बुद्ध ने कभी कोई धर्म अलग से नहीं चलाया। उनके उपदेश सनातन धर्म के ही उपदेश थे
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कल ५ मई २०२३ को बुद्ध पूर्णिमा थी। सिद्धांत रूप से बौद्ध मत बहुत अच्छा होगा, लेकिन आज तक जीवन में मुझे कोई भी ऐसा बौद्ध मतानुयायी नहीं मिला है जिससे मैं प्रभावित हुआ हूँ। कई बौद्ध देशों का भ्रमण मैंने किया है जैसे सिंहल द्वीप (श्रीलंका), श्याम (थाइलेंड), दक्षिण कोरिया, जापान, चीन और ताईवान। वहाँ के कुछ अनुभव भी हैं।
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एक तो सारे बौद्ध मतानुयायी गोमांस का भक्षण
करते हैं। कोरिया और चीन में तो कुत्ते का मांस भी खाते हैं। जापान के लोग कहने को तो बौद्ध मतानुयायी हैं, लेकिन उनका इतिहास देखो तो उनके आचरण में अत्यधिक हिंसा ही हिंसा और यौनाचार ही यौनाचार की प्रधानता रही है। व्यावहारिक रूप से बौद्ध मत इस समय विश्व में कहीं भी नहीं दिखाई दे रहा है। सब नाम के ही बौद्ध हैं। श्रीलंका के बौद्ध गुरु, हिंदुओं से पता नहीं क्यों द्वेष रखते हैं? जब कि बौद्ध मत का प्रचार-प्रसार सारे विश्व में हिन्दू ब्राह्मणों ने ही किया था।
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श्रीलंका, थाइलेंड, म्यानमार व अन्य दक्षिणपूर्वी देशों में हीनयान बौद्धमत है। चीन, ताइवान, कोरिया, मंगोलिया और जापान में महायान बौद्धमत है। तिब्बत में वज्रयान बौद्धमत है। इस्लाम के आगमन से पूर्व पूरा मध्य एशिया, अफगानिस्तान और तुर्की भी बौद्ध महायान मत के अनुयायी थे।
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बुद्ध के देहावसान से पाँच सौ वर्षों तक बुद्ध की शिक्षाएं कहीं भी नहीं लिखी गई थीं। उनके पाँच सौ वर्षों के बाद श्रीलंका के अनुराधापुर में एक सभा हुई थी जिसमें हुई चर्चाओं को पाली भाषा में लिपिबद्ध किया गया। जिन्होंने उन चर्चाओं को स्वीकार किया वे हीनयान कहलाये, और जिन्होंने उन्हे अस्वीकार किया वे महायान कहलाये। वज्रयान बौद्ध मत तो हिन्दू धर्म की दस महाविद्याओं में से एक छिन्नमस्ता देवी की आराधना का अपभ्रन्स और परिवर्तित विकृत रूप है। उनके ध्यान मंत्र "ॐ मणिपद्मे हुं" का अर्थ तो यही है। ॐ ईश्वर का वाचक है, हुं छिन्नमस्ता का बीजमंत्र है जिनका निवास मणिपुर चक्र के पद्म में है। यह मंत्र उनका ध्यानमंत्र है, जिसका अर्थ है - मैं मणिपुर पद्म (सूक्ष्म देह में नाभि के पीछे का भाग) में भगवती छिन्नमस्ता का ध्यान करता हूँ। तिब्बत के लामा लोग हिमाचल के ऊना जिले में स्थित चिंत्यपूर्णी मंदिर में बहुत आते रहे हैं। यह माँ छिन्नमस्ता का ही मंदिर है। सूक्ष्म देह में सुषुम्ना की उपनाड़ी वज्रा में साधना के कारण यह वज़्रयान कहलाता है।
