एक विचार .....
Tuesday, 9 September 2025
माओ से-तुंग या माओ ज़ेदोंग (毛泽东) ने चाहे करोड़ों चीनियों की हत्या की हो, पर उसने साम्यवाद/मार्क्सवाद को चीनी-राष्ट्रवाद से जोड़कर चीन का बहुत भला कर दिया| चीन में लोग कैसे भी अत्याचार हों, यदि वे राष्ट्रहित में हैं तो उन्हें सहन कर लेते हैं|
दूसरों के गले काट कर कोई बड़ा नहीं बन सकता ---
दूसरों के गले काट कर कोई बड़ा नहीं बन सकता| दूसरों की ह्त्या कर के, पराई संपत्ति का विध्वंश कर के, और दूसरों को हानि पहुंचा कर कोई महान नहीं बनता| दूसरों को मारकर, और दूसरों को हानि पहुंचाकर लोग महान और पूर्ण बनना चाहते हैं, पर उनके लिए ऐसी पूर्णता एक मृगतृष्णा ही रहती है| आज भी मानवता अशांत है और दूसरों के विनाश में ही पूर्णता खोज रही है, पर इतने नरसंहार और विध्वंश के पश्चात भी उसे कहीं सुख शांति नहीं मिल रही है| अभी भी अधिकाँश मानवता की यही सोच है कि जो हमारे विचारों से असहमत हैं उनका विनाश कर दिया जाए| पर क्या इस से उन्हें सुख शान्ति मिल जायेगी? कभी नहीं मिलेगी|
विद्या वह है जो हमें परमात्मा का बोध कराये। जो केवल सांसारिक ज्ञान कराये वह अविद्या है।
मेरी आप से प्रार्थना है कि आप विद्या, अविद्या, ज्ञान और अज्ञान -- इन शब्दों पर विचार करें। मेरी समझ से विद्या वह है जो हमें परमात्मा का बोध कराये। जो केवल सांसारिक ज्ञान कराये वह अविद्या है। लेकिन दोनों का अध्ययन आवश्यक है। समत्व में स्थिति, और क्षेत्र व क्षेत्रज्ञ का ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है। इसका सिर्फ पढ़ाई-लिखाई से कोई संबंध नहीं है। ईशावास्योपनिषद तो कहता है कि जो विद्या और अविद्या, को जो जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमृतत्त्व प्राप्त कर लेता है।