह मनुष्य की निराशाजनक रूप से पूर्णता की ही खोज है| मनुष्य सोचता है कि दूसरों के गले काटकर वह बड़ा बन जाएगा, पर सदा असंतुष्ट ही रहता है और आगे भी दूसरोंके गले काटने का अवसर ढूंढता रहता है|
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पूर्ण तो सिर्फ परमात्मा है जिस से जुड़ कर ही हम पूर्ण हो सकते हैं, दूसरों के गले काट कर, या पराई संपत्ति का विध्वंश कर के नहीं| श्रुति भगवती पूर्णता के बारे में कहती है .....
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
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यहाँ मैं बाइबिल में (Matthew 26:52) ईसा मसीह को उद्धृत कर रहा हूँ ..... "Put your sword back in its place," Jesus said to him ...
"Those who use the sword will die by the sword. ... Then Jesus said to him, "Put your sword back into its place; for all those who take up the sword shall perish by the sword. ... Everyone who uses a sword will be killed by a sword.
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शांति मन्त्र ......
"ॐ सहनाववतु | सह नौ भुनक्तु | सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु | मा विद्विषावहै ||
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१० सितम्बर २०१७

विद्या वह है जो हमें परमात्मा का बोध कराये। जो केवल सांसारिक ज्ञान कराये वह अविद्या है।

 मेरी आप से प्रार्थना है कि आप विद्या, अविद्या, ज्ञान और अज्ञान -- इन शब्दों पर विचार करें। ​मेरी समझ से विद्या वह है जो हमें परमात्मा का बोध कराये। जो केवल सांसारिक ज्ञान कराये वह अविद्या है। लेकिन दोनों का अध्ययन आवश्यक है। समत्व में स्थिति, और क्षेत्र व क्षेत्रज्ञ का ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है। इसका सिर्फ पढ़ाई-लिखाई से कोई संबंध नहीं है। ईशावास्योपनिषद तो कहता है कि जो विद्या और अविद्या, को जो जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमृतत्त्व प्राप्त कर लेता है।

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मैं यह शरीर हूँ, यह सबसे बड़ा अज्ञान है। हर सांसारिक कामना और अभिलाषा भी अज्ञान ही है। अज्ञान से मुक्ति भगवान की परम कृपा से ही होती है। ऐसे ही लोगों का संग करें जिनके ह्रदय में परमात्मा के प्रति कूट कूट कर परमप्रेम भरा पड़ा है, और जो निज जीवन में परमात्मा को उपलब्ध होना चाहते हैं। कृपा शंकर ९ सितंबर २०२३