वेदों को समझने के लिए --
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"शिक्षा", "कल्प", "व्याकरण", "निरुक्त", "छंद", और "ज्योतिष" का ज्ञान अनिवार्य है। इनके बिना वेदों को समझना असंभव है। जिनको इन का ज्ञान नहीं है, वे वेदों को नहीं समझ पायेंगे। जिन्हें वेदों को समझने की जिज्ञासा है वे किसी ब्रहमनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य के पास जाकर पूर्ण श्रद्धा और विनम्रता से उनसे ज्ञान ग्रहण करें। सिर्फ अनुवाद पढ़ने से कुछ नहीं मिलेगा। जो इन वेदांगों की शिक्षा देते हैं, उन्हें 'उपाध्याय' कहते हैं। आजकल तो ब्राह्मणों का एक वर्ग स्वयं को 'उपाध्याय' लिखता है, लेकिन 'उपाध्याय' वह है जिसे वेदांगों का ज्ञान है।
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(१) वेदों के सही उच्चारण के ढंग को "शिक्षा" कहते हैं| वेदों के एक ही शब्द के दो प्रकार से उच्चारण से अलग अलग अर्थ निकलते है| इसलिये वेद को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि उच्चारण कैसे हो|
(२) जितने भी धार्मिक कर्म -- पूजा, हवन आदि है उन सब को करने का तरीका जिन ग्रंथों में है वे "कल्प" सूत्र है|
(३) "व्याकरण" वेद के पदों को कैसे समझा जाये यह बताता है|
(४) "निरुक्त" शब्दों के अर्थ लगाने का तरीका है|
(५) "छंद" अक्षर विन्यास के नियमों का ज्ञान कराता है|
(६) "ज्योतिष" से कर्म के लिये उचित समय निर्धारण का ज्ञान होता है|
१८ मार्च २०२३
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