Sunday, 4 May 2025

झुंझुनूं जिले के ब्राह्मण समाज को एक बहुत बड़ी क्षति ---

झुंझुनूं जिले के ब्राह्मण समाज को एक बहुत बड़ी क्षति ---
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रामानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के संस्कृत व्याकरण विभाग के पीठाध्यक्ष 95+ वर्षीय परम श्रद्धेय ब्राह्मण शिरोमणि पं.बद्री प्रसाद जी पपूरना के निधन पर मैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ| उन को हमारे यहाँ के संत समाज ने छ: महीनों पूर्व ही झुंझुनू में ब्रह्म शिरोमणि पद से सम्मानित किया था| कार्यक्रम में शेखावाटी क्षेत्र के सभी संतगण और समाज के सभी प्रबुद्ध गण उपस्थित थे|
वे राजस्थान ब्राह्मण महासभा झुंझुनूं जिले के मुख्य संरक्षक थे| राजस्थान के झुंझुनू जिले की खेतड़ी तहसील के गाँव पपूरना के रहने वाले थे और 95+ वर्ष की आयु में भी विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करते हुए जयपुर में रामानंद संस्कृत विश्व विद्यालय में पीठाध्यक्ष थे|
उनकी स्मृति स्पष्ट थी और उनका व्यक्तित्व भी प्रेरणादायक था| ऐसे महान तपस्वी साधक और परम विद्वान के गौ लोक गमन से हमारे समाज के सभी लोग दू:खी हैं|
ये एक सफल साधक और सदाचारी विद्वान थे |त्रिकाल संध्या २१ माला गायत्री मन्त्र का तथा ६० माला गोपालमंत्र का जप करते थे |
आपने लगभग ३ मास से भोजन करना बंद कर दिया था| कहते थे की अब शरीर छूटने का समय आ चूका है |
इनका परिवार हमेशा संत महापुरुषों के साथ जुडा रहा |आपके लिखे अनेक ग्रन्थ हैं|आप राष्ट्रपति से भी पुरुष्कृत हुए थे| ये उस राष्ट्रपति का सौभाग्य है|
मैं उन्हें निम्न संस्थाओं के अध्यक्षों की और से भी अधिकृत रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ---
(१) अन्नक्षेत्र संस्थान झुंझुनू के संस्थापक और संरक्षक श्री श्री १०८ बाबा आनंद गिरी महाराज (फलाहारी), मुक्तेश्वर महादेव मंदिर, झुंझुनू| (इनके आयोजकत्व में ही संत समाज ने पंडित जी को सम्मानित किया था)
(२) राजस्थान ब्राह्मण महासभा झुंझुनू जिले के अध्यक्ष और प्रसिद्द नेत्र चिकित्सक मेरे अग्रज डा.दया शंकर बावलिया|
राजस्थान ब्राह्मण महासभा झुंझुनू जनपद अगले कुछ दिनों में एक शोक सभा का भी आयोजन करेगी|
कृपा शंकर
५ मई २०१३


भारत की प्राचीन गुरुकुल आधारित शिक्षा-व्यवस्था, और गौ-आधारित कृषि-व्यवस्था, -- ही भारत को अपने प्राचीन गौरव और परम वैभव को प्राप्त करा सकती है।

 भारत की प्राचीन गुरुकुल आधारित शिक्षा-व्यवस्था, और गौ-आधारित कृषि-व्यवस्था, -- ही भारत को अपने प्राचीन गौरव और परम वैभव को प्राप्त करा सकती है।

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अंग्रेजों ने भारतीय सभ्यता को खत्म करने के लिये भारतीय गुरुकुल प्रणाली और भारतीय कृषि प्रणाली समाप्त कर दी। भारतीय कृषि की रीढ़ तोड़ने के लिये गोहत्या शुरू की गई। भारत में गायों की हत्या के कारण गोबर के रूप में खाद, और गोमूत्र के रूप में कीटनाशक मिलने बंद हो गए। इसी तरह गुरुकुलों पर प्रतिबंध लगाकर गुरुकुलों को आग लगाकर नष्ट कर दिया गया। हजारों आचार्यों की हत्याएं की गईं, ब्राह्मणों से उनके ग्रंथ छीन कर जला दिये गए। ब्राह्मणों को इतना धनहीन कर दिया गया कि वे अपने बच्चों को पढ़ाने में भी असमर्थ हो गए। आज जो भी ग्रंथ बचे हैं, वे इसलिए बचे हैं कि ब्राह्मणों ने रट-रट कर उन्हें कंठस्थ कर लिया था।
५ मई २०२१

