Thursday, 24 April 2025

वर्तमान नक्सलवादियों का मूल नक्सलवाद से कोई सम्बन्ध नहीं है| मूल नक्सलवाद और नक्सलवादियों का अब कोई अस्तित्व नहीं है| वर्तमान नक्सलवादी और उनके समर्थक "ठग" है, और "ठग" के अलावा कुछ और नहीं हैं|

 

> वर्तमान नक्सलवादियों का मूल नक्सलवाद से कोई सम्बन्ध नहीं है| मूल नक्सलवाद और नक्सलवादियों का अब कोई अस्तित्व नहीं है| वर्तमान नक्सलवादी और उनके समर्थक "ठग" है, और "ठग" के अलावा कुछ और नहीं हैं|
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> जिस समय नक्सलबाड़ी में चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने नक्सलवादी आन्दोलन का आरम्भ किया था, तब से अब तक का सारा घटनाक्रम मुझे याद है| उस समय की घटनाओं का सेकंड हैण्ड नहीं, फर्स्ट हैण्ड ज्ञान मुझे है| उस आन्दोलन से जुड़े अनेक लोग मेरे परिचित और तत्कालीन मित्र थे|
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> जो मूल नक्सलवादी थे उनकी तीन गतियाँ हुईं .......
* (१) उनमें से आधे तो पुलिस की गोली का शिकार हो गए| किसी को पता ही नहीं चलने दिया गया था कि उनका क्या हुआ, कहाँ उनकी लाशों को ठिकाने लगाया गया आदि आदि| वे अस्तित्वहीन ही हो गए|
* (२) जो जीवित बचे थे उन में से आधों ने तत्कालीन सरकार से समझौता कर लिया और नक्सलवादी विचारधारा छोड़कर राष्ट्र की मुख्य धारा में बापस आ कर सरकारी नौकरियाँ ग्रहण कर लीं|
* (३) बाकी बचे हुओं ने इस विचारधारा से तौबा कर ली और इस विचारधारा के घोर विरोधी हो गए|
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> अब नक्सलवाद के नाम पर जो यह ठगी और लूट का काम कर रहे हैं, वे बौद्धिक आतंकवादी, ठग, डाकू और तस्कर हैं|
उनका एक ही इलाज है, और वह है ...... "बन्दूक की गोली"|
इसी की भाषा को वे समझते हैं| वे कोई भटके हुए नौजवान नहीं है, वे कुटिल राष्ट्रद्रोही तस्कर हैं, जिनको बिकी हुई प्रेस, वामपंथियों और राष्ट्र्विरोधियों का समर्थन प्राप्त है|
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नक्सलवादी आन्दोलन का संक्षिप्त इतिहास .......
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नक्सलवादी आन्दोलन का विचार कानू सान्याल के दिमाग की उपज थी| यह एक रहस्य है कि कानू सान्याल इतना खुराफाती कैसे हुआ| वह एक साधू आदमी था जिसका जीवन बड़ा सात्विक था| उसका जन्म एक सात्विक ब्राह्मण परिवार में हुआ था| उसकी दिनचर्या बड़ी सुव्यवस्थित थी और भगवान ने उसे बहुत अच्छा स्वास्थ्य दिया था| सन १९६२ में वह बंगाल के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री वी.सी.रॉय को काला झंडा दिखा रहा था कि पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जहाँ उसकी भेट चारु मजुमदार से हुई|
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चारु मजूमदार एक कायस्थ परिवार से था और हृदय रोगी था, जो तेलंगाना के किसान आन्दोलन से जुड़ा हुआ था और जेल में बंदी था| दोनों की भेंट सन १९६२ में जेल में हुई और दोनों मित्र बने|
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सन १९६७ में दोनों ने बंगाल के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से तत्कालीन व्यवस्था के विरुद्ध एक घोर मार्क्सवादी आन्दोलन आरम्भ किया जो नक्सलवाद कहलाया| इस आन्दोलन में छोटे-मोटे तो अनेक नेता थे पर इनको दो और प्रभावशाली कर्मठ नेता मिल गए ........ एक तो था नागभूषण पटनायक, और दूसरा था टी.रणदिवे| इन्होनें आँध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम के जंगलों से इस आन्दोलन का विस्तार किया|
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यह आन्दोलन पथभ्रष्ट हो गया जिससे कानु सान्याल और चारु मजूमदार में मतभेद हो गए और दोनों अलग अलग हो गए| चारु मजुमदार की मृत्यु सन १९७२ में हृदय रोग से हो गयी, और कानु सान्याल को इस आन्दोलन का सूत्रपात करने की इतनी अधिक मानसिक ग्लानी और पश्चाताप हुआ कि २३ मार्च २०१० को उसने आत्महत्या कर ली|
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अब आप नक्सलवादी आन्दोलन का अति संक्षिप्त इतिहास समझ गए होंगे|
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वन्दे मातरं | भारत माता की जय | ॐ ॐ ॐ ||
२५ अप्रेल २०१७

