Monday, 28 April 2025

भगवान हमें अपने साथ अनन्य बनाना चाहते हैं, अतः उन्हीं की उपासना करें ---

 भगवान हमें अपने साथ अनन्य बनाना चाहते हैं, अतः उन्हीं की उपासना करें ---

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हम भगवान में ही अपने पूरे मन और बुद्धि को लगा कर भगवान में ही निरंतर निवास करें। अनन्य भक्ति और उपासना क्या है? यह स्वयं को ही समझना होगा, कोई अन्य समझाने नहीं आएगा। कोई बात समझ में नहीं आए तो उसे समझने के लिए भगवान से ही प्रार्थना करें। दूसरों के उत्तर कभी संतुष्ट नहीं कर सकते। हर शंका का निवारण भगवान से स्वयं ही करो। भगवान के प्रति जो मेरी समझ है वह मेरी अपनी समझ है जो स्वयं भगवान ने ही मुझे समझाई है। मैँ किसी भी अन्य को नहीं समझा सकता। मेरी हरेक साँस स्वयं भगवान ले रहे हैं, और मुझे एक निमित्त मात्र यानि अपना उपकरण बनाकर सारी उपासना भी स्वयं ही कर रहे हैं। उनके सिवाय कोई अन्य नहीं है।
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उपासना क्या है? --- अचिंत्य और कूटस्थ परमात्मा को बुद्धि का विषय बनाकर, तैलधारा के तुल्य दीर्घकाल तक पूरे मन से समभाव से उस में स्थित रहने के अभ्यास को उपासना कहते हैं। यह उसी के समझ में आ सकती है जिस पर भगवान की विशेष कृपा हो। भगवान को प्रेम करने से ही उनकी कृपा प्राप्त होती है।
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अपने सारे कर्मफल और अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) परमात्मा को सौंप दें। उनके अतिरिक्त हमारे पास और है ही क्या? फिर सारे सदगुण परमात्मा की कृपा से स्वयं ही प्राप्त होंगे। भगवान को कौन प्रिय है? इसका उत्तर भगवान ने गीता में अनेक स्थानों पर दिया है। हम उनके प्रिय बनें। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ अप्रेल २०२३

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