मेरा एकमात्र कर्तव्य परमात्मा के प्रकाश को अपनी पूरी क्षमता और सत्यनिष्ठा से फैलाना है। उस से बड़ा और कोई कर्तव्य मेरे लिए नहीं है। चारों ओर के वर्तमान घटनाक्रम से मैं भ्रमित और विचलित सा हो गया था। यह मेरी कमी थी। अब स्वयं को संयत कर लिया है। यह सृष्टि भगवान की है, मेरी नहीं। मेरे बिना भी उनकी सृष्टि चलेगी। भगवान को मेरी सलाह की कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे जब उनसे स्पष्ट आश्वासन और मार्गदर्शन प्राप्त है, तब मेरा किसी भी बात पर उद्वेलित होना मेरी कमी है, जो अब और नहीं होनी चाहिए। अपनी भूल सुधार रहा हूँ। मैं सोशियल मीडिया पर रहूँ या न रहूँ, आप अपने में हृदयस्थ सर्वव्यापक ईश्वर के साथ मुझे हर समय निरंतर पाओगे। एक माइक्रोसेकंड के लिए भी मैं आपसे दूर नहीं हूँ। 

गीता का सन्देश भारत का प्राण है। गीता के उपदेश ही भारत को विजयी बनायेंगे। जीवन की हर समस्या का समाधान गीता में है।
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥१८:७८॥"
जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है वहीं पर श्री, विजय, विभूति और ध्रुव नीति है। ऐसा मेरा मत है।

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !! ५ मई २०२१



हम भगवान के किस रूप की, कौन सी साधना, किस विधि से करें? ---

हम भगवान के किस रूप की, कौन सी साधना, किस विधि से करें? ---
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उपरोक्त प्रश्न का उत्तर हम निज विवेक से अपने स्वभाव, क्षमता, आकांक्षा/अभीप्सा और उपलब्ध साधनों का आंकलन करके ही पा सकते हैं। जहाँ स्वयं का विवेक काम नहीं करता, वहाँ भगवान से मार्गदर्शन की प्रार्थना करें। जहाँ भगवान से भी कोई मार्गदर्शन नहीं मिलता वहाँ किन्हीं ऐसे संत-महात्मा से मार्गदर्शन ले सकते हैं जिन पर हमारी श्रद्धा हो। बिना श्रद्धा के तो कुछ भी नहीं मिलेगा। यदि श्रद्धा नहीं है तो परोपकार का ही कुछ काम करें।
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और कुछ भी नहीं कर सकते तो किसी का बुरा नहीं करें, और अपनी संतुष्टि के लिए कोई समाज सेवा का कार्य करते रहें। आजकल अनेक संस्थाएँ हैं जो समाजसेवा का काम करती हैं, जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने आनुषंगिक संगठनों के साथ। और भी अन्य सैंकड़ों संस्थाएँ हैं जिन में आपका मन लगा रहेगा। किसी धार्मिक क्षेत्र में काम करने की इच्छा है तो अनेक धार्मिक संस्थाएँ हैं। देश के हर भाग में अनेक मंदिर हैं जहाँ चमत्कार घटित होते हैं और लाखों श्रद्धालु हर वर्ष आते हैं। वहाँ भी समय समय पर जाते रहें। मन लगा रहेगा। रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों का स्वाध्याय करते रहें।
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ब्रह्मज्ञान तो हरिःकृपा से ही प्राप्त होता है। लाखों में से एक व्यक्ति की ही रुचि ईश्वर को उपलब्ध होने में होती है। अन्य तो भगवान के साथ व्यापार ही करते हैं। गीता में भगवान कहते हैं --
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७:१९॥"
अर्थात् - बहुत जन्मों के अन्त में (किसी एक जन्म विशेष में) ज्ञान को प्राप्त होकर कि 'यह सब वासुदेव है' ज्ञानी भक्त मुझे प्राप्त होता है; ऐसा महात्मा अति दुर्लभ है॥ कृपा शंकर ५ मई २०२३