अंतर्राष्ट्रीय ठगों द्वारा इन्टरनेट पर कैसे लोगों को ठगा जाता है .....

 अंतर्राष्ट्रीय ठगों द्वारा इन्टरनेट पर कैसे लोगों को ठगा जाता है .....

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लगभग हर एक-दो माह में मेरे पास अंतर्राष्ट्रीय ठगों की कोई न कोई मेल आती ही रहती है जिनमें से कोई तो खुद को नाइजीरिया का भगौड़ा जनरल बताता है, कोई स्वयं को अमेरिकी सेना का बड़ा अधिकारी, जो अपने बेईमानी के रुपयों को छिपाने के लिए मेरा बैंक अकाउंट नम्बर और अन्य कुछ विवरण मांगते हैं| मुझे आधे धन का लोभ भी देते हैं| कुछ अफ्रीका की लड़कियाँ होती हैं जिनके बाप का धन ब्रिटेन के किसी बैंक में होता है और उसके ट्रान्सफर के लिए मेरा बैंक अकाउंट मांगती है| कोई स्वयं को तुर्की की बैंक अधिकारी बताती है, कोई स्वयं को किसी मल्टीनेशनल कम्पनी का फाइनेंस डाइरेक्टर| एक बार एक लड़की ने स्वयं को ब्रिटिश सेना की नर्सिंग अधिकारी बताया तो एक ने अमेरिकी महिला जनरल| मैं इस प्रकार की सारी मेल को spam में डाल देता हूँ, फिर भी वे आती ही रहती हैं|
ठगों द्वारा भेजी गयी आज की नवीनतम मेल शेयर कर रहा हूँ ....
Bank of America
115 W 42nd St, New York, NY 10036, USA
From Desktop of Mr. Jeff Anderson
Our Ref: BOF-0XX2/987/20
E-mail:jeffa9257@gmail.com
It is my modest obligation to write you this letter as regards the Authorization of your owed payment through our most respected financial institution (Bank of America). I am Mr. Jeff Anderson, TRANSFER INSPECTION OFFICER, foreign operations Department Bank of America, the British Government in Conjunction with us government, World Bank, united Nations Organization on foreign Payment matters has empowered my bank after much consultation and consideration to handle all foreign payments and release them to their appropriate beneficiaries with the help of a Representative from Federal Reserve Bank of New York.
As the newly Appointed/Accredited International Paying Bank, We have been instructed by the world governing body together with the committee on international debt reconciliation department to release your overdue funds with immediate effect; with this exclusive vide transaction no.: wha/eur/202,password: 339331, pin code: 78569, having received these vital payment numbers, you are instantly qualified to receive and confirm your payment with us within the next 96hrs.
Be informed that we have verified your payment file as directed to us and your name is next on the list of our outstanding fund beneficiaries to receive their payment. Be advised that because of too many funds beneficiaries, you are entitled to receive the sum of $14.5M,(Fourteen Million Five Hundred Thousand Dollars only), as to enable us pay other eligible beneficiaries.
To facilitate with the process of this transaction, please kindly re-confirm the following information below:
1) Your Full Name:
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3) Your Contact Telephone and Fax No:
4) Your Profession, Age and Marital Status:
5) Any Valid Form of Your Identification/Driver's License:
6) Bank Name:
7) Bank Address:
😎 Account Name:
9) Account Number:
10) Swift Code:
11) Routing Number:
As soon as we receive the above mentioned information, your payment will be processed and released to you without any further delay. This notification email should be your confidential property to avoid impersonators claiming your fund. You are required to provide the above information for your transfer to take place through Bank to Bank Transfer directly from Bank of America
We Look Forward To Serving You Better.
Mr. Jeff Anderson,
TRANSFER INSPECTION OFFICER
Bank of America
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२५ अप्रैल २०१८

