Tuesday, 18 March 2025

हमारे में सदगुण होंगे तभी हम अपनी भौतिक समृद्धि को सुरक्षित रख सकते हैं ---

हम स्वयं में बिना सदगुणों का विकास किये सांसारिक वैभव को प्राप्त करना चाहते हैं, यह हमारे पतन के मुख्य कारणों में से एक है| हमारे में सदगुण होंगे तभी हम अपनी भौतिक समृद्धि को सुरक्षित रख सकते हैं| .

भगवान से मैं प्रार्थना करता हूँ कि जब हमारे में सदगुण पूर्ण रूप से विकसित हो जाएँ तभी हमें सांसारिक वैभव देना|
उपास्य के गुण उपासक में आये बिना नहीं रहते| हम भगवान का ध्यान करेंगे तब निश्चित रूप से उनके गुण हमारे में अवतरित होंगे| नवरात्री का पावन पर्व चल रहा है| आओ जगन्माता की आराधना करें|
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हे माँ, तुम ही हमारी गति हो .....
हम सब की विकृतियों और दुष्ट वृत्तियों का नाश करो| आलस्य, अज्ञान, जड़ता और अविवेक रूपी तमोगुण हमारे में न रहें| हमें आत्मा का ज्ञान प्राप्त हो| कोई अवांछित दुर्गुण हम में न रहे| हमारा चित्त शुद्ध हो| हम सब का कल्याण हो|
न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ १ ॥
भवाब्धावपारे महादुःखभीरु पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ २ ॥
न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ३ ॥
न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ४ ॥
कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः कुलाचारहीनः कदाचारलीनः ।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ५ ॥
प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ६ ॥
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ७ ॥
अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः ।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीमदादिशंकराचार्य विरचिता भवान्याष्ट्कं समाप्ता ॥

१९ मार्च २०१८

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