Saturday, 20 September 2025

जिनमें सत्यनिष्ठा नहीं है, मैं उनके किसी काम का नहीं हूँ, सिर्फ सत्यनिष्ठ साधक ही मुझसे सपर्क रखें ---

जिनमें सत्यनिष्ठा नहीं है, मैं उनके किसी काम का नहीं हूँ, सिर्फ सत्यनिष्ठ साधक ही मुझसे सपर्क रखें। अन्य सब मुझे विष की तरह त्याग दें।

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मैं कृपा शंकर नाम का व्यक्ति नहीं, भगवान को पाने की अभीप्सा की वह दाहक अग्नि हूँ जो तब तक आपको बेचैन रखेगी जब तक आप भगवान को उपलब्ध नहीं हो जाओगे। जब आप परमात्मा को उपलब्ध हो जाओगे तब मुझे आनंद रूप में स्वयं के भीतर ही पाओगे। यह शरीर तो एक दिन भस्म होकर अनंत में विलीन हो जाएगा, लेकिन मैं एक शाश्वत आत्मा हूँ जो अपने प्रभु के साथ एक होकर सदा रहूँगा।
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हमें भगवान की प्राप्ति नहीं होती, इसका एकमात्र कारण सत्यनिष्ठा का अभाव है। अन्य कोई कारण नहीं है। हम झूठ बोल रहे हैं। हमने भगवान को कभी चाहा ही नहीं। भगवान सत्यनारायण हैं। वे ही एकमात्र सत्य हैं। यदि इसी जीवन में भगवत्-प्राप्ति करनी है तो अभी से यथासंभव अधिकतम समय भगवान के स्मरण, चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान में बिताएँ।
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आने वाले अगले कुछ महीने आध्यात्मिक साधना के लिए अति श्रेष्ठ हैं। यदि आप श्रद्धालु निष्ठावान हैं तो आपको इसी जीवन में भगवान की प्राप्ति निश्चित रूप से होगी। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान का यह स्पष्ट संदेश है --
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥१८:५८॥"
अर्थात् - मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे; और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे॥
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥
श्रीमते रामचंद्राय नमः॥ ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२० सितंबर २०२३

आज का दिन बड़ा शुभ है, जीवन का हर पल शुभ है, शुभ ही शुभ है, और शुभ ही शुभ रहेगा ---

कल रात्री को परमात्मा की गहनतम चेतना में सोया, पूरी रात परमात्मा की गहनात्म चेतना में ही विश्राम किया। आज प्रातः जगन्माता की गोद से वैसे ही उठा जैसे एक शिशु अपनी माँ की गोद से सोकर उठता है। मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार -- सब में परमात्मा ही परमात्मा भरे पड़े है, और कुछ भी नहीं है। इस जीवन के अंत काल तक परमात्मा ही रहेंगे और पुनर्जन्म के समय भी केवल परमात्मा ही रहेंगे।

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जिनको सिर्फ ईश्वर से प्रेम हैं, केवल उन्हीं का स्वागत है। भगवान ने मुझे ठीक ही बोध कराया था कि कोई दो लाख लोगों में से एक के ही हृदय में भगवान की भक्ति होती है।
ॐ नमः शिवाय॥
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
कृपा शंकर
२० सितंबर २०२४

बिना मांगी चार सलाह वृद्धावस्था के लिये ---

"दुनिया भी अजब सराय-ए-फ़ानी देखी, हर चीज़ यहाँ की आनी-जानी देखी।

जो आके न जाये वो बुढ़ापा देखा, जो जाके न आये वो जवानी देखी ॥" (फ़ानी)

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इसीलिए बिना मांगी ४ सलाह दे रहा हूँ। किसी को अच्छी लगे तो ठीक, और न लगे तो भी ठीक ---
(१) अब से न तो कोई ऐसा चिंतन करना है, और न कोई ऐसा कार्य करना है जो निज चेतना को ईश्वर से विपरीत दिशा में कर दे। हर समय सतर्क और ईश्वर की चेतना में रहना है।
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(२) जहाँ जो और जितना पूछा जाये, बस उतनी ही सलाह दीजिये। बाकी मौन रहिये। नयी पीढ़ी को बड़े-बूढ़ों की सलाह अच्छी नहीं लगती है।
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(३) जो कुछ भी हो रहा है, उसे होने दीजिए। साक्षी भाव में रहें, और हर समय प्रसन्न रहें। कभी कुछ लेने की जिद्द न करें। जो मिल जाये सो ठीक, और जो न मिले वह भी ठीक।
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(४) परिवार में सभी की यथासंभव सहायता कीजिए। अपना काम स्वयं करें। हर समय मुस्कराते रहें। वृद्धावस्था में बस इतना ही पर्याप्त है। और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।
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ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२० सितंबर २०२४