भारत की अधिकांश समाचार मीडिया को धिक्कार है। इतने नीच स्तर की रिपोर्टिंग केवल अपने देश की मीडिया में ही होती है।

 भारत की अधिकांश समाचार मीडिया को धिक्कार है। इतने नीच स्तर की रिपोर्टिंग केवल अपने देश की मीडिया में ही होती है। धधकती हुई चिताएं, भरे हॉस्पिटल, परेशान परिजन, -- यह सब दिखा कर क्या जताना चाहते हैं आप?

महामारी है हम सबको पता है, आउट ऑफ कंट्रोल है, यह भी सबको पता है।
रिपोर्टिंग करिए, ठीक हुए मरीजों का इंटरव्यू कराइये, ऑक्सीजन सिलेंडर कहां मिल रहा है यह बताइये। किस हॉस्पिटल में बेड खाली है यह बताइये। एंबुलेंस सर्विस की डिटेल दें।
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इतनी ईमानदारी से केंद्र सरकार प्रयास कर रही है, वह भी बताइये। ओड़ीशा सरकार ने बहुत अच्छा कार्य किया है, वह भी बताइये। जहाँ जहाँ अच्छे कार्य हो रहे हैं, वे सब बताइये।
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पूरी सृष्टि में आप के एकमात्र ईमानदार आदमी ने दिल्ली में आठ-आठ ऑक्सीज़न प्लांटों का रुपया केंद्र से लेकर सिर्फ एक ही बनवाया, और वह भी घटिया स्तर का। बाकी रुपए डकार गया। हरेक घंटे में हरेक टीवी चैनल पर अपनी आत्म-प्रशंसा के झूठे विज्ञापन देकर मीडिया का तो मुंह बंद कर दिया है उसने।
आपको तो सनसनी चाहिए। घबराहट फैला कर क्या साबित करना चाहते हैं आप?
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केवल अपने चैनल की टीआरपी ही मत बढ़ाइये। समस्याओं का समाधान ढूढें और ढूढ़ने मे मदद करें। एक अच्छे नागरिक होने का भी कर्तव्य भी निभाइये।
२५ अप्रैल २०२१

हमारा प्रथम, अंतिम और एकमात्र लक्ष्य परमात्मा को उपलब्ध होना है। परमात्मा ही परम सत्य है। परमात्मा में हम सब एक हैं। परमात्मा ही हमारे अस्तित्व हैं।

 

