इसी जीवन में हमें आत्म-तत्व को जानकर आत्मसाक्षात्कार (Self-Realization) कर के आवागमन और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाना चाहिए।
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हम यहाँ इस पृथ्वीलोक में मनुष्य देह को अपने कर्मफलों को भोगने के लिए ही पाते हैं। इस भौतिक मनुष्य देह के जीवित रहते रहते ही हमें इसी जीवन में परमात्मा को उपलब्ध हो जाना चाहिए। बाद में पता नहीं किस लोक में जन्म हो और कैसी देह मिले। इस मनुष्य देह में तो हम परमात्मा को उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन अन्य ज्ञात शरीरों में नहीं। आत्म तत्व का साक्षात्कार कर लिया तो ८४ लाख का चक्र तो छूटेगा ही, सब प्रकार का कल्याण भी हो जाएगा।
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मैं कई वर्षों से लिख रहा हूँ और अनगिनत लेख लिखे हैं। अब थक गया हूँ, और लिखने की सामर्थ्य नहीं है। अब बचा हुआ सारा जीवन आप सब को अपनी चेतना में अपने साथ लेकर परमात्मा की ध्यान-साधना में ही बिताना चाहता हूँ।
भगवान स्वयं ही अपनी साधना करते हैं, मैं तो एक निमित्तमात्र हूँ। यह जीवन उनको समर्पित है।
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भारत से असत्य का अंधकार दूर होगा। असत्य और अंधकार की आसुरी शक्तियाँ पराभूत होंगी। सत्य-सनातन-धर्म का वैश्वीकरण होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ नवंबर २०२३
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