मूल रूप से यहूदियत, ईसाईयत और इस्लाम -- तीनों एक ही हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ( Prophet Abraham) की संताने हैं। इसलिए ये तीनों इब्राहिमी मज़हब (Abrahamic Religions) कहलाते हैं।
Tuesday, 13 May 2025
मूल रूप से यहूदियत, ईसाईयत और इस्लाम -- तीनों एक ही हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ( Prophet Abraham) की संताने हैं। इसलिए ये तीनों इब्राहिमी मज़हब (Abrahamic Religions) कहलाते हैं।
हज़रत इब्राहिम के बड़े बेटे हजरत इसाक ने यहूदी मज़हब चलाया था, जिनकी नस्ल में हज़रत ईसा (Jesus Christ) हुए, जिनसे ईसाई मज़हब चला।
हजरत इब्राहिम के छोटे बेटे हज़रत इस्माइल की नस्ल में पैगंबर मोहम्मद (सल्लाहो अलैहि वसल्लम) साहब हुए, जो इस्लाम के प्रमुख पैगंबर हैं।
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इनका विवाद वर्चस्व के लिए तीन भाइयों के परिवारों के मध्य का खूनी विवाद है, और कुछ नहीं। आमने सामने एक टेबल पर बैठकर ये शांतिपूर्ण तरीके से अपने विवादों का समाधान करें।
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पिछले वर्ष आज ही के दिन इज़राइल में एक घटना घटी थी जिस से पूरा विश्व स्तब्ध रह गया था। इज़राइली सेना पर भटके हुए फिलिस्तीनी नवयुवकों ने पत्थरबाजी की, उन सब भटके हुए नौजवानों को इजराइली सेना ने गोली से उड़ा दिया। पास ही की एक मस्जिद में हमास के भटके हुए नौजवान छिपे हुए थे। उस पूरी मस्जिद को ही बारूद से उड़ाकर वहाँ की सेना ने सभी को मार दिया। किसी को भी जीवित नहीं छोड़ा।
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ऐसी घटनाएँ फिर न हों, आपस में अपने भाईचारे को बनाये रखें। यह हाथ जोड़कर सभी से प्रार्थना है।
१४ मई २०२२
भगवान श्रीहरिः के चरण कमलों में यदि आश्रय मिल जाये तो इस संसार में प्राप्त करने योग्य अन्य कुछ भी नहीं है ---
भगवान श्रीहरिः के चरण कमलों में यदि आश्रय मिल जाये तो इस संसार में प्राप्त करने योग्य अन्य कुछ भी नहीं है। सब कुछ उन्हें समर्पित है। समस्त सृष्टि को उन्होंने धारण कर रखा है और पालन-पोषण कर रहे हैं। वे ही गुरुरूप ब्रह्म हैं, वे ही पारब्रह्म परमेश्वर, परमशिव, नारायण, वासुदेव और सर्वस्व हैं। उन से पृथक अन्य कुछ है ही नहीं। वे ही सर्वस्व हैं। वे स्वयं को अपनी पूर्णता में व्यक्त करें।
"ॐ शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥"
सब का साथ, सब का विकास ---
सब का साथ, सब का विकास ---
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अंधकार और प्रकाश कभी साथ-साथ नहीं रह सकते। अमृत में थोड़ा सा विष मिलाते ही पूरा अमृत, विष हो जाता है। अमृत का भी साथ, और विष का भी साथ -- किसी का विकास नहीं कर सकता। उसका परिणाम -- मृत्यु है।
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चमचमाती भव्य साफ-सुथरी सड़कें, ऊँचे ऊँचे चमचमाते भवन, स्वच्छ सुन्दर कपड़े पहिने मनुष्य ही -- विकास के परिचायक नहीं हो सकते।
किसी भी देश की वास्तविक संपदा और विकास के परिचायक उस के उच्च-चरित्रवान, स्वाभिमानी, कार्यकुशल, राष्ट्रप्रेमी, परोपकारी, और धर्मपरायण सत्यनिष्ठ नागरिक होते हैं।
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युवावस्था में मैंने अनेक देशों की यात्राएँ की हैं। एक बार तो पूरी पृथ्वी की परिक्रमा भी की थी। चीन की दीवार, मिश्र के पिरामिड, कनाडा का नियाग्रा फॉल, पनामा व स्वेज़ नहर, और विश्व के अनेक देशों के अनेक नगरों की भव्यता और दरिद्रता भी देखी है।
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कुछ देशों की भव्य सड़कें, चमचमाती इमारतें और बाहरी वैभव देखकर बड़ा प्रभावित हुआ था। लेकिन इस के पीछे वहाँ के लोगों का कष्टमय जीवन, गरीबी, और निरंतर संघर्ष भी था, जो किसी को दिखाई नहीं देता।
