Monday, 7 April 2025

आज चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्मोत्सव है ---

आज चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्मोत्सव है| एक दीपक जलाकर घर के सभी सदस्य मिलकर एक साथ बैठकर भक्तिभाव से हनुमान चालीसा व सुंदर कांड का पाठ करें| फिर भगवान का ध्यान करें| सभी श्रद्धालुओं को अभिनंदन बधाई और नमन!!

हनुमान जी का जन्म कहाँ हुआ था इस पर कुछ विवाद है| दक्षिण भारत में मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म कर्णाटक के हम्पी में या गोकर्ण में हुआ था| उत्तरी भारत में मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म झारखंड के गुमला में हुआ था| हरियाणा के कुछ भक्त कैथल में जन्म बताते हैं| इस विषय पर वैष्णव रामानंदी संप्रदाय के आचार्य जो भी बतायेंगे वह हमें मान्य है|
मेरे लिए तो हनुमान जी मेरे चैतन्य में हैं| प्राण-तत्व की जो गति है वह हनुमान जी की ही महिमा है| इस से अधिक कुछ भी व्यक्त करने में असमर्थ हूँ|
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भगवत्पाद आचार्य शंकर (आदि शंकराचार्य) कृत हनुमत् स्तोत्र :---
श्रीहनुमत् पञ्चरत्नम्
वीताखिल-विषयेच्छं जातानन्दाश्र पुलकमत्यच्छम् ।
सीतापति दूताद्यं वातात्मजमद्य भावये हृद्यम् ॥ १॥
तरुणारुण मुख-कमलं करुणा-रसपूर-पूरितापाङ्गम् ।
सञ्जीवनमाशासे मञ्जुल-महिमानमञ्जना-भाग्यम् ॥ २॥
शम्बरवैरि-शरातिगमम्बुजदल-विपुल-लोचनोदारम् ।
कम्बुगलमनिलदिष्टम् बिम्ब-ज्वलितोष्ठमेकमवलम्बे ॥ ३॥
दूरीकृत-सीतार्तिः प्रकटीकृत-रामवैभव-स्फूर्तिः ।
दारित-दशमुख-कीर्तिः पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः ॥ ४॥
वानर-निकराध्यक्षं दानवकुल-कुमुद-रविकर-सदृशम् ।
दीन-जनावन-दीक्षं पवन तपः पाकपुञ्जमद्राक्षम् ॥ ५॥
एतत्-पवन-सुतस्य स्तोत्रं यः पठति पञ्चरत्नाख्यम् ।
चिरमिह-निखिलान् भोगान् भुङ्क्त्वा श्रीराम-भक्ति-भाग्-भवति ॥ ६॥
इति श्रीमच्छंकर-भगवतः कृतौ हनुमत्-पञ्चरत्नं संपूर्णम् ॥ . ८ अप्रेल २०२०

