अभीष्ट के लिए तपस्या ........
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प्राचीन भारत में लोग अपने हर अभीष्ट की प्राप्ति के लिए तपस्या को ही मूल साधन मानते थे, चाहे वह सांसारिक कामना हो या आध्यात्मिक| भारत के प्राचीन साहित्य में बहुत सारे प्रसंग भरे पड़े हैं जब धनसंपति, पुत्र-कन्यादि सन्तान प्राप्ति, मनपसंद वर, शत्रु विजय, रोग मुक्ति आदि, और पारलौकिक कामनाओं की सिद्धि के लिए भी लोग तपस्या को ही अमोघ साधन मानते थे|
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काश! मेरे भी जीवन में वह तपस्या होती! ह्रदय की चाहत तो यही है कि हर कार्य सिर्फ परमात्मा की प्रसन्नता के लिए ही करूँ| सिर्फ प्रभु-प्रेम की ही बातें करूँ, चाहे बिना बात किये ही रहना पड़े| दूसरी कोई बात करता हूँ तो बड़ी पीड़ा होती है| मिलना भी ऐसे ही लोगों से चाहता हूँ जिनके ह्रदय में भगवान के प्रति प्रेम भरा पडा हो| बाकि सांसारिक लोगों से तो मिलना पड़ता ही है पर उनसे मिलने मात्र से बड़ी पीड़ा होती है| कहीं किसी सामान्य व्यक्ति का आतिथ्य भी स्वीकार कर लेता हूँ तो अगले एक दो दिन तो बड़े कष्ट से निकलते हैं| ईश्वर के अतरिक्त कुछ भी अन्य चिंतन बड़ा दु:खदायी है|
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आज के युग में लोग इन बातों पर विश्वाश नहीं करेंगे या हँसेंगे| पर यह सत्य है| नर्मदादि तटों पर घने दुर्गम वनों में आज भी ऐसे तपस्यारत संत हैं जिन के अग्निकुंडो में यानि धूणों में बिना ईंधन के अग्नि प्रज्ज्वलित रहती है और जब वे वेदमंत्रों का पाठ करते हैं तब अग्नि स्वतः प्रकट होकर आहुतियाँ स्वीकार करती हैं|
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अनेक गुप्त तीर्थ हैं जिनके बड़े दिव्य स्पंदन हैं| बड़ी गुप्त रहस्यमयी विद्याएँ हैं और बड़े गुप्त रहस्यमय संत हैं| वनों में रहने वाले कई ऐसे साधुओं के बारे में पढ़ा है जो खुले में कुछ विशिष्ट गुप्त मन्त्र के साथ एक घेरा बनाकर निश्चिन्त होकर साधनारत हो जातें हैं या सो जाते हैं| उस घेरे में कोई भी हिंसक प्राणी प्रवेश नहीं कर सकता| कुछ ऐसे मन्त्र हैं जिनके जाप से दुर्गम और भयावह वनों में कोई भी हिंसक जीव आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता|
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ठाकुर जी जब एक बार ह्रदय में प्रवेश कर जातें हैं तो प्रवेश करते ही आड़े-टेढ़े हो जाते हैं फिर वे किसी भी परिस्थिति में बाहर नहीं निकलते| भगवान बड़े ईर्ष्यालु प्रेमी हैं| एक बार वे जब ह्रदय में घुस जाते हैं तो अन्य किसी का भी अन्दर प्रवेश नहीं होने देते| ऐसे ईर्ष्यालु प्रेमी से भी प्रेम का जो आनंद है वह अन्यत्र कहीं भी नहीं है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ मार्च २०१६
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