Tuesday, 18 March 2025

एक ब्रह्मज्ञ किसी भी पाप से लिप्त नहीं होता है ---

 एक ब्रह्मज्ञ किसी भी पाप से लिप्त नहीं होता है। उस आत्मविद को कोई पाप छू भी नहीं सकता। गीता में भगवान कहते हैं --

"यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते।
हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते"॥१८:१७॥"
अर्थात् जिस पुरुष में अहंकार का भाव नहीं है और बुद्धि किसी (गुण दोष) से लिप्त नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न तो मारता है और न (पाप से) बँधता है।
He who has no pride, and whose intellect is unalloyed by attachment, even though he kill these people, yet he does not kill them, and his act does not bind him.
.
हम पूर्णरूपेण परमात्मा को समर्पित हों। परमात्मा की कृपा ही हम सब की रक्षा करेगी। भगवान की परमकृपा हम सब पर हो। | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ मार्च २०२५

1 comment:

  1. कुछ महात्मा ऐसे भी होते हैं जिनके जीवन का उद्देश्य ही सब के हृदय में भगवान के प्रति परमप्रेम यानि भक्ति को जागृत करना होता है। मैं स्वयं के जीवन को धन्य मानता हूँ जिसे ऐसे अनेक महात्माओं का सत्संग लाभ मिला है। इस नश्वर जीवन के अंत समय तक परमात्मा का सत्संग मिलता रहे। दिन में २४ घंटे, सप्ताह में सातों दिन, चेतना परमात्मा में स्थित रहे। किसी कामना का जन्म न हो। ॐ तत्सत्। ॐ ॐ ॐ॥

    ReplyDelete