ब्राह्मण समाज में जागृति और एकता कैसे हो?
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किसी भी पौधे की जड़ों में जल न देकर उसकी पत्तियों में ही जल दिया जाये तो वह पौधा कभी भी वृक्ष नहीं बनेगा। ब्राह्मण समाज की जड़ें धर्म में बहुत गहरी जमी हुई हैं, उन जड़ों की उपेक्षा कर के वर्तमान में ब्राह्मण समाज के लगभग सारे नेता पत्तियों में ही पानी दे रहे हैं।
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ब्राह्मण एकता के नाम पर आजकल -- ब्राह्मण अधिकारियों और राजनेताओं का सार्वजनिक सम्मान किया जाता है। इससे वे अधिकारी और नेता तो अपने अहंकार को तृप्त कर के चले जाते हैं, और समाज के नेताओं के अपने मतलब हेतु अधिकारियों व नेताओं से मधुर संबंध बन जाते हैं। लेकिन इस से समाज को कुछ नहीं मिलता है।
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कभी कभी अच्छे नंबर लाने वाले विद्यार्थियों को सम्मानित कर दिया जाता है। ठीक है प्रोत्साहन देना चाहिए, लेकिन उन विद्यार्थियों को भी समाज के प्रति कुछ कर्तव्य बोध होना चाहिए, अन्यथा समाज को कोई लाभ नहीं है।
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ब्राह्मण समाज की सबसे बड़ी समस्या है -- नवयुवक/नवयुवतियों में धर्मशिक्षा का अभाव। आज की पीढ़ी को अपने धर्म की शिक्षाओं का ज्ञान नहीं है। इसके लिए छुट्टियों में प्रशिक्षण वर्ग चलाये जाने चाहियें।
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(१) संस्कृत भाषा की शिक्षा बच्चों को दी जाये। बच्चों को संस्कृत का इतना ज्ञान तो हो कि वे "श्री सूक्त" और "पुरुष सूक्त" का शुद्ध उच्चारण सहित पाठ कर सकें, और इसका अर्थ भी समझा सकें।
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(२) सभी युवा किशोरों का सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार करवा कर, उन्हें वैदिक प्राणायाम, और गायत्री मंत्र की दीक्षा दी जाये। गायत्री जप का महत्व भी बताया जाये और विधि-विधान से संध्या कर्म भी सिखाया जाये।
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(३) भगवान से परमप्रेम (भक्ति) प्रत्येक ब्राह्मण को होना चाहिए। भगवान की भक्ति ही ब्राह्मण का मुख्य गुण है। युवकों, युवतियों व सभी जिज्ञासुओं को कोई न कोई साधना/उपासना अवश्य करनी चाहिए।
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स्वनामधान्य भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर (आदि शंकराचार्य) भगवती श्रीविद्या के उपासक थे। श्रीविद्या साधना पर ही उनका ग्रंथ "सौन्दर्य लहरी" बहुत प्रसिद्ध है। इस साधना का क्रम होता है। दस महाविद्याओं में से एक किसी की भी साधना से समाज की मानसिक, बौद्धिक, आर्थिक, आध्यात्मिक -- सब तरह की दरिद्रता दूर होगी।
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जिनकी भगवान विष्णु के अवतारों में श्रद्धा है उन्हें, भगवान श्रीराम या श्रीकृष्ण की उपासना करनी चाहिए।
जिनकी श्रद्धा शिव में है उन्हें परमशिव का ध्यान करना चाहिए।
जिनकी श्रद्धा हनुमान जी में है, उन्हें हनुमान जी की उपासना करनी चाहिए।
गीता का नित्य नियमित पाठ अर्थ समझते हुए करना चाहिए।
कुल मिलाकर बात यह है कि भगवान से परमप्रेम प्रत्येक ब्राह्मण को होना चाहिए। यही एक ब्राह्मण का सबसे बड़ा गुण है। ब्राह्मण समाज समय समय पर आपस में मिलता जुलता रहेगा तो प्रेम भी बना रहेगा।
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ब्राह्मणों ने अपना धर्म छोड़ दिया इसीलिए पूरे हिन्दू जाति की दुर्दशा हो रही है। ब्राह्मण अपने धर्म पर दृढ़ रहेंगे तो पूरे हिन्दू समाज का उत्थान होगा।
सभी को सप्रेम सादर नमन!!
"ॐ नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च।
जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः॥"
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कृपा शंकर
८ जून २०२२
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