Tuesday, 18 March 2025

किसी से घृणा कर के, या किसी का गला काट कर, कोई व्यक्ति भगवान को प्रसन्न नहीं कर सकता ---

 किसी से घृणा कर के, या किसी का गला काट कर, कोई व्यक्ति भगवान को प्रसन्न नहीं कर सकता| दूसरों के सिर काटने, या हानि पहुँचाने से कोई बड़ा नहीं होता| दूसरों के घर में अंधकार कर के, कोई स्वयं के घर में प्रकाश नहीं कर सकता|

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विश्व के अनेक लोग स्वयं तो शान्ति से रहना नहीं जानते, पर अपनी शान्ति की खोज -- धर्म के नाम पर दूसरों के प्रति घृणा, दूसरों की सभ्यताओं के विनाश, और दूसरों के नरसंहार में ही ढूँढते रहे हैं| ऐसे लोग इस संसार को नष्ट करने के लिए सदा तत्पर हैं| आत्मा शाश्वत है, कर्मफलों से कोई बच नहीं सकता और कर्मफलानुसार पुनर्जन्म भी सुनिश्चित है| ऐसे लोग अपना कर्मफल भोगने के लिए अति कष्टमय परिस्थितियों में बापस इस संसार में आते हैं|
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शांति का मार्ग, जो भगवान् ने बताया है, वह है --
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति||६:३०||"
अर्थात् जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता||
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भगवान हम सब की आत्मा हैं, वे समान रूप से सर्वत्र व्याप्त हैं| उन्हें सर्वत्र, व सब में उन्हें देखने वाले के लिए वे कभी अदृश्य नहीं होते| भगवान ने हमें सर्वत्र उन्हीं को देखने को कहा है, और साथ-साथ आतताइयों से स्वयं की रक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए एकजुट होकर प्रतिरोध और युद्ध करने के धर्म के पालन करने को भी कहा है| हम अपना हर कार्य जिस भी परिस्थिति में हम हैं, उस परिस्थिति में ईश्वर-प्रदत्त निज-विवेक से निर्णय लेकर ही करें| जहाँ संशय हो वहाँ भगवान से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें|
ॐ स्वस्ति !!
१८ मार्च २०२१

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