अनेक जन्मों से संचित पुण्य कर्मफलों का जब उदय होता है तब भगवान की भक्ति जागृत होती है। भगवान जिन पर कृपा करते हैं, उनका मार्गदर्शन भी करते हैं, इधर-उधर भटकने नहीं देते। हमारे में एक चुम्बकत्व है, वह चुम्बकत्व ही हमारे सारे कार्य करेगा। हम सिर्फ अपने समर्पण की पूर्णता पर ध्यान दें।
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कुछ पाने की आकांक्षा एक सूक्ष्म अहंकार मात्र है। जो पाया जाता है, वह खोया भी जाता है। पाने को अब कुछ भी नहीं है। किसी भी तरह की कोई कामना नहीं हो। मेरी हरेक सोच, हर विचार, और हर कार्य भारत की अस्मिता की रक्षा व राष्ट्रहित में ही होगा। मेरे विचारों में स्पष्टता और दृढ़ता है, व कोई संशय नहीं है। मुझे मेरी कमियों का भी पता है, जिनसे ऊपर उठने का प्रयास कर रहा हूँ। ईश्वर मेरी सहायता अवश्य करेंगे। अन्य किसी से कोई अपेक्षा नहीं है। ईश्वर से संवाद हेतु अब शब्दों की आवश्यकता नहीं रही है।
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भगवती के तेज को बिना उनकी परम कृपा के सहन नहीं कर सकते। भगवती से प्रार्थना करेंगे कि वे अपने तेज को सहने की शक्ति हमें प्रदान करें। अपनी माता से अपेक्षा बहुत अधिक होती है। हमारी तो एकमात्र और अंतिम प्रार्थना है कि वे परम कृपा कर के अपने देवत्व का विलय हमारे अस्तित्व में कर दें, और इतनी शक्ति हमें प्रदान करें कि उनके देवत्व को हम धारण कर सकें।
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