परमात्मा का आकर्षण अत्यधिक प्रबल है। मैं स्वयं को रोक नहीं सकता।
अब से बचा-खुचा सारा समय और यह जीवन परमात्मा की उपासना को समर्पित है -- दिन में २४ घंटे, सप्ताह में सातों दिन।
सारी सृष्टि को अपने साथ लेकर परमात्मा की चेतना स्वयं ही अपना ध्यान करती है। कहीं कोई भेद नहीं है। मैं तो एक निमित्त मात्र हूँ, जो केवल समर्पण कर सकता हूँ, इससे अधिक कुछ भी नहीं। आप सब की यही सबसे बड़ी सेवा है, जो मैं कर सकता हूँ।
हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
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