हम भगवान को उपलब्ध क्यों नहीं होते? ---
.
"सत्यनिष्ठा का अभाव" - एकमात्र कारण है जिससे हम भगवान को उपलब्ध नहीं हो पाते। अन्य कोई कारण नहीं है। मेरी आयु ७६ वर्ष की हो गई है। विश्व के अनेक देशों का भ्रमण इस जीवन में किया है। पृथ्वी के चारों ओर की एक परिक्रमा भी की है। जीवन में अनेक तरह के लोगों से मिलना हुआ है। अपने पूरे जीवनकाल में अंगुलियों पर गिनने योग्य दस-बारह मुमुक्षु ही ऐसे मिले हैं जिनके हृदय में भगवान को उपलब्ध होने की घोर अभीप्सा थी।
.
वास्तव में हम भगवान को नहीं, बल्कि
सांसारिक धन-दौलत, ऐश्वर्य, और सांसारिक सफलताओं को पाना चाहते हैं। अपने अहंकार की तृप्ति के लिए भक्ति का झूठा दिखावा करते हैं। अपनी मानसिक कल्पना और झूठे शब्द जाल से हम स्वयं को ठग रहे हैं। हमने भगवान को साधन बना रखा है, पर साध्य तो संसार ही है। हम भगवान को पाना ही नहीं चाहते। उदाहरण के लिए दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए विद्यार्थी दिन रात एक कर देते हैं, हाड़तोड़ परिश्रम करते हैं, तब जाकर दसवीं उत्तीर्ण होती है। पर जीवन की जो उच्चतम उपलब्धी भगवान हैं, उन्हें हम सिर्फ ऊँची ऊँची बातों के शब्दजाल से ही प्राप्त करना चाहते हैं।
.
प्राचीन भारत की संस्कृति में भगवान यानि ब्रह्म को पाने का ही लक्ष्य जीवन में हुआ करता था। प्राचीन भारत में सम्मान हुआ तो ब्रह्मज्ञों का ही हुआ। जीवात्मा का उद्गम जहाँ से हुआ है, वहाँ अपने स्त्रोत में बापस तो जाना ही पड़ेगा, चाहे लाखों जन्म और लेने पड़ें। तभी जीवन चक्र पूर्ण होगा। इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, बहुत सारा सद्साहित्य इस विषय पर उपलब्ध है। अनेक संत महात्मा हैं जो निष्ठावान मुमुक्षुओं का मार्गदर्शन करते रहते हैं। अतः और लिखने की आवश्यकता नहीं है। जब हृदय में अहैतुकी परम प्रेम और सत्यनिष्ठा होती है तब भगवान स्वयं मार्गदर्शन करते हैं। शिष्य में पात्रता होने पर सद्गुरु का आविर्भाव स्वतः ही होता है।
.
जब हम अग्नि के समक्ष बैठते हैं तो ताप की अनुभूति अवश्य होती है। वैसे ही जब भी हम परमात्मा का स्मरण या ध्यान करते हैं तो उनके अनुग्रह की प्राप्ति अवश्य होती है। परमात्मा को पाने का मार्ग है अहैतुकी (Unconditional) परमप्रेम। प्रेम में कोई माँग नहीं होती, मात्र शरणागति और समर्पण होता है। प्रेम, गहन अभीप्सा और समर्पण हो तो और कुछ भी नहीं चाहिए। सब कुछ अपने आप ही मिल जाता है।
.
अपने प्रेमास्पद भगवान का ध्यान निरंतर तेलधारा के सामान होना चाहिये। प्रेम हो तो आगे का सारा ज्ञान स्वतः ही प्राप्त हो जाता है, और आगे के सारे द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं। जो लोग सेवानिवृत है उन्हें तो अधिक से अधिक समय नामजप, मनन, निदिध्यासन और ध्यान में बिताना चाहिए| सांसारिक नौकरी में अपना वेतन प्राप्त करने के लिए दिन में कम से कम आठ घंटे काम करना पड़ता है। व्यापारी की नौकरी तो चौबीस घंटे की होती है। कुछ समय भगवान की नौकरी भी करनी चाहिए| जब जगत मजदूरी देता है तो भगवान क्यों नहीं देंगे? उनसे मजदूरी तो माँगनी ही नहीं चाहिए| माँगना ही है तो सिर्फ उनका प्रेम; प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं। प्रेम को ही मजदूरी मान लीजिये। एक बात का ध्यान रखें -- मजदूरी उतनी ही मिलेगी जितनी आप मेहनत करोगे। बिना मेहनत के मजदूरी नहीं मिलेगी। इस सृष्टि में निःशुल्क कुछ भी नहीं है। हर चीज की कीमत चुकानी पडती है।
.
आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को बारम्बार प्रणाम। आप सब की जय हो।
ॐ तत्सत् !
कृपाशंकर
११ अप्रेल २०२३