मेरे पास न तो कोई प्रश्न है, और न किसी प्रश्न का कोई उत्तर ---
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ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत परमात्मा है। पुस्तकों से सिर्फ सूचना मिलती है। हर प्रश्न का उत्तर श्रौता की बौद्धिक क्षमता और पात्रता के अनुसार होता है। एक चौथी कक्षा के बालक को जो बताया जाता है वह दसवीं के बालक को नहीं बता सकते। जो दसवीं के बालक को बताते हैं वह कॉलेज में पढ़ने वाले बालक को नहीं बता सकते। जो जिस क्षेत्र का ज्ञाता है उसे उसकी समझ के अनुसार वैसा ही उत्तर समझ में आ सकता है। जैसे पढ़ाई में क्रम हैं, वैसे ही आध्यात्म में भी क्रम हैं। इसलिए मैं हरेक व्यक्ति के प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता। अब न तो कोई ज्ञान और भक्ति की बात करनी है, और न किसी की कोई जिज्ञासा का समाधान करना है। अब से वही लिखूँगा जो राष्ट्रहित में आवश्यक है; अन्य कुछ भी नहीं। प्राथमिक कक्षाओं में इस समय बहुत छात्र पढ़ रहे हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि प्राथमिक कक्षाएं खराब हैं। मैं उस अवस्था से निकल चुका हूँ। कभी मैं भी प्राथमिक में पढ़ता था।
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किसी भी व्यक्ति की समझ इस बात पर निर्भर है कि उसकी चेतना का केंद्र कहाँ है। मेरी चेतना सहस्त्रारचक्र व उससे भी ऊपर के चक्रों में रहती है जो इस शरीर से बाहर हैं, अतः मेरी सोच भी वैसी ही है। किसी भी तरह का कोई संशय मुझे नहीं है। किसी भी आध्यात्मिक विषय पर और नहीं लिखना चाहता। अब से वही लिखूँगा जो राष्ट्रहित में आवश्यक है, अन्य कुछ भी नहीं। उन्हीं से मिलना चाहूँगा जो योगारूढ़ हैं, व निरंतर परमात्मा की चेतना में रहते हैं। मुझे अनेक महान आत्माओं से खूब प्रेम, स्नेह और आत्मीयता मिली है। उन सब को नमन करता हूँ।
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च॥ ॐ नमः शिवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ मार्च २०२३
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