जिस देश सं.रा.अमेरिका को हम विश्व का सर्वाधिक समृद्ध देश समझते हैं, वहाँ की समृद्धि ८ से १० प्रतिशत लोगों तक ही सीमित है। बाकी सब झूठा दिखावा है।
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अब समय आ गया है, भारत में समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण, समयानुसार नए कठोर कानून, और न्यायिक व पुलिस व्यवस्था में सुधार हो। सभी के साथ समानता का व्यवहार हो। ये विकास-पुरुष से हमारी अपेक्षाएँ हैं।
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मनुष्य जीवन की उच्चतम उपलब्धि --- भगवत्-प्राप्ति, यानि आत्म-साक्षात्कार है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१४ मई २०२४
भगवान ने सब कुछ दिया है, लेकिन सांसारिक बुद्धि और सांसारिक विवेक नहीं दिया जिसका मुझे कोई अफसोस नहीं है ---
भगवान ने सब कुछ दिया है, लेकिन सांसारिक बुद्धि और सांसारिक विवेक नहीं दिया। इसलिए इस संसार ने मुझे ठगा ही ठगा है
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सांसारिक दृष्टि से मेरे इस भौतिक शरीर महाराज की आयु आधिकारिक रूप से ७७ वर्ष है। १९ मई २०२४ को मेरे विवाह की ५१ वीं वर्षगांठ है। इस शरीर महाराज से जुड़ी सभी इंद्रियाँ और उनकी तन्मात्राएँ अभी तक तो ठीक से अपना कार्य कर रही हैं। किसी भी तरह की मधुमेह या रक्तचाप से जुड़ी बीमारी नहीं है। भगवान ने सब कुछ दिया है, लेकिन सांसारिक बुद्धि और सांसारिक विवेक नहीं दिया। इसलिए इस संसार ने मुझे ठगा ही ठगा है। सब अपने अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं, और भोगेंगे।
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इस भौतिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि -- अन्तर्मन में जागृत परमात्मा से परम प्रेम है। अब से आगे का अवशिष्ट जीवन परमात्मा को पूरी तरह समर्पित है। मैं उन्हीं से मिलता-जुलता हूँ, उन्हीं से बात करता हूँ, जिनके मन में परमात्मा है। अन्य सारे संबंध एक दिखावा हैं। यथासंभव परमात्मा की चेतना में ही रहता हूँ, यही सबसे बड़ी सेवा है जो मैं समष्टि की कर सकता हूँ। इस जीवन की एकमात्र उपलब्धि परमात्मा का परमप्रेम है | अन्य सब दृष्टिकोणों से यह जीवन पूरी तरह विफल है। परमात्मा के सिवाय जीवन में कुछ भी अन्य प्राप्त नहीं किया। सब स्थानों पर विफलता ही विफलता मिली।
Let “Thy will be done.” (Not my will, but yours be done.)
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"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥"
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"वसुदॆव सुतं दॆवं कंस चाणूर मर्दनम्।
दॆवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दॆ जगद्गुरुम्॥"
"वंशीविभूषित करान्नवनीरदाभात् , पीताम्बरादरूण बिम्बफला धरोष्ठात्।
पूर्णेंदु सुन्दर मुखादरविंदनेत्रात् , कृष्णात्परं किमपि तत्वमहं न जाने॥"
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"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥"
"नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः॥"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्॥"
"कस्तूरी तिलकम् ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम् ,
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु: करे कंकणम्।
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावली,
गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते, गोपाल चूड़ामणि:॥"
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ।
कृपा शंकर
१४ मई २०२४
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