मेरा आपसे मतभेद हो सकता है। मतभेद होना स्वभाविक है। लेकिन मेरे लिए हमारा प्रथम, अंतिम और एकमात्र लक्ष्य परमात्मा को उपलब्ध होना है। परमात्मा ही परम सत्य है। परमात्मा में हम सब एक हैं। परमात्मा ही हमारे अस्तित्व हैं। यह बात जीवन में मुझे बहुत देरी से समझ में आई क्योंकि मेरे पुण्य कर्मों का उदय ही देरी से हुआ। मैंने जीवन में जो विपरीतताऐं देखीं उनका कारण विगत जन्मों में पुण्य कर्मों का अभाव था। किसी अन्य का कोई दोष नहीं था।
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किसी भी साधना में सफलता के लिए हमारे में इन सब का होना परम आवश्यक है ---
(१) भक्ति, (२) अभीप्सा, (३) दुष्वृत्तियों का त्याग (४) शरणागति व समर्पण (५) आसन, मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान, (६) दृढ़ मनोबल और स्वस्थ शरीर। हमें अपने स्वभाव के अनुकूल कोई भी आध्यात्मिक साधना करनी हो, वह किन्हीं सिद्ध-ब्रह्मनिष्ठ-श्रौत्रीय सद्गुरु से उपदेश और आदेश लेकर ही करनी चाहिए, क्योंकि यह श्रुति भगवती का आदेश है।
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हमारी वर्तमान स्थिति को देखकर ही कोई सद्गुरु हमें बता सकता है कि कौन सी साधना हमारे लिए सर्वोपयुक्त है। हर कदम पर अनेक बार हमें मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है। मन्त्र-साधना में तो मार्गदर्शक सद्गुरु का होना पूर्णतः अनिवार्य है, अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है। मन्त्रयोग संहिता में आठ प्रमुख बीज मन्त्रों का उल्लेख है जो शब्दब्रह्म ओंकार की ही अभिव्यक्तियाँ हैं। मन्त्र में पूर्णता "ह्रस्व", "दीर्घ" और "प्लुत" स्वरों के ज्ञान से आती है, जिसके साथ पूरक मन्त्र की सहायता से विभिन्न सुप्त शक्तियों का जागरण होता है।
वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक नाद, बिंदु, बीजमंत्र, अजपा-जप, षटचक्र साधना, योनी-मुद्रा में ज्योति दर्शन, खेचरी मुद्रा, महा-मुद्रा, नाद व ज्योति-तन्मयता, और साधन-क्रम आदि का ज्ञान -- गुरु की कृपा से ही हो सकता है।
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साधना में सफलता भी गुरु कृपा से ही होती है और ईश्वर लाभ भी गुरु कृपा से होता है। किसी भी साधना का लाभ उसका अभ्यास करने से है, उसके बारे में जानने मात्र से या उसकी विवेचना करने से कोई लाभ नहीं है। हमारे सामने मिठाई पडी है, उसका आनंद उस को चखने और खाने में है, न कि उसकी विवेचना से। भगवान का लाभ उनकी भक्ति यानि उनसे प्रेम करने से है न कि उनके बारे में की गयी बौद्धिक चर्चा से। प्रभु के प्रति प्रेम हो, समर्पण का भाव हो, और हमारे भावों में शुद्धता हो तो कोई हानि होने कि सम्भावना नहीं है। जब पात्रता हो जाती है तब गुरु का पदार्पण भी जीवन में हो ही जाता है|
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व्यक्तिगत रूप से आपका मेरे से मतभेद हो सकता है, क्योंकि मेरी मान्यता है कि -- कुंडलिनी महाशक्ति का परमशिव से मिलन ही योग है। गुरुकृपा से इस विषय का पर्याप्त अनुभव है। क्रियायोग का अभ्यास वेद-पाठ है, और क्रिया की परावस्था ही कूटस्थ-चैतन्य और ब्राह्मी-स्थिति है। प्रणव-नाद से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है, और आत्मानुसंधान से बड़ा कोई तंत्र नहीं है। अनंताकाश से भी परे के सूर्यमंडल में व्याप्त निज आत्मा से बड़ा कोई देव नहीं है, स्थिर तन्मयता से नादानुसंधान, अजपा-जप, और ध्यान से प्राप्त होने वाली तृप्ति और आनंद ही परम सुख है।
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परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब महान आत्माओं को मैं नमन करता हूँ।
ॐ तत्सत् ! ॐ स्वस्ति !
कृपा शंकर
२५ अप्रेल २०२३

भगवत्पाद आद्यगुरु आचार्य शंकर (आदि शंकराचार्य) के २५३० वें जयंती महामहोत्सव (२५ अप्रेल २०२३) की मंगलमय हार्दिक शुभ कामनाएं, बधाई और अभिनंदन --- .

