हम व्यवहार में हिन्दू बनें, हिंदु समाज में कोई किसी भी तरह की कमी नहीं है। हम उच्च कोटि का अच्छा मौलिक साहित्य पढ़ें (विदेशी लेखकों का नहीं), नित्य नियमित व्यायाम करें, अच्छा आहार लें और तनावमुक्त जीवन जीयें। प्रातः-सायं परमात्मा का ध्यान करें, किसी भी तरह का नशा न करें, और हर दृष्टि से शक्तिशाली बनें। हिन्दू समाज अपनी हीनता के बोध से ऊपर उठें। भारत का हिन्दू समाज निश्चित रूप से अपने गौरवशाली परम वैभव को प्राप्त होगा|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
२९ अप्रेल २०२१
Monday, 28 April 2025
भारत विजयी होकर एक अखंड, धर्मनिष्ठ, व आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र होगा। सत्य-सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा व वैश्वीकरण होगा ---
भगवान हमें अपने साथ अनन्य बनाना चाहते हैं, अतः उन्हीं की उपासना करें ---
भगवान हमें अपने साथ अनन्य बनाना चाहते हैं, अतः उन्हीं की उपासना करें ---
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हम भगवान में ही अपने पूरे मन और बुद्धि को लगा कर भगवान में ही निरंतर निवास करें। अनन्य भक्ति और उपासना क्या है? यह स्वयं को ही समझना होगा, कोई अन्य समझाने नहीं आएगा। कोई बात समझ में नहीं आए तो उसे समझने के लिए भगवान से ही प्रार्थना करें। दूसरों के उत्तर कभी संतुष्ट नहीं कर सकते। हर शंका का निवारण भगवान से स्वयं ही करो। भगवान के प्रति जो मेरी समझ है वह मेरी अपनी समझ है जो स्वयं भगवान ने ही मुझे समझाई है। मैँ किसी भी अन्य को नहीं समझा सकता। मेरी हरेक साँस स्वयं भगवान ले रहे हैं, और मुझे एक निमित्त मात्र यानि अपना उपकरण बनाकर सारी उपासना भी स्वयं ही कर रहे हैं। उनके सिवाय कोई अन्य नहीं है।
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उपासना क्या है? --- अचिंत्य और कूटस्थ परमात्मा को बुद्धि का विषय बनाकर, तैलधारा के तुल्य दीर्घकाल तक पूरे मन से समभाव से उस में स्थित रहने के अभ्यास को उपासना कहते हैं। यह उसी के समझ में आ सकती है जिस पर भगवान की विशेष कृपा हो। भगवान को प्रेम करने से ही उनकी कृपा प्राप्त होती है।
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अपने सारे कर्मफल और अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) परमात्मा को सौंप दें। उनके अतिरिक्त हमारे पास और है ही क्या? फिर सारे सदगुण परमात्मा की कृपा से स्वयं ही प्राप्त होंगे। भगवान को कौन प्रिय है? इसका उत्तर भगवान ने गीता में अनेक स्थानों पर दिया है। हम उनके प्रिय बनें। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ अप्रेल २०२३
अनन्य भक्ति योग व उपासना ---
अनन्य भक्ति योग व उपासना ---
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मैं अपने सबसे अधिक प्रिय विषय पर लिख रहा हूँ। मेरा सर्वाधिक प्रिय विषय है -- "अनन्य भक्ति योग"। परमात्मा की अनन्य भक्ति को ही "अव्यभिचारिणी भक्ति" कहते हैं। हम परमात्मा के साथ अनन्य बनें, इसी की उपासना करें। अपने पूरे अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) को लगा कर परमात्मा में ही निरंतर रमण और निवास करें। यह एक ऐसा विषय है जो हरिःकृपा से ही समझ में आ सकता है। परमात्मा को कौन प्रिय है और कैसे उनकी कृपा प्राप्त होती है? इसका उत्तर भगवान ने गीता में अनेक स्थानों पर दिया है।
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आचार्य शंकर के अनुसार -- "अचिंत्य और कूटस्थ परमात्मा को बुद्धि का विषय बनाकर, तैलधारा के तुल्य दीर्घकाल तक पूरे मन से समभाव से उस में स्थित रहने के अभ्यास को उपासना कहते हैं।"
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यह विषय उसी के समझ में आ सकता है जिस पर भगवान की विशेष कृपा हो। भगवान को प्रेम करने से ही उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है। यथासंभव अधिकाधिक भक्ति (भगवान से परम प्रेम) करें।
इस से अधिक कहने को मेरे पास कुछ भी नहीं है। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ अप्रेल २०२४
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पुनश्च: --- थोड़ा चिंतन कीजिए तब समझ में आयेगा कि "अनन्य" का अर्थ क्या है| गहराई में जाने के लिए वेदान्त के दृष्टिकोण से विचार कीजिए|
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
अर्थात् अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ||
अर्थात् अगर कोई दुराचारी-से-दुराचारी भी अनन्यभावसे मेरा भजन करता है, तो उसको साधु ही मानना चाहिये| कारण कि उसने निश्चय बहुत अच्छी तरह कर लिया है|
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति| कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति||९:३१||"
अर्थात् हे कौन्तेय, वह शीघ्र ही धर्मात्मा बन जाता है और शाश्वत शान्ति को प्राप्त होता है| तुम निश्चयपूर्वक सत्य जानो कि मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता||
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