देश के रजोगुण में वृद्धि, और तमोगुण का ह्रास देश की प्रगति का सूचक है ---
Tuesday, 18 March 2025
देश के रजोगुण में वृद्धि, और तमोगुण का ह्रास देश की प्रगति का सूचक है ---
हमारे मोहल्ले की होली अवश्य देखिये ---
https://www.youtube.com/watch?v=LBzzcoPjiOM
एक ब्रह्मज्ञ किसी भी पाप से लिप्त नहीं होता है ---
एक ब्रह्मज्ञ किसी भी पाप से लिप्त नहीं होता है। उस आत्मविद को कोई पाप छू भी नहीं सकता। गीता में भगवान कहते हैं --
भगवान की पकड़ बड़ी मजबूत होती है ---
भगवान की पकड़ बड़ी मजबूत होती है। प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में नींद से उठते ही यदि वे पकड़ते हैं तो उल्लास मनाकर उनका स्वागत कीजिये और भाग्यशाली मानते हुए स्वयं को उनके हाथों में सौंप दीजिये। कई बार हम भगवान की चेतना में उठते हैं, वह दिन बड़ा शुभ होता है। उठते ही उनके नाम का कीर्तन और ध्यान कीजिये।
सत्य-सनातन-धर्म ही भारत की एकमात्र राजनीति होगी व भारत एक सत्य-धर्मनिष्ठ राष्ट्र होगा ---
सत्य-सनातन-धर्म ही भारत की एकमात्र राजनीति होगी व भारत एक सत्य-धर्मनिष्ठ राष्ट्र होगा। यह सृष्टिकर्ता परमात्मा का संकल्प है।
अभीष्ट के लिए तपस्या ........
अभीष्ट के लिए तपस्या ........
हमारे में सदगुण होंगे तभी हम अपनी भौतिक समृद्धि को सुरक्षित रख सकते हैं ---
हम स्वयं में बिना सदगुणों का विकास किये सांसारिक वैभव को प्राप्त करना चाहते हैं, यह हमारे पतन के मुख्य कारणों में से एक है| हमारे में सदगुण होंगे तभी हम अपनी भौतिक समृद्धि को सुरक्षित रख सकते हैं| .
वह कौन सा मार्ग है जो हमें सीधा परमात्मा तक ले जाता है? ---
वह कौन सा मार्ग है जो हमें सीधा परमात्मा तक ले जाता है? सिर्फ एक ही मार्ग है -- जो हमारी सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी में स्थित सभी चक्रों को भेदते हुए ब्रह्मरंध्र से बाहर की अनंतता से भी परे परमशिव में खुलता है| अन्य कोई मार्ग नहीं है| सुषुम्ना में भी तीन उपनाड़ियाँ हैं -- चित्रा, वज्रा और ब्राह्मी| इनमें से ब्रह्म उपनाड़ी का मार्ग ही योगियों का मार्ग है| इस मार्ग के पथिकों को ऊर्जा मिलती है -- भक्ति और समर्पण से| इसका बोध भी हरिःकृपा से ही होता है|
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सहस्त्रार में ज्योतिर्मय-ब्रह्म का ध्यान ---
सहस्त्रार में ज्योतिर्मय-ब्रह्म का ध्यान -- गुरु-चरणों का ध्यान है| सहस्त्रार में स्थिति -- गुरु-चरणों में आश्रय है| मेरी हर साँस -- मेरे और परमात्मा के मध्य में एक कड़ी (Link) है| इन साँसों ने ही मुझे परमात्मा से जोड़ रखा है| मुझे निमित्त बनाकर भगवान स्वयं, इस देह के माध्यम से साँस ले रहे हैं| हर साँस के साथ साथ सुषुम्ना में जो प्राण-तत्व प्रवाहित हो रहा है, वह मुझे परमात्मा की ओर निरंतर धकेल रहा है| मेरे लिए कूटस्थ में ध्यान ही वेदपाठ है|
भारत में धर्म की पुनःप्रतिष्ठा और वैश्वीकरण होगा ---
भारत में धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण भी होगा। भारत एक सत्यनिष्ठ धर्मावलम्बी अखंड हिन्दू राष्ट्र भी होगा। असत्य का अंधकार भी दूर होगा। हम सदा परमात्मा की चेतना में रहें। यही भगवत्-प्राप्ति है, यही सत्य-सनातन-धर्म का सार है, और यही धर्म का पालन है, जो सदा हमारी रक्षा करेगा। यही हमारा कर्म है और यही हमारी भक्ति है। भगवान स्वयं हमारी चिंता कर रहे हैं।
शिव कृपा क्या होती है? ---
शिव कृपा क्या होती है? ---
एकमात्र महिमा उस भक्त की है, जो सदा भगवान का भजन करता है --- .
