Sunday, 8 June 2025

यह अतृप्त प्यास, वेदना और तड़प -- कभी शांत न हो।

मुझे सुख, शांति, सुरक्षा और आनंद -- भगवान के स्मरण, मनन, चिंतन और ध्यान की अनुभूतियों में ही मिलता है। जब कभी भगवान की अनुभूतियाँ नहीं होतीं, तब लगता है कि मैंने बहुत कुछ खो दिया है, और अनाथ हो गया हूँ। ऐसी स्थिति में जीने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है। ईश्वर की निरंतर प्रत्यक्ष अनुभूति ही मेरा जीवन हो गई है।

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मेरे चारों ओर का वातावरण बहुत विपरीत है। लेकिन भगवान ने जहाँ भी मुझे रखा है, वहाँ पर मैं प्रसन्न हूँ। हर ओर परमात्मा ही परमात्मा है। फिर भी हृदय में एक अतृप्त प्यास, वेदना और तड़प है। लगता है यही एक ऐसी शक्ति है मुझे परमात्मा की ओर निरंतर ले जा रही है। यह अतृप्त प्यास, वेदना और तड़प बनी रहे, कभी शांत न हो।

ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ जून २०२२

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