Tuesday, 18 March 2025

एकमात्र महिमा उस भक्त की है, जो सदा भगवान का भजन करता है --- .

 एकमात्र महिमा उस भक्त की है, जो सदा भगवान का भजन करता है ---

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मेरा शरीर इस समय ध्यान के आसन पर पद्मासन में बैठा है। दूर से दूर जहाँ तक मेरी कल्पना जाती है, वह अनंत विस्तार और सम्पूर्ण अस्तित्व - "मैं" हूँ। सारे मत-मतांतर, सारे पंथ-संप्रदाय, और सारी विचार-धाराएं -- मेरे भाग है; मैं किसी का नहीं। कहीं कोई अंधकार नहीं है, सर्वत्र ज्योतिर्मय ब्रह्म है, जिन से मेरा कोई भेद नहीं है।
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वह ज्योतिर्मय ब्रह्म ही उपास्य, उपासक और उपासना है; वही दृष्य, दृष्टि और दृष्टा है। सारी क्रियाएँ जगन्माता स्वयं कर रही हैं, उन्होंने ही इस सृष्टि को धारण कर रखा है। जिन्हें मैं ज्योतिर्मय ब्रह्म कहता हूँ, वे ही परमशिव हैं, वे ही विष्णु हैं, और वे ही जगन्माता हैं। यही मेरी साधना है, और यही मैं स्वयं हूँ। उन से परे कुछ भी नहीं है। सारा समय भी उनको ही समर्पित है।
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और कुछ भी लिखने योग्य नहीं है। जिन्हें कोई जिज्ञासा है, वे अपनी अंतर्रात्मा में उसके समाधान का अनुसंधान करें।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१९ मार्च २०२३

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