भगवान की चेतना में समर्पित होकर हरेक कार्य राष्ट्रहित में करें। हम सत्य-धर्मनिष्ठ हों। हमारी हर क्रिया में भगवान की अनुभूति/अभिव्यक्ति हो।
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हम भगवान के उपकरण मात्र ही नहीं, उनकी सम्पूर्ण सृष्टि, अनंतता, और सारे प्राणियों के साथ एक हैं। हमें निमित्त बनाकर हमारे माध्यम से भगवान स्वयं अपनी साधना कर रहे हैं। भगवान की ज्योति का विस्तार चारों ओर है। हमारा अज्ञान ही असत्य का अंधकार है। श्रीमद्भगवद्गीता और उपनिषदों में सारा मार्गदर्शन है, जिनका स्वाध्याय, चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान तो हमें ही करना होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ मार्च २०२४
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