"दुनिया भी अजब सराय-ए-फ़ानी देखी, हर चीज़ यहाँ की आनी-जानी देखी।
जो आके न जाये वो बुढ़ापा देखा, जो जाके न आये वो जवानी देखी ॥" (फ़ानी)
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इसीलिए बिना मांगी ४ सलाह दे रहा हूँ। किसी को अच्छी लगे तो ठीक, और न लगे तो भी ठीक ---
(१) अब से न तो कोई ऐसा चिंतन करना है, और न कोई ऐसा कार्य करना है जो निज चेतना को ईश्वर से विपरीत दिशा में कर दे। हर समय सतर्क और ईश्वर की चेतना में रहना है।
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(२) जहाँ जो और जितना पूछा जाये, बस उतनी ही सलाह दीजिये। बाकी मौन रहिये। नयी पीढ़ी को बड़े-बूढ़ों की सलाह अच्छी नहीं लगती है।
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(३) जो कुछ भी हो रहा है, उसे होने दीजिए। साक्षी भाव में रहें, और हर समय प्रसन्न रहें। कभी कुछ लेने की जिद्द न करें। जो मिल जाये सो ठीक, और जो न मिले वह भी ठीक।
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(४) परिवार में सभी की यथासंभव सहायता कीजिए। अपना काम स्वयं करें। हर समय मुस्कराते रहें। वृद्धावस्था में बस इतना ही पर्याप्त है। और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।
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ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२० सितंबर २०२४
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