कोलंबस और वास्कोडीगामा का सत्य ---

 कोलंबस और वास्कोडीगामा का सत्य ---

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ईसाई रिलीजन मुख्यतः दो सिद्धांतों पर खड़ा है, वे हैं -- (१) मूल पाप (Original Sin) और (२) पुनरोत्थान (Resurrection) की अवधारणा|
मूल पाप (Original Sin) की अवधारणा कहती है कि मनुष्य जन्म से ही पापी है, क्योंकि अदन की वाटिका में आदम ने भले/बुरे ज्ञानवृक्ष से परमेश्वर की आज्ञा की अवहेलना कर के वर्जित फल को खा लिया| इससे परमेश्वर बहुत नाराज हुआ, और उस की दृष्टि में आदम की सारी औलादें जन्म से ही पापी हो गईं| आदमी का हर पाप अदन की वाटिका में आदम के पाप का सीधा परिणाम है| परमेश्वर ने करुणा कर के इंसान को इस पाप से मुक्त करने के लिए अपने एकमात्र पुत्र यीशु (Jesus) को पृथ्वी पर भेजा ताकि जो उस पर विश्वास करेंगे, वे इस पाप से मुक्त कर दिये जाएँगे, और जो उस पर विश्वास नहीं करेंगे उन्हें नर्क की अनंत अग्नि में शाश्वत काल के लिए डाल दिया जाएगा|
पुनरोत्थान (Resurrection) की अवधारणा कहती है कि सूली पर मृत्यु के बाद यीशु मृतकों में से जीवित हो गए, और अन्य भी अनेक मृतकों को खड़ा कर दिया| ईसाई मतावलंबी ईसा के पुनरुत्थान को ईसाई रिलीजन के केंद्रीय सिद्धांत के रूप में मानते हैं| यह चमत्कार उनके अवतार होने को मान्यता प्रदान करता है|
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सत्य क्या है मुझे पता नहीं| सत्य का अनुसंधान करना जिज्ञासु विद्वानों का काम है| पश्चिमी जगत में दो-तीन तरह के विचार फैल रहे हैं| कुछ तो परंपरागत श्रद्धालु हैं| कुछ पश्चिमी विद्वान कह रहे हैं कि ईसा मसीह नाम के व्यक्ति ने कभी जन्म ही नहीं लिया| इनके बारे में कही गई सारी बातें सेंट पॉल नाम के एक पादरी के दिमाग की उपज हैं| कुछ विद्वान कह रहे हैं कि ईसा मसीह ने भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाओं का ही प्रचार किया| उनकी पढ़ाई-लिखाई और मृत्यु भारत में ही हुई|
प्रमाणों और विवेक के आधार पर सत्य का अनुसंधान होना चाहिए| आँख मीच कर किसी की कोई बात नहीं माननी चाहिए|
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वास्तव में चर्च पश्चिमी साम्राज्यवादियों की सेना का अग्रिम अंग था| अपना साम्राज्य फैलाने के लिए साम्राज्यवादियों की सेना जहाँ भी जाती, उस से पूर्व, चर्च के पादरी पहुँच कर आक्रमण की भूमिका तैयार करते थे| विश्व में सबसे अधिक नरसंहार और अत्याचार चर्च ने किए हैं| इसका एक उदाहरण दे रहा हूँ ---
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यह सन १४९२ ई.की बात है| एक बार पुर्तगाल और स्पेन में लूट के माल को लेकर झगड़ा हो गया| दोनों ही देश दुर्दांत समुद्री डाकुओं के देश थे जिनका मुख्य काम ही समुद्रों में लूटपाट और ह्त्या करना होता था| दोनों ही देश कट्टर रोमन कैथोलोक ईसाई थे अतः मामला वेटिकन में उस समय के छठवें पोप के पास पहुँचा| लूट के माल का एक हिस्सा पोप के पास भी आता था| अतः पोप ने सुलह कराने के लिए एक फ़ॉर्मूला खोज निकाला और एक आदेश जारी कर दिया| ७ जून १४९४ को "Treaty of Tordesillas" के अंतर्गत इन्होने पृथ्वी को दो भागों में इस तरह बाँट लिया कि यूरोप से पश्चिमी भाग को स्पेन लूटेगा और पूर्वी भाग को पुर्तगाल|
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वास्कोडिगामा एक लुच्चा लफंगा बदमाश हत्यारा और समुद्री डाकू मात्र था, कोई वीर नाविक नहीं| अपने धर्मगुरु की आज्ञानुसार वह भारत को लूटने के उद्देश्य से ही आया था| कहते हैं कि उसने भारत की खोज की| भारत तो उसके बाप-दादों और उसके देश पुर्तगाल के अस्तित्व में आने से भी पहिले अस्तित्व में था| वर्तमान में तो पुर्तगाल कंगाल और दिवालिया होने की कगार पर है जब कि कभी लूटमार करते करते आधी पृथ्वी का मालिक हो गया था|
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ऐसे ही स्पेन का भी एक लुटेरा बदमाश हत्यारा डाकू था जिसका नाम कोलंबस था| अपने धर्मगुरु की आज्ञानुसार कोलंबस गया था अमेरिका को लूटने के लिए और वास्कोडीगामा आया था भारतवर्ष को लूटने के लिए| कोलंबस अमेरिका पहुंचा तब वहाँ की जनसंख्या दस करोड़ से ऊपर थी| कोलम्बस के पीछे पीछे स्पेन की डाकू सेना भी वहाँ पहुँच गयी| उन डाकुओं ने निर्दयता से वहाँ के दस करोड़ लोगों की ह्त्या कर दी और उनका धन लूट कर यूरोपियन लोगों को वहाँ बसा दिया| वहाँ के मूल निवासी जो करोड़ों में थे, वे कुछ हजार की संख्या में ही जीवित बचे| यूरोप इस तरह अमीर हो गया|
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कितनी दुष्ट राक्षसी सोच वाले वे लोग थे जो उन्होंने मान लिया कि सारा विश्व हमारा है जिसे लूट लो| कोलंबस सन १४९२ ई.में अमरीका पहुँचा, और सन १४९८ ई.में वास्कोडीगामा भारत पहुंचा| ये दोनों ही व्यक्ति नराधम थे, कोई महान नहीं जैसा कि हमें पढ़ाया जाता है|
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आज का अमेरिका उन दस करोड़ मूल निवासियों की लाश पर खडा एक देश है| उन करोड़ों लोगों के हत्यारे आज हमें मानव अधिकार, धर्मनिरपेक्षता, सद्भाव और सहिष्णुता का पाठ पढ़ा रहे हैं|
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ऐसे ही अंग्रेजों ने ऑस्ट्रेलिया में किया| ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में वहाँ के सभी मूल निवासियों की ह्त्या कर के अंग्रेजों को वहाँ बसा दिया गया| भारत में भी अँगरेज़ सभी भारतीयों की ह्त्या करना चाहते थे, पर कर नहीं पाए|
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यह हम सब अपने विवेक से तय करें कि सत्य क्या है| सभी को धन्यवाद!
ॐ तत्सत !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
८ अप्रेल २०२१