एकमात्र महिमा उस भक्त की है, जो सदा भगवान का भजन करता है ---
मेरे पास न तो कोई प्रश्न है, और न किसी प्रश्न का कोई उत्तर ---
मेरे पास न तो कोई प्रश्न है, और न किसी प्रश्न का कोई उत्तर ---
भगवान की चेतना में समर्पित होकर हरेक कार्य राष्ट्रहित में करें ---
भगवान की चेतना में समर्पित होकर हरेक कार्य राष्ट्रहित में करें। हम सत्य-धर्मनिष्ठ हों। हमारी हर क्रिया में भगवान की अनुभूति/अभिव्यक्ति हो।
गुरु का स्वयं में विलय ही गुरु-पूजा है ---
गुरु का स्वयं में विलय ही गुरु-पूजा है ---
.गुरु की देह तो प्रतीकात्मक है, यह शरीर तो गुरु को मिला हुआ एक वाहन है जो उसे लोक-यात्रा के लिये मिला है, उसकी देह तो एक माध्यम है, स्वयं में गुरु नहीं| गुरु तत्व को हम भौतिक रूप से व्यक्त करने के लिए गुरु के शरीर का चित्र लगा देते हैं, पर उसका यह शरीर गुरु नहीं है|
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गुरु का स्वयं में विलय ही गुरु-पूजा है| गुरु के वेदानुकूल उपदेशों को स्वयं के आचरण में लाना और उन वेद-वाक्यों के प्रति समर्पण ही गुरु-भक्ति है, गुरु के शरीर की पूजा नहीं| हाँ, साधना से पूर्व मानसिक रूप से गुरु की अनुमति और आदेश अवश्य ले लेना चाहिए| गुरु का चित्र तो एक प्रतीक है, गुरु नहीं| .
कृपा शंकर
मार्च १६, २०१९
जो शास्त्रीय मर्यादा में जी रहे हैं उन्हें कोरोना वायरस तो क्या, किसी भी तरह की अकाल मृत्यु की आशंका नहीं है ---
जो शास्त्रीय मर्यादा में जी रहे हैं उन्हें कोरोना वायरस तो क्या, किसी भी तरह की अकाल मृत्यु की आशंका नहीं है| "चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः|"
किसी से घृणा कर के, या किसी का गला काट कर, कोई व्यक्ति भगवान को प्रसन्न नहीं कर सकता ---
किसी से घृणा कर के, या किसी का गला काट कर, कोई व्यक्ति भगवान को प्रसन्न नहीं कर सकता| दूसरों के सिर काटने, या हानि पहुँचाने से कोई बड़ा नहीं होता| दूसरों के घर में अंधकार कर के, कोई स्वयं के घर में प्रकाश नहीं कर सकता|
भारत का भविष्य सम्पूर्ण सृष्टि का भविष्य है ---
भारत का भविष्य सम्पूर्ण सृष्टि का भविष्य है, इसलिए भारत का पुनरोत्थान, निश्चित रूप से, एक महान आध्यात्मिक शक्ति के द्वारा, एक दिव्य चेतना के अवतरण से होगा| भारत की प्राचीन कृषि, शिक्षा, राजनीति, व सामाजिक व्यवस्था की पुनर्स्थापना होगी, आसुरी शक्तियों का उन्मूलन होगा, और सत्य का प्रकाश भारत में छाये असत्य के अन्धकार को मिटा देगा| सनातन धर्म ही भारत का प्राण, राजनीति, और भविष्य है| सनातन धर्म ही नहीं रहा तो यह सृष्टि निश्चित रूप से नष्ट हो जाएगी|
जीवन में ईश्वर के बिना जो जीवन मैंने जीया है, वह वास्तव में नारकीय था ---
जीवन में ईश्वर के बिना जो जीवन मैंने जीया है, वह वास्तव में नारकीय था| धन्य हैं वे लोग, जिन्होने सांसारिक आकर्षणों और वासनाओं पर विजय पाकर, अपने जीवन की दिशा को परमात्मा की ओर मोड़कर, निज जीवन में परमात्मा को पूर्णतः व्यक्त किया है| जीवन एक अंतहीन सतत् प्रक्रिया है| मेरी रुचि किसी भी तरह के मोक्ष या मुक्ति में नहीं है| ईश्वर से यही प्रार्थना है कि भविष्य में जो भी जीवन मिलें, उनमें जन्म से ही पूर्ण वैराग्य, भक्ति, ज्ञान और ईश्वर की अभिव्यक्ति हो|
वेदों को समझने के लिए --
वेदों को समझने के लिए --
मनुष्य जाति सदा से ही आपस में लड़ती-झगड़ती आई है, और लड़ते-झगड़ते ही समाप्त हो जाएगी ---
मनुष्य जाति सदा से ही आपस में लड़ती-झगड़ती आई है, और लड़ते-झगड़ते ही समाप्त हो जाएगी ---
होली के त्योहार की बड़ी अधीरता से प्रतीक्षा है, उस दिन स्वयं भगवान पुरुषोत्तम हमारे साथ भक्ति के रंगों से होली खेलेंगे ---
होली के त्योहार की बड़ी अधीरता से प्रतीक्षा है, उस दिन स्वयं भगवान पुरुषोत्तम हमारे साथ भक्ति के रंगों से होली खेलेंगे। वे ही एकमात्र पुरुष हैं। अभी से वे चैतन्य में छा गए हैं। वे ही इस देह में जी रहे हैं। इन नासिकाओं से वे ही सांसें ले रहे हैं, इस हृदय में वे ही धडक रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे हैं, इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, वे ही सम्पूर्ण अस्तित्व हैं। उनके अतिरिक्त किसी अन्य का कोई अस्तित्व नहीं है। वे निरंतर हमारे चैतन्य में रहें। मैं उनकी शरणागत हूँ।