Friday, 2 May 2025

समष्टि मुझ से पृथक नहीं है, सूक्ष्म जगत की अनंतता, और सम्पूर्ण सृष्टि मेरे अस्तित्व का भाग है ---

समष्टि मुझ से पृथक नहीं है, (स्वयं भगवान विष्णु ही यह "मैं" बन गए हैं) सूक्ष्म जगत की अनंतता, और सम्पूर्ण सृष्टि मेरे अस्तित्व का भाग है ---

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मैं कोई पृथक इकाई नहीं हूँ, मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है, मैं सम्पूर्ण सृष्टि की अनंतता हूँ; सारा ब्रह्मांड मेरा शरीर है। कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का चिंतन करते ही मेरुदंड उन्नत हो जाता है, दृष्टिपथ भ्रूमध्य की दिशा में स्थिर हो जाता है, और चेतना इस देह के ब्रह्मरंध्र से बाहर निकल कर सूक्ष्म जगत की अनंतता में विस्तृत हो जाती है। परमात्मा का वह अनंत ज्योतिर्मय विस्तार ही मेरा शरीर है। अनंतता के उस विस्तार से भी परे, एक परम आलोकमय जगत है जो मेरा वास्तविक लक्ष्य है। वह इस सृष्टि का भाग नहीं, सृष्टि उस का भाग है।
उसी के बारे में गीता में भगवान कहते हैं --
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥१५:६॥
अर्थात् - उसे न सूर्य प्रकाशित कर सकता है और न चन्द्रमा और न अग्नि। जिसे प्राप्त कर मनुष्य पुन: (संसार को) नहीं लौटते हैं, वह मेरा परम धाम है॥
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श्रुति भगवती कहती है --
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः।
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ॥" (मुण्डक २/२/११)
अर्थात् - वहाँ न सूर्य प्रकाशित होता है, और चन्द्रमा आभाहीन हो जाता है, तथा तारे बुझ जाते हैं; वहाँ ये विद्युत् भी नहीं चमकती, तब यह पार्थिव अग्नि भी कैसे जल पायेगी? जो कुछ भी चमकता है, वह उसकी आभा से अनुभासित होता है, यह सम्पूर्ण विश्व उसी के प्रकाश से प्रकाशित एवं भासित हो रहा है।
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परमात्मा की उपासना के समय सारा ब्रह्मांड, सारी सृष्टि मेरे साथ एक होती है। उस समय मैं यह नश्वर शरीर नहीं, परमशिव के साथ एक होता हूँ। परमशिव से यही प्रार्थना है कि वे स्वयं को इस सृष्टि यानि मुझ में पूर्ण रूप से स्वयं को व्यक्त करें।
मेरी लौकिक प्रार्थना है कि भारत से असत्य और अंधकार की शक्तियाँ पराभूत हों, और सम्पूर्ण भारत में सत्य-सनातन-धर्म की पुनःप्रतिष्ठा हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ मई २०२३