मेरे द्वारा आध्यात्मिक प्रेरणादायक लेख लिखने का उद्देश्य अब पूर्ण हो चुका है ---

अब से बाकी बचे अत्यल्प जीवन के प्रत्येक मौन क्षण में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो, यही प्रार्थना है। हर आती-जाती साँस परमात्मा की साँस हो, जीवन का हर क्षण, हर स्पंदन, हर विचार परमात्मा को ही समर्पित हो। जीवन में ईश्वर के सिवाय अन्य कुछ भी न हो।

अति आवश्यक होने पर कभी कभी कुछ पुराने लेख पुनर्प्रेषित कर दूँगा। अब और नया लिखने की प्रेरणा नहीं मिल रही है। आप सब को नमन !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ अप्रेल २०२२

भगवान को उपलब्ध होना हमारा स्वधर्म और जन्मसिद्ध अधिकार है ---

 भगवान को उपलब्ध होना हमारा स्वधर्म और जन्मसिद्ध अधिकार है ---

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निरंतर ब्रह्म-चिंतन और भक्ति ही हमारा स्वभाव है, अन्यथा हम अभाव-ग्रस्त हैं। जीवन के प्रत्येक मौन क्षण में भगवान की पूर्ण अभिव्यक्ति हो। हर आती-जाती साँस भगवान की साँस हो। जीवन का हर क्षण, हर स्पंदन, हर विचार, -- भगवान को समर्पित हो। जीवन में भगवान के सिवाय अन्य कुछ भी न हो। भगवान को उपलब्ध होना हमारा स्वधर्म और जन्मसिद्ध अधिकार है। यदि सत्यनिष्ठा से हम चाहें, तो भगवान को उपलब्ध होने से हमें विश्व की कोई भी शक्ति नहीं रोक सकती। सत्यनिष्ठा से मेरा अभिप्राय है कि हम भगवान को चाहें, न कि उनके सामान को। या तो उनका सामान ही मिलेगा, या भगवान स्वयं ही मिलेंगे। दोनों एकसाथ नहीं मिल सकते। जिनको दोनों चाहियें, वे मुझे क्षमा करें।
ॐ तत्सत् !!
८ अप्रेल २०२३ पुनश्च: --- अब इस समय लिखने योग्य एक ही बात है कि भगवान को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। यदि सत्यनिष्ठा से हम चाहें, तो भगवान को पाने से हमें विश्व की कोई भी शक्ति नहीं रोक सकती। सत्यनिष्ठा से मेरा अभिप्राय है कि हम भगवान को चाहें, न कि उनके सामान को। या तो उनका सामान ही मिलेगा, या भगवान स्वयं ही मिलेंगे। दोनों एकसाथ नहीं मिल सकते। जिनको दोनों चाहियें, वे मुझे क्षमा करें।

इष्टदेव ही दुःखों को दूर कर सकते हैं ---

 इष्टदेव ही दुःखों को दूर कर सकते हैं ---

साक्षी भाव में निमित्त मात्र होकर ही जीवन जीयें। संसार में कष्ट तो आते ही रहेंगे, उन्हें कोई नहीं रोक सकता। हाँ, उनकी पीड़ा अवश्य कम हो सकती है, इष्टदेव की कृपा से। कोई ऐसा सार्वभौमिक नियम नहीं है जिससे संसार के सारे दुःख या कष्ट मिट सकें। हम सिर्फ प्रार्थना कर सकते हैं, और कुछ नहीं। कष्ट हों तो अपने इष्टदेव से उनके निवारण हेतु प्रार्थना करें। वे ही दुःखों को दूर कर सकते हैं। इसके लिए कोई मंत्र, तंत्र या टोटका नहीं है। ठगों से बचकर रहें। ८ अप्रेल २०२३