 भगवत्पाद आद्यगुरु आचार्य शंकर (आदि शंकराचार्य) के २५३० वें जयंती महामहोत्सव (२५ अप्रेल २०२३) की मंगलमय हार्दिक शुभ कामनाएं, बधाई और अभिनंदन ---

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आज वैशाख शुक्ल पंचमी को आचार्य शंकर की २५३० वीं जयंती है। उनका जन्म जीसस क्राइस्ट से ५०८ वर्ष पूर्व वैशाख शुक्ल पंचमी को हुआ था। इसी तरह उनका देहावसान जीसस क्राइस्ट से ४७४ वर्ष पूर्व हुआ था। दुर्भावना से पश्चिमी विद्वान् उनका जन्म ईसा के ७८८ वर्ष बाद होना बताते हैं, जो गलत है। शंकराचार्य मठों से उपलब्ध प्राचीनतम पांडुलिपियों, अन्य ग्रंथों में दिए विवरणों और ग्रहों की तत्कालीन स्थितियों के आधार पर उनकी सही जन्म तिथि की गणना भारतीय विद्वानों द्वारा दुबारा की गई थी।
उनकी जयंती पर उन को नमन एवं सभी सनातन धर्मावलम्बियों का अभिनन्दन॥
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एक महानतम परम विलक्षण प्रतिभा जिसने कभी इस पृथ्वी पर विचरण कर सनातन धर्म का पुनरोद्धार किया था, के बारे में लिखने का मेरा यह प्रयास सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। आज वैशाख शुक्ल पञ्चमी को उनका जन्म मेरे जैसे उनकी परंपरा के सभी अनुयायियों के ह्रदय में हुआ है, अतः शिव स्वरुप भगवान भाष्यकार शङ्करभगवद्पादाचार्य को नमन, जिनकी परम ज्योति हमारे कूटस्थ में निरंतर प्रज्ज्वलित है।
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मात्र सात वर्ष का एक संन्यासी बालक, गुरुगृह के नियमानुसार एक ब्राह्मण के घर भिक्षा माँगने पहुँचा। उस ब्राह्मण के घर में भिक्षा देने के लिए अन्न का एक दाना तक नहीं था|। ब्राह्मण पत्नी ने उस बालक के हाथ पर एक आँवला रखा और रोते हुए अपनी विपन्नता का वर्णन किया। उसकी ऐसी अवस्था देखकर उस प्रेममूर्ति बालक का हृदय द्रवित हो उठा। वह अत्यंत आर्त स्वर में माँ लक्ष्मी का स्तोत्र रचकर उस परम करुणामयी से निर्धन ब्राह्मण की विपदा हरने की प्रार्थना करने लगा। उसकी प्रार्थना पर प्रसन्न होकर माँ महालक्ष्मी ने उस परम निर्धन ब्राह्मण के घर में सोने के आँवलों की वर्षा कर दी। जगत् जननी महालक्ष्मी को प्रसन्न कर उस ब्राह्मण परिवार की दरिद्रता दूर करने वाला वह बालक था -- ‘'शंकर'’, जो आगे चलकर जगत्गुरू शंकराचार्य के नाम से विख्यात हुआ।
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आचार्य शंकर का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी को मालाबार प्रान्त (केरल) के कालड़ी गाँव में तैत्तिरीय शाखा के एक यजुर्वेदी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे। बचपन में ही उनके पिता का देहान्त हो गया था। उस समय सारे भारत में नास्तिकता का बोलबाला था। उस नास्तिकता के प्रभाव को दूरकर उन्होंने वेदान्त और भक्ति की ज्योति से सारे देश को आलोकित कर दिया। सनातन धर्म की रक्षा हेतु उन्होंने भारत में चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उस पर अपने चारों शिष्यों को आसीन किया।
