वाणलिंग क्या होता है? ----
Monday, 24 January 2022
वाणलिंग क्या होता है? ----
अपनी कमियों व कर्मों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं, भगवान नहीं ---
अपनी कमियों व कर्मों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं, भगवान नहीं ---
मेरे आज्ञाकारी शिष्य, मेरे अनुयायी, मेरे मित्र, और मेरी संतान कौन हैं? ---
मेरे आज्ञाकारी शिष्य, मेरे अनुयायी, मेरे मित्र, और मेरी संतान कौन हैं? ---
उत्तरायण और दक्षिणायण अब कहीं बाहर नहीं, मेरे सूक्ष्म शरीर में ही हरेक साँस के साथ घटित हो रहे हैं ---
उत्तरायण और दक्षिणायण अब कहीं बाहर नहीं, मेरे सूक्ष्म शरीर में ही हरेक साँस के साथ घटित हो रहे हैं। मेरे सूक्ष्म शरीर में सहस्त्रार-चक्र -- उत्तर दिशा है; मूलाधार -- दक्षिण दिशा है; भ्रूमध्य -- पूर्व दिशा है; और बिन्दु जहाँ शिखा रखते हैं -- वह पश्चिम दिशा है। आज्ञा-चक्र मेरा आध्यात्मिक हृदय है। सुषुम्ना की ब्रह्मनाड़ी मेरा परिक्रमा पथ है।
आप सब को उत्तरायण की मंगलमय शुभ कामनाएँ ---
आप सब को उत्तरायण की मंगलमय शुभ कामनाएँ प्रेषित करते हुए मैं अपने हृदय के अंतरतम विचारों को भी सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ ---
मकर संक्रांति/पोंगल के शुभ अवसर पर तीर्थराज त्रिवेणी संगम में स्नान करें ---
मकर संक्रांति/पोंगल के शुभ अवसर पर तीर्थराज त्रिवेणी संगम में स्नान करें ---
मुझे सुधारने की कौशिस न करें ---
जिनको मेरे विचार पसंद नहीं हैं, वे मुझे unfriend और block कर दें। मेरे लेख पढ़ कर अपना समय नष्ट न करें। मुझे मेसेन्जर पर वीडियो और अनावश्यक लेख और अभिवादन न भेजें। मैं उन्हें कभी नहीं देखता।
सनातन-धर्म का पुनरोत्थान व वैश्वीकरण अवश्यंभावी है, जिसे कोई रोक नहीं सकता ---
सनातन-धर्म का पुनरोत्थान व वैश्वीकरण अवश्यंभावी है, जिसे कोई रोक नहीं सकता ---
ॐ विश्वं विष्णु: ----
विष्णु सहस्त्रनाम का आरंभ "ॐ विश्वं विष्णु:" शब्दों से होता है। इन तीन शब्दों में ही सारा सार आ जाता है। आगे सब इन्हीं का विस्तार है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह पूरी सृष्टि यानि सम्पूर्ण ब्रह्मांड ही विष्णु है। जो कुछ भी सृष्ट या असृष्ट है, वह सब विष्णु है। हम विष्णु में विष्णु को ढूंढ रहे हैं। ढूँढने वाला भी विष्णु है। एक महासागर की बूंद, महासागर को ढूंढ रही है। यह बूंद समर्पित होकर स्वयं विष्णु है।
हे प्रभु तुम कितने सुन्दर हो ---
हे प्रभु तुम कितने सुन्दर हो! तुम्हारी सुन्दरता शब्दों में नहीं बंध सकती। मैं तुम्हारे साथ एक हूँ। मुझे कभी भी स्वयं से पृथक ना करो।
योगक्षेमं वहाम्यहम् ---
योगक्षेमं वहाम्यहम् ---
वास्तविक मृत्यु तो परमात्मा से विमुखता है ---
शास्त्रों के अनुसार प्रमाद ही मृत्यु है, पर वास्तविक मृत्यु तो परमात्मा से विमुखता हैे। परमात्मा का ध्यान भ्रूमध्य में ज्योतिर्मय ब्रह्म के रूप में अजपा-जप (हंस-योग/ हंसवती-ऋक) के साथ कीजिये। इसकी विधि किसी अच्छे संत-महात्मा से सीख लें।
मुझे सिर्फ तीन बातें कहनी हैं। कोई चौथी बात नहीं है ---
मुझे सिर्फ तीन बातें कहनी हैं। कोई चौथी बात नहीं है।
देवता हमारी सहायता क्यों नहीं करते? ---
क्योंकि उनकी दृष्टि में हम चोर हैं। देवताओं को हमारा कल्याण करने की शक्ति हमारे द्वारा किए हुए यज्ञों आदि से ही प्राप्त होती है। हम उन्हें यज्ञ आदि द्वारा शक्ति देंगे तो वे उचित समय पर वृष्टि आदि से हमारा कल्याण करेंगे। गीता में भगवान कहते हैं --
आध्यात्म में कुछ पाने या प्राप्ति की कामना एक मरीचिका है ----
आध्यात्म में कुछ पाने या प्राप्ति की कामना एक मरीचिका है। जो कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है, वह तो हम "स्वयं" हैं। आध्यात्मिक मार्ग पर मार्ग-दर्शन सब को प्राप्त होता है। कोई यदि यह कहे कि उसे मार्ग-दर्शन नहीं मिला है तो वह झूठ बोल रहा है। भगवान की कृपा सब पर समान रूप से है।