गुरु का स्वयं में विलय ही गुरु-पूजा है ---
.गुरु की देह तो प्रतीकात्मक है, यह शरीर तो गुरु को मिला हुआ एक वाहन है जो उसे लोक-यात्रा के लिये मिला है, उसकी देह तो एक माध्यम है, स्वयं में गुरु नहीं| गुरु तत्व को हम भौतिक रूप से व्यक्त करने के लिए गुरु के शरीर का चित्र लगा देते हैं, पर उसका यह शरीर गुरु नहीं है|
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गुरु का स्वयं में विलय ही गुरु-पूजा है| गुरु के वेदानुकूल उपदेशों को स्वयं के आचरण में लाना और उन वेद-वाक्यों के प्रति समर्पण ही गुरु-भक्ति है, गुरु के शरीर की पूजा नहीं| हाँ, साधना से पूर्व मानसिक रूप से गुरु की अनुमति और आदेश अवश्य ले लेना चाहिए| गुरु का चित्र तो एक प्रतीक है, गुरु नहीं| .
गुरु में कोई दोष या विकृति है तो क्या हम उसे अपना लेंगे ? फिर हमारा गुरु के प्रति दृष्टिकोण क्या हो ?
उत्तर :-- यदि गुरु में कोई दोष है, तो उसका फल वह स्वयं भुगतेगा, हम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं| हमारा समर्पण तो गुरु के वेदानुकूल वचनों/उपदेशों के प्रति है, उस की देह के प्रति नहीं| हमारा समर्पण ही हमें इस संसार-सागर / माया-मोह से पार करेगा, गुरु की देह नहीं| पूजा तो गुरु-पादुका की होती है, गुरु के देह की नहीं| गुरु तो तत्व है देह नहीं| मेरा तो यह मानना है कि गुरु का स्वयं में विलय ही गुरु-पूजा है| गुरु के देह की पूजा तो गुरु की ह्त्या के बराबर है|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!कृपा शंकर
मार्च १६, २०१९
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