देश जले, और मैं न बोलूँ ! मैं ऐसा गद्दार नहीं, -- बहुत हो चुका है, हे देशवासियो, अब तो जागो!! कहीं तन से सिर जुदा न हो जाये !!
Tuesday, 10 June 2025
देश जले, और मैं न बोलूँ ! मैं ऐसा गद्दार नहीं ---
अपने स्वधर्म पर अडिग रहें, धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा है ---
अपने स्वधर्म पर अडिग रहें, धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा है ---
फाँसी पर ले जाते समय बड़े जोर से कहा "वन्दे मातरम् ! भारतमाता की जय !"
फाँसी पर ले जाते समय बड़े जोर से कहा "वन्दे मातरम् ! भारतमाता की जय !"
पञ्च मकार साधना :--- (Re-Edited & Re-Posted)
पञ्च मकार साधना :--- (Re-Edited & Re-Posted)
भारत के अमृतकाल का आरंभ हो चुका है ---
भारत के अमृतकाल का आरंभ हो चुका है ---
भगवान कहाँ नहीं है? ---
चित्त की वृत्तियाँ क्या होती हैं? इसे समझ कर ही साधना मार्ग पर आगे बढ़ें।
चित्त की वृत्तियाँ क्या होती हैं? इसे समझ कर ही साधना मार्ग पर आगे बढ़ें। हमारे चित्त में बारबार जो अधोगामी वासनात्मक विचार उठते हैं, वे ही चित्त की वृत्तियाँ हैं। वासनाएँ बहुत सूक्ष्म होती हैं, जो संकल्प शक्ति से नियंत्रित नहीं होतीं। उसके लिए किसी श्रौत्रीय ब्रहमनिष्ठ सद्गुरु के मार्गदर्शन में ईश्वर की उपासना करनी पड़ती है।
परमात्मा ही अपना स्वरूप है ---
भगवान को पाने की अभीप्सा, भगवान से परमप्रेम, और एक अतृप्त आध्यात्मिक प्यास -- सनातन धर्म को विजयी बनायेगी ---
भगवान को पाने की अभीप्सा, भगवान से परमप्रेम, और एक अतृप्त आध्यात्मिक प्यास -- सनातन धर्म को विजयी बनायेगी ---
जो कुछ भी हमें प्राप्त होता है, यहाँ तक कि परमात्मा की प्राप्ति भी "श्रद्धा और विश्वास" से ही होती है|
जो कुछ भी हमें प्राप्त होता है, यहाँ तक कि परमात्मा की प्राप्ति भी "श्रद्धा और विश्वास" से ही होती है| रामचरितमानस के आरंभ में मंगलाचरण में ही बताया गया है .....
भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण हमारे सब दुःख दूर करें .....
का खूब मानसिक जप कर सकते हैं| मंत्र जप के समय कमर सीधी हो, मुख पूर्व या उत्तर दिशा में हो, दृष्टि भ्रूमध्य पर हो, और पूरा ध्यान आज्ञाचक्र में भगवान श्रीकृष्ण पर हो| प्रयास करते रहें कि उन के सिवाय और कोई छवि अपने समक्ष न आवे| मन में यही भाव रहे कि भगवान श्रीकृष्ण की पूर्ण कृपा मुझ पर हो रही है, उनका पूर्ण प्रेम मुझे प्राप्त हो रहा है और मेरे सब दुःख दूर हो रहे हैं| अर्धरात्रि में इस मंत्र के जप का बहुत अधिक महत्व है| दिन में भी जब भी समय मिले इस मंत्र का यथासंभव अधिकाधिक जप करते रहें| यह मंत्र "गोपाल सहस्त्रनाम" में भी है| इस मंत्र को काम बीज कहते हैं| यह माँ महाकाली का, माँ कात्यायिनी का, और कामदेव का बीज मंत्र भी है| देवी अथर्वशीर्ष में और नवार्ण मंत्र में यह बीज मंत्र माँ महाकाली के लिए है|
भीषण गर्मी का यह भी कारण हो सकता है .....
भीषण गर्मी का यह भी कारण हो सकता है .....
पाश द्वारा आवद्ध सारे संसारी मनुष्य पशु ही हैं जो जन्म से नाना प्रकार के पाशों में बंधे हुए हैं ---
पाश द्वारा आवद्ध सारे संसारी मनुष्य पशु ही हैं जो जन्म से नाना प्रकार के पाशों में बंधे हुए हैं। जब तक जीव सब प्रकार के पाशों यानि बंधनों से मुक्त होकर अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त नहीं होता, वह पशु ही है। शिष्य की देह में जो आध्यात्मिक चक्र हैं उन पर जन्म-जन्मान्तर के कर्मफल वज्रलेप की तरह चिपके हुए हैं। इस लिए जीव को शिव का बोध नहीं होता। गुरु अपने शिष्य के चित्त में प्रवेश कर के उस के अज्ञानमय आवरण को गला देते हैं। जब शिष्य के अंतर में दिव्य चेतना स्फुरित होती है, तब वह साक्षात शिव भाव को प्राप्त होता है। गुरु की चैतन्य शक्ति के बिना यह संभव नहीं है| शिष्य चाहे कितना भी पतित हो, सदगुरु उसे ढूंढ निकालते हैं| फिर चेला जब तक अपनी सही स्थिति में नहीं आता, गुरु को चैन नहीं मिलता है| इसी को दया कहते हैं| यही गुरु रूप में शिवकृपा है| हे गुरुरूप शिव, अपनी परम कृपा करो और निज चरणों में आश्रय दो|