होली के त्योहार की बड़ी अधीरता से प्रतीक्षा है, उस दिन स्वयं भगवान पुरुषोत्तम हमारे साथ भक्ति के रंगों से होली खेलेंगे। वे ही एकमात्र पुरुष हैं। अभी से वे चैतन्य में छा गए हैं। वे ही इस देह में जी रहे हैं। इन नासिकाओं से वे ही सांसें ले रहे हैं, इस हृदय में वे ही धडक रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे हैं, इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, वे ही सम्पूर्ण अस्तित्व हैं। उनके अतिरिक्त किसी अन्य का कोई अस्तित्व नहीं है। वे निरंतर हमारे चैतन्य में रहें। मैं उनकी शरणागत हूँ।
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पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम्॥१०:१२॥"
"स्वयमेवात्मनाऽत्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते॥१०:१५॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् -- आप परमब्रह्म परमात्मा, परमधाम परमतेज और परमपावन हैं, तथा आप नित्य और दिव्य पुरुष हैं। आप आदिदेव अजन्मा और सर्वव्यापी हैं। (१०:१२)
हे पुरुषोत्तम ! हे भूतभावन ! हे भूतेश ! हे देवों के देव ! हे जगत् के स्वामी ! आप स्वयं ही अपने आप को जानते हैं॥ (१०:१५)
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"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् -- सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो॥
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साधना की दृष्टि से हिन्दू धर्म में चार रात्रियों का बड़ा महत्व है -- कालरात्रि (दीपावली), दारुणरात्रि (होली), मोहरात्रि (जन्माष्टमी), और महारात्रि (महाशिवरात्रि)। इन रात्रियों को की गई उपासना कई गुना अधिक फलदायी होती हैं॥ एक सप्ताह के पश्चात आने वाले होली के त्योहार की अभी से तैयारी आरंभ कर दीजिये। होली की दारुण रात्रि, व धुलन्डी का अपराह्न काल -- भगवान की आराधना/उपासना के लिए है, न कि अन्य किसी प्रयोजन के लिए।
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
१८ मार्च २०२४
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