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एक बार आचार्य शंकर प्रातःकाल वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने गये तब देखा कि एक युवा महिला अपने मृत पति के अंतिम संस्कार के खर्च के लिए भिक्षा मांग रही थी। उसने अपने पति की मृत देह को घाट पर इस प्रकार लेटा रखा था कि कोई भी स्नान के लिए नीचे नहीं उतर पा रहा था। विवश शंकराचार्य ने उस महिला से अनुरोध किया कि हे माते, यदि आप कृपा करके इस शव को थोडा सा परे हटा दें तो मैं नीचे उतर कर स्नान कर सकूं। उस शोकाकुल महिला ने कोई उत्तर नहीं दिया। बार बार अनुनय विनय करने पर वह चिल्ला कर बोली कि इस मृतक को ही क्यों नहीं कह देते कि परे हट जाए।
आचार्य शंकर ने कहा कि हे माते, यह मृतक देह स्वतः कैसे हट सकती है? इसमें प्राण थोड़े ही हैं। इस पर वह युवा स्त्री बोली कि हे संत महाराज, ये आप ही तो हैं जो सर्वत्र यह कहते फिरते हैं कि इस शक्तिहीन जग में केवल ब्रह्म का ही एकाधिकार चलता है। एक निष्काम, निर्गुण और त्रिगुणातीत ब्रह्म के अतिरिक्त अन्य कोई सत्ता नहीं है, सब माया है। एक सामान्य महिला से इतने गहन तत्व की बात सुनकर आचार्य जड़वत हो गए। क्षण भर पश्चात् देखा कि वह महिला और उसके पति का शव दोनों ही लुप्त हो गए हैं। स्तब्ध आचार्य शंकर इस लीला का भेद जानने के लिए ध्यानस्थ हो गए। ध्यान में वे तुरंत समझ गए कि इस अलौकिक लीला की नायिका अन्य कोई नहीं स्वयं महामाया अन्नपूर्ण थीं। यह भी उन्हें समझ में आ गया कि इस विश्व का आधार यही आदिशक्ति महामाया अपने चेतन स्वरुप में है। इस अनुभूति से आचार्य भावविभोर हो गए। उन्होंने वहीं महामाया अन्नपूर्णा स्तोत्र की रचना की। उसके एक पद का अनुवाद निम्न है ---
"हे माँ यदि समस्त देवी देवताओं के स्वरूपों का अवलोकन किया जाए तो कुछ न कुछ कमी अवश्य दृष्टिगोचर होगी। यहाँ तक कि स्वयं ब्रह्मा भी प्रलयकाल की भयंकरता से विव्हल हो जाते हैं। किन्तु हे माँ चिन्मयी एक मात्र आप ही नित्य चैतन्य और नित्य पूर्ण है।"
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आदि शंकराचार्य के बारे में सामान्य जन में यही धारणा है कि उन्होंने सिर्फ अद्वैतवाद या अद्वैत वेदांत को प्रतिपादित किया। पर यह सही नहीं है। अद्वैतवादी से अधिक वे एक भक्त थे, और उन्होंने भक्ति को अधिक महत्व दिया। अद्वैतवाद के प्रतिपादक तो उनके परम गुरु ऋषि गौड़पाद थे, जिन्होनें 'माण्डुक्यकारिका' ग्रन्थ की रचना की। आचार्य गौड़पाद ने माण्डुक्योपनिषद पर आधारित अपने ग्रन्थ मांडूक्यकारिका में जिन तत्वों का निरूपण किया उन्हीं का शंकराचार्य ने विस्तृत रूप दिया। अपने परम गुरु को श्रद्धा निवेदन करने हेतु शंकराचार्य ने सबसे पहिले माण्डुक्यकारिका पर भाष्य लिखा। आचार्य गौड़पाद श्रीविद्या के भी उपासक थे।
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शंकराचार्य के गुरु योगीन्द्र गोविन्दपाद थे जिन्होंने पिचासी श्लोकों के ग्रन्थ 'अद्वैतानुभूति' की रचना की। उनकी और भगवान पातंजलि की गुफाएँ पास पास ओंकारेश्वर के निकट नर्मदा तट पर घने वन में हैं। वहाँ आसपास और भी गुफाएँ हैं जहाँ अनेक सिद्ध संत तपस्यारत हैं। पूरा क्षेत्र तपोभूमि है। राजाधिराज मान्धाता ने यहीं पर शिवजी के लिए इतनी घनघोर तपस्या की थी कि शिवजी को ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होना पड़ा जो ओंकारेश्वर कहलाता है।
अपने 'विवेक चूडामणि' ग्रन्थ में शंकराचार्य कहते हैं ---
"भक्ति प्रसिद्धा भव मोक्षनाय नात्र ततो साधनमस्ति किंचित्।"
