Saturday, 12 April 2025

आध्यात्म की अनेक बातों को समझने और व्यक्त करने की क्षमता मुझ में नहीं है ---

आध्यात्म की अनेक बातों को समझने और व्यक्त करने की क्षमता मुझ में नहीं है। भगवती महासरस्वती,महालक्ष्मी, महाकाली, और श्री की पूर्ण कृपा मुझ पर हो। मेरे अन्त:करण में परमब्रह्म परमात्मा की निरंतर अभिव्यक्ति हो। मेरी चेतना सदा ब्रह्ममय हो।

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भगवान हैं, मेरे साथ हैं, यहीं पर हैं, इसी समय हैं, हर स्थान पर हर समय हैं। यदि किसी को नहीं दिखाई देते, तो दोष उस के बुरे कर्मों का है। समाज में कदम-कदम पर हर ओर छाई, हर तरह की भयंकर कुटिलता (छल, कपट, झूठ) व विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी मैं अपनी आस्था पर पूरी श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा से दृढ़ हूँ। गीता में भगवान कहते हैं --

"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥६:३०॥"
अर्थात् -- जो सब में मुझे देखता है और सब को मुझ में देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता, और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।
He who sees Me in everything and everything in Me, him shall I never forsake, nor shall he lose Me.
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बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥१७:१९॥"
अर्थात् -- बहुत जन्मों के अन्त में (किसी एक जन्म विशेष में) ज्ञान को प्राप्त होकर कि 'यह सब वासुदेव है' ज्ञानी भक्त मुझे प्राप्त होता है; ऐसा महात्मा अति दुर्लभ है॥
After many lives, at last the wise man realizes Me as I am. A man so enlightened that he sees God everywhere is very difficult to find.
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अनात्म विषयों से रुचि हटती जा रही है। आत्मा में रमण का आनंद ही कुछ और है। आत्मा में रमण करने से सूक्ष्म लोकों के महात्मा भी बड़े प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद देते हैं। भगवान के प्रेम की एक झलक भी पा लोगे तो मत्त हो जाओगे।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१३ अप्रेल २०२३

हर परिस्थिति में भारत के सनातन गौरव, आत्म-सम्मान, प्रकृति और धर्म की रक्षा हो। दैवीय शक्तियाँ हमारी सहायता करें।

हर परिस्थिति में भारत के सनातन गौरव, आत्म-सम्मान, प्रकृति और धर्म की रक्षा हो। दैवीय शक्तियाँ हमारी सहायता करें। परमात्मा से परमप्रेम मेरा स्वभाव है। मुझे परमात्मा से कुछ भी नहीं चाहिए। योग या भोग की किसी आकांक्षा का जन्म ही न हो। केवल उन्हें पूर्णतः समर्पित होने की अभीप्सा हो। जो कुछ भी उनका दिया हुआ है, वह सब कुछ, और स्वयं इस अकिंचन का भी समर्पण वे पूर्णतः स्वीकार करें। एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है, कोई मैं या मेरा नहीं है। मुझे ईश्वर ने जो भी कार्य दिया है, पूरी सत्यनिष्ठा से उसे सम्पन्न करना ही मेरा दायित्व और परमधर्म है। अन्य जैसी हरिःइच्छा। अपने प्रेमास्पद का ध्यान निरंतर तेलधारा के समान होना चाहिए। आगे के सारे द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं।

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परमात्मा का आकर्षण अत्यधिक प्रबल है। मैं स्वयं को रोक नहीं सकता। अब से बचा-खुचा सारा समय और यह जीवन परमात्मा की उपासना को समर्पित है -- दिन में २४ घंटे, सप्ताह में सातों दिन। सारी सृष्टि को अपने साथ लेकर परमात्मा की चेतना स्वयं ही अपना ध्यान करती है। कहीं कोई भेद नहीं है। मैं तो एक निमित्त मात्र हूँ, जो केवल समर्पण कर सकता हूँ, इससे अधिक कुछ भी नहीं। आप सब की यही सबसे बड़ी सेवा है, जो मैं कर सकता हूँ।
. नित्य प्रातः उठते ही संकल्प करें ---
"आज का दिन मेरे इस जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिन होगा| आज के दिन मेरे इस जीवन में परमात्मा के परमप्रेम की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति होगी| मैं परमात्मा का अमृतपुत्र हूँ, मैं परमात्मा के साथ एक हूँ, मैं आध्यात्म के उच्चतम शिखर पर आरूढ़ हूँ| मैं परमशिव हूँ, शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि|" ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर

१२ अप्रेल २०२५