Friday, 26 December 2025

चित्त वृत्ति निरोध ------

 जब ह्रदय शांत और और आज्ञा चक्र जागृत होने लगता है तभी चित्त की वृत्तियों का निरोध होना आरम्भ होने लगता है|

चित्त स्वयं को दो रूपों ------ श्वास-प्रश्वास और वासनाओं के रूप में व्यक्त करता है|
वासनाएँ तो अति सूक्ष्म हैं जो पकड़ में नहीं आतीं, अतः ध्यान साधना का आरम्भ श्वास-प्रश्वास से होता है| श्वास-प्रश्वास पर ध्यान करते करते प्राण भी स्थिर होने लगते हैं और मन की वासनाएँ शांत होने लगती हैं क्योंकि चंचल प्राण ही मन है| भौतिक देह और मन के बीच की कड़ी भी प्राण ही है|
यह मार्ग सिर्फ उन पथिकों के लिए है जिन्हें प्रभु से परम प्रेम हैं और जिनके ह्रदय में एक गहन अभीप्सा है उन्हें उपलब्ध होने की| ऐसे पथिक ही टिक पते हैं इस मार्ग पर, अन्य सब भटक जाते हैं| जब ह्रदय में एक अभीप्सा यानि तड़फ होती है प्रभु को पाने की तो प्रभु एक सद्गुरु के रूप में स्वयं ही आ जाते हैं|
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार और धारणा ये सब साथ साथ चलते हैं| प्रभु के प्रति तड़फ यदि बहुत गहरी हो अपने आप ही ये सब पीछे पीछे चलने लगते हैं|
प्रभु के प्रति प्रेम बहुत अधिक गहन हो तो ध्यान भी स्वयं होने लगता है| तब प्रभु ही आपको अपना उपकरण बना कर सब कुछ स्वयं करने लगते हैं| तब आप कर्ता नहीं रहते|
प्रथम अंतिम और एकमात्र आवश्यकता है प्रभु प्रेम की| बाकि सब गौण है|
आप में हृदयस्थ भगवान नारायण को नमन करते मैं आप सब के प्रति अपना अहैतुकी प्रेम और शुभ कामनाएँ व्यक्त करता हूँ| आप सब को मेरा प्रणाम| ॐ तत्सत्|
जयतु वैदिकीसंस्कृतिः जयतु भारतम् |
२७ दिसंबर २०१३