-- "साधना का आरम्भ भी भक्ति से होता है और उसका चरम उत्कर्ष भी भक्ति में ही होता है|"
भक्ति और ज्ञान दोनों एक ही हैं। उन्होंने संस्कृत भाषा में इतने सुन्दर भक्ति पदों की रचनाएँ की हैं जो अति दिव्य और अनुपम हैं। उनमे भक्ति की पराकाष्ठा है। इतना ही नहीं परम ज्ञानी के रूप में उन्होंने ब्रह्म सूत्रों, उपनिषदों और गीता पर भाष्य लिखे हैं जो अनुपम हैं।
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यदि भगवान भाष्यकार आदि शंकराचार्य तत्कालीन विकृत हो चुके नास्तिक बौद्ध मत का खंडन करके सनातन धर्म की पुनर्स्थापना नहीं करते तो आज भारत, भारत नहीं होता, बल्कि एक पूर्णरूपेण इस्लामिक देश होता। इस्लाम का प्रतिरोध भारत इसी लिए कर पाया क्योंकि यहाँ सनातन धर्म पुनर्स्थापित हो चुका था। बौद्धों ने अपना सिर कटा लिया या धर्मान्तरित हो गए पर इस्लाम की धार का प्रतिरोध नहीं कर पाए। पूरा मध्य एशिया (जहां उज्बेकिस्तान से मुग़ल आक्रान्ता आये थे और भारत पर राज्य किया), तुर्किस्तान सहित बौद्ध मतानुयायी हो गया था। वहाँ के मुसलमान पहिले हिन्दू थे, फिर बौद्ध बने। बौद्ध मत में अनेक विकृतियाँ आ गयी थीं, और उसके अनुयायी अत्यधिक अहिंसक और बलहीन हो गए थे।
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जब इस्लाम का जन्म हुआ तब इस्लाम की आक्रामक धार इतनी तीक्ष्ण थी कि १०० वर्ष के भीतर भीतर पूरा अरब (जो हिन्दू था), बेबीलोन (वर्तमान इराक, कुवैत), पश्चिम एशिया -- यमन से लेबनान तक, उत्तरी अफ्रीका (सोमालिया, इथियोपिया, जिबूती, सूडान, मिश्र, लीबिया, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया और मोरक्को), मध्य एशिया के सारे देश (ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, अज़र्बेजान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान आदि), रूस के तातारिस्तान, देगिस्तान व् चेचेनिया आदि प्रदेश और पूरा फारस (वर्त्तमान ईरान) इस्लाम की पताका के अंतर्गत आ गए थे।
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लेकिन इस्लाम की आंधी एक लगभग सहस्त्र वर्ष राज्य कर के भी भारत को नष्ट नहीं कर पाई, क्योंकि यहाँ सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा भक्ति मार्ग के आन्दोलन द्वारा हर प्रकार के विदेशी आक्रमण का प्रतिरोध हुआ।
मौलाना हाली ने दुःख प्रकट करते हुए लिखा था ---
"वो दीने हिजाजी का बेबाक बेड़ा
निशां जिसका अक्साए आलम में पहुंचा
मज़ाहम हुआ कोई खतरा न जिसका
न अम्मां में ठटका, न कुलज़म में झिझका
किए पै सिपर जिसने सातों समंदर
वो डुबा दहाने में गंगा के आकर॥"
यानी इस्लाम का जहाज़ी बेड़ा जो सातों समुद्र बेरोक-टोक पार करता गया और अजेय रहा, वह जब हिंदुस्थान पहुंचा और उसका सामना यहां की संस्कृति से हुआ तो वह गंगा की धारा में सदा के लिए डूब गया॥
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मेरी दृष्टी में भगवान भाष्यकार शङ्करभगवद्पादाचार्य महानतम और दिव्यतम प्रतिभा थे जिन्होंने ढ़ाई हजार वर्षों पूर्व इस धरा पर विचरण किया। सनातन धर्म की रक्षा ऐसे ही महापुरुषों से हुई है। धन्य है यह भारतभूमि जिसने ऐसी महान आत्माओं को जन्म दिया।
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ अप्रेल २०२३