कामना की पूर्ति स्वयं के श्रद्धा-विश्वास से ही होती है ---
Sunday, 8 June 2025
कामना की पूर्ति स्वयं के श्रद्धा-विश्वास से ही होती है ---
"योगस्थ" का क्या अर्थ है? ---
"योगस्थ" का क्या अर्थ है? ---
जिनके हृदय में परमात्मा होते हैं ---
जिनके हृदय में परमात्मा होते हैं, मुझे उनसे बात करने की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ती। उनको देखते ही उनके भाव समझ में आ जाते हैं। वे भी मेरे भावों को समझ जाते हैं।
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न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं ---
न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं ---
परमात्मा से हमारा क्या सम्बन्ध है ? ---
परमात्मा से हमारा क्या सम्बन्ध है ? ---
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असत्य, अन्धकार और अज्ञान की शक्तियों का वर्चस्व ---
असत्य, अन्धकार और अज्ञान की शक्तियों का वर्चस्व पिछले डेढ़-दो हजार वर्षों से चल रहा है| उनके अस्तित्व को चुनौतियां भी मिलती रही हैं और अब वे धीरे धीरे पराभूत भी हो रही हैं| मुझे मेरी इस आस्था में कण मात्र भी संदेह नहीं है कि उनका पराभव निश्चित रूप से होगा| यह सृष्टि .... प्रकाश और अन्धकार का खेल है जहाँ दोनों की आवश्यकता है| इस लीला से परे जाना ही हमारा प्राथमिक लक्ष्य है|
हमारे सभी दुःखों का कारण :----
हमारे सभी दुःखों का कारण :----
ॐ “भूतभृते नमः" ------
मैं फ़ेसबुक और व्हाट्सएप पर आत्मप्रेरणा से जो कुछ भी लिखता हूँ वह मेरा स्वयं के साथ एक सत्संग है।
मैं फ़ेसबुक और व्हाट्सएप पर आत्मप्रेरणा से जो कुछ भी लिखता हूँ वह मेरा स्वयं के साथ एक सत्संग है। निरंतर वह मुझे परमात्मा की चेतना में रखता है। मैं स्वयं की संतुष्टि के लिए ही लिखता हूँ। किसी भी तरह का आर्थिक / लौकिक लाभ इसके बदले में नहीं लेता। जो मेरे लेखों को पढ़ते हैं, मैं उनका आभारी हूँ, वे मुझे प्रोत्साहित कर रहे हैं। धन्यवाद !!
मैं युद्ध की बातें कर रहा हूँ, लेकिन मेरी चेतना निरंतर भगवान श्री कृष्ण में है।
मैं युद्ध की बातें कर रहा हूँ, लेकिन मेरी चेतना निरंतर भगवान श्री कृष्ण में है। गीता में भगवान कहते हैं --
"महाभय" का वह समय बहुत शीघ्र ही आने वाला है जिसके बारे में बचपन से ही सुनते आए हैं ----
"धर्म-अधर्म", "पाप-पुण्य"; और "अकिंचन" व "सर्वस्व-अनन्य" भाव ----
"धर्म-अधर्म", "पाप-पुण्य"; और "अकिंचन" व "सर्वस्व-अनन्य" भाव ---
संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्य वहां की नौकरशाही का है, राष्ट्रपतियों का नहीं ---
संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्य वहां की नौकरशाही का है, राष्ट्रपतियों का नहीं। वहाँ के राष्ट्रपति जनता को मूर्ख बनाकर आते हैं, लेकिन उनकी नहीं चलती, उन्हें वही काम करना पड़ता है जो वहाँ की नौकरशाही चाहती है। यह वैसा ही है जैसे भारत में सुप्रीम कोर्ट के जजों की चलती है, चुनी हुई सरकारों और सदन की नहीं।
ब्राह्मण समाज में जागृति और एकता कैसे हो? .
ब्राह्मण समाज में जागृति और एकता कैसे हो?
हम जो भी साधना/उपासना करते हैं, उसमें कर्ताभाव नहीं होना चाहिए ---
यह अतृप्त प्यास, वेदना और तड़प -- कभी शांत न हो।
मुझे सुख, शांति, सुरक्षा और आनंद -- भगवान के स्मरण, मनन, चिंतन और ध्यान की अनुभूतियों में ही मिलता है। जब कभी भगवान की अनुभूतियाँ नहीं होतीं, तब लगता है कि मैंने बहुत कुछ खो दिया है, और अनाथ हो गया हूँ। ऐसी स्थिति में जीने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है। ईश्वर की निरंतर प्रत्यक्ष अनुभूति ही मेरा जीवन हो गई है।