Friday, 15 November 2024

इसी जीवन में हमें आत्म-तत्व को जानकर आत्मसाक्षात्कार (Self-Realization) कर के आवागमन और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाना चाहिए ---

 इसी जीवन में हमें आत्म-तत्व को जानकर आत्मसाक्षात्कार (Self-Realization) कर के आवागमन और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाना चाहिए।

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हम यहाँ इस पृथ्वीलोक में मनुष्य देह को अपने कर्मफलों को भोगने के लिए ही पाते हैं। इस भौतिक मनुष्य देह के जीवित रहते रहते ही हमें इसी जीवन में परमात्मा को उपलब्ध हो जाना चाहिए। बाद में पता नहीं किस लोक में जन्म हो और कैसी देह मिले। इस मनुष्य देह में तो हम परमात्मा को उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन अन्य ज्ञात शरीरों में नहीं। आत्म तत्व का साक्षात्कार कर लिया तो ८४ लाख का चक्र तो छूटेगा ही, सब प्रकार का कल्याण भी हो जाएगा।
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मैं कई वर्षों से लिख रहा हूँ और अनगिनत लेख लिखे हैं। अब थक गया हूँ, और लिखने की सामर्थ्य नहीं है। अब बचा हुआ सारा जीवन आप सब को अपनी चेतना में अपने साथ लेकर परमात्मा की ध्यान-साधना में ही बिताना चाहता हूँ।
भगवान स्वयं ही अपनी साधना करते हैं, मैं तो एक निमित्तमात्र हूँ। यह जीवन उनको समर्पित है।
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भारत से असत्य का अंधकार दूर होगा। असत्य और अंधकार की आसुरी शक्तियाँ पराभूत होंगी। सत्य-सनातन-धर्म का वैश्वीकरण होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ नवंबर २०२३

अच्छा या बुरा, जैसा भी यह जीवन है, वह भगवान को समर्पित है ---

 अच्छा या बुरा, जैसा भी यह जीवन है, वह भगवान को समर्पित है ---

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मुझे सारी प्रेरणाएँ भगवान से ही मिलती हैं। भगवान के सारे नाम-रूप एक हैं। मैं कभी तो बात परमशिव की करता हूँ, कभी विष्णु की, कभी भगवती श्रीविद्या, महाकाली या छिन्नमस्ता की, -- ये भगवान की सारी अभिव्यक्तियाँ हैं, जो ओंकार में एक हैं। कोई मुझे अच्छा कहे या बुरा, गाली दे या प्रशंसा करे, अब कोई फर्क नहीं पड़ता।
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भगवान के प्रति हमारी अभीप्सा बनी रहे, व उनके प्रति हमारा समर्पण पूर्ण हो। हमारी भक्ति अनन्य और अव्यभिचारिणी हो। हम सब तरह की आकांक्षाओं व कामनाओं से मुक्त हों। हमारे अंतःकरण में केवल परमात्मा का निवास हो, और चारों ओर छाया हुआ असत्य का अंधकार दूर हो। कूटस्थ सूर्यमंडल में जो पुरुषोत्तम हैं, वे ही परमशिव हैं, और वे ही जगन्माता हैं। सारी पृथकताओं के बोध को उनमें विलीन कर रहा हूँ। ॐ ॐ ॐ !!
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"ब्रह्मानंदम् परम सुखदम् केवलं ज्ञान मूर्तिम्।
द्वन्द्वातीतं गगन सदृशं तत्वमस्यादि लक्ष्यम्।।
एकं नित्यं विमलं चलम् सर्वधीसाक्षी भूतम्।
भावातीतं त्रिगुण रहितं सद्गुरुं तम् नमामि।।"
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"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप।।
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते।।
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः।।"
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सभी को अनंत मंगलमय शुभ कामनाएँ। मेरी सब तरह की भूल-चूक क्षमा करें।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ नवंबर २०२३