Tuesday, 18 March 2025

मनुष्य जाति सदा से ही आपस में लड़ती-झगड़ती आई है, और लड़ते-झगड़ते ही समाप्त हो जाएगी ---

 मनुष्य जाति सदा से ही आपस में लड़ती-झगड़ती आई है, और लड़ते-झगड़ते ही समाप्त हो जाएगी ---

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जब तक 'अहंकार' और 'लोभ' (तमोगुण) है, तब तक मनुष्य जाति में कोई एकता, प्रेम और सद्भावना नहीं हो सकती। मनुष्य जाति सदा से ही आपस में लड़ती-झगड़ती आई है, और लड़ते-झगड़ते ही समाप्त हो जाएगी। मनुष्यों में ईर्ष्या-द्वेष, काम-क्रोध और मोह के पीछे भी 'अहंकार' और 'लोभ' ही है। कोई कितनी भी बड़ी-बड़ी 'सद्भाव', 'प्रेम', व 'जीओ और जीने दो' की बातें करता रहे, लेकिन लोभ और अहंकार से उस व्यक्ति का तुरंत पतन हो जाता है।
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मनुष्यों में प्रेम और एकता सिर्फ और सिर्फ आध्यात्म यानि ब्रह्मज्ञान से ही हो सकती है, लेकिन त्रिगुण (तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण) उसे आध्यात्म में प्रवेश नहीं करने देते। गीता में भगवान श्रीकृष्ण इसीलिए अर्जुन को "निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन" कहते हैं। यह एक साधना है जिसका दीर्घकाल तक किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ, सिद्ध आचार्य के मार्गदर्शन में गहन अभ्यास करना पड़ता है। निस्त्रैगुण्य यानि त्रिगुणातीत होकर ही व्यक्ति आध्यात्मिक हो सकता है। इसके लिए भी भक्ति और अभीप्सा अनिवार्य है।
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जो राग-द्वेष और अहंकार से मुक्त है, उसे वीतराग कहते हैं। जो सब प्रकार की स्पृहाओं से मुक्त है, वह निःस्पृह है। इन से भी ऊंची अवस्था स्थितप्रज्ञता है। जो सब प्रकार की तृष्णाओं व एषणाओं से मुक्त है, वह स्थितप्रज्ञ है। जो स्थितप्रज्ञ है, वही सन्यासी है, और वही आत्माराम (आत्मा में रमण करने वाला) है।
ॐ तत्सत् !!
१८ मार्च २०२३

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