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चीन में पढ़ाया जाता है कि चीन में बौद्ध मत सन ००६७ ई. में भारत से कश्यप मातंग और धर्मारण्य नाम के दो ब्राह्मण लाए थे। लेकिन व्यावहारिक रूप से चीन के सबसे प्रतापी सम्राट कुबलई खान तक चीन में हिन्दू धर्म ही था। कूबलई खान का दादा चंगेज़ खान एक महान हिन्दू सम्राट था। उसके नाम का मंगोलियन भाषा में सही उच्चारण "गंगेश हान" है। उसका वास्तविक नाम गंगेश हान था। श्रीकृष्ण के ही एक नाम "कान्ह" का प्रचलन उस क्षेत्र में खूब था। कान्ह का अपभ्रन्स "हान" हुआ जो एक अति सम्माननीय उपाधि थी। "खान" शब्द, "हान" का ही अपभ्रन्स है।
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सम्राट कूबलई खान ने बौद्ध मत स्वीकार कर लिया था। उन्होंने ही प्रथम दलाई लामा की नियुक्ति की थी। उनका राज्य उत्तर में सइबेरिया की बाइकाल झील से दक्षिण में विएतनाम, और पूर्व में कोरिया से पश्चिम में कश्यप सागर (पृथ्वी का २०% भाग) तक था। उनके प्रभाव से बौद्ध मत उस क्षेत्र में खूब फैला।
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ईसा की पाँचवी या छठी सदी में बोधिधर्म नाम के एक साधु भारत से चीन के हुनान प्रांत के शाओलिन मंदिर में गए थे। वहाँ कुछ समय रहने के पश्चात वे जापान गए। जापान में बौद्ध मत उन बोधिधर्म नाम के साधु ने ही फैलाया।
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भारत से बौद्ध मत के ब्राह्मण हिन्दू प्रचारक जब दक्षिण-पूर्व एशिया में गए तो उन्होंने एक विशाल नदी को देखा, जिसका नाम उन्होंने "माँ गंगा" रखा। उस नदी "माँ गंगा" का ही नाम अपभ्रन्स होते होते "मेकोन्ग" नदी पड़ गया जो उस क्षेत्र की जीवन रेखा है।
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एक बार दक्षिण कोरिया में मैं एक बहुत ऊंचे पर्वत पर स्थित एक बौद्ध मठ में घूमने गया। साथ में एक स्थानीय मित्र को ले गया जिसे अंग्रेजी भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान था। उसके माध्यम से वहाँ के प्रमुख साधु से खूब बातचीत की। बहुत भले व्यक्ति थे जिन्होंने मेरा खूब सत्कार किया। उन्होंने मुझे पढ़ने को कोरियन भाषा में कुछ साहित्य भी दिया जो मेरे लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर था। वहाँ अनेक साधु वहाँ की भाषा में कुछ मंत्रों का पाठ कर रहे थे। मैंने बड़े ध्यान से उन मंत्रों को सुना। बीच बीच में कुछ संस्कृत के शब्द भी थे।
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भारत के जो नव बौद्ध हैं, वे हर समय हिंदुओं की विशेष कर के ब्राह्मणों की तो निंदा ही निंदा करते रहते हैं। क्या परनिंदा और द्वेष ही उनका धर्म है? बुद्ध ने तो कभी भी कहीं पर भी द्वेष और परनिंदा के उपदेश नहीं दिए हैं। जो भी है और जैसे भी है, मैं तो सभी की प्रशंसा और सभी को नमन ही करता हूँ। सभी में परमात्मा की अभिव्यक्ति हो। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
६ मई २०२३
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पुनश्च: --- संस्कृत का "कैवल्य" शब्द अपभ्रन्स होते होते चीनी भाषा में कुबलई हो गया। चीन के अंतिम महान हिन्दू सम्राट कूबलई खान का वास्तविक नाम "कैवल्य हान" था। उन्होंने बौद्धों को प्रश्रय दिया था, और स्वयं भी बौद्ध हो गए थे। उनके पश्चात चीन से मंगोल साम्राज्य ही नष्ट हो गया था।