इस अक्षय-तृतीया से मेरी उपासना तेलधारा की तरह अक्षय अखंड हो ---
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मैं एक एकांकी पुष्प हूँ, जो इस मरुभूमि में परमात्मा की महिमा को व्यक्त कर रहा हूँ। मेरे आसपास सूक्ष्म जगत के अनेक असुर भी हैं, और देवता भी। आपको उनकी अनुभूति नहीं होती, लेकिन मुझे होती है। उनमें से कोई भी मेरा शुभ-चिंतक नहीं है। मेरी रक्षा भगवान ही कर रहे हैं। दुर्बलता के कुछ क्षणों में अवसर मिलते ही आसुरी शक्तियाँ मुझ पर हावी होकर मेरा बहुत अधिक अहित कर जाती हैं, और कर भी रही हैं। यह बात मैं ही जानता हूँ, किसी को कह भी नहीं सकता, क्योंकि कोई समझेगा भी नहीं।
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मुझे उन देवों व असुरों से कोई सरोकार नहीं है। ये देवता भी आध्यात्मिक मार्ग में बाधक हैं। एकमात्र सहायक हैं तो सिर्फ गुरु रूप में परमात्मा हैं। वे ही धक्का मारकर या बलात् उठाकर मुझे परमात्मा के अनंत अथाह अमृत-कुंड में डुबो देंगे। यदि उपकरण ही बनना है तो भगवान का बनूँगा, न कि देवताओं या असुरों का। भगवान अपने भक्तों की रक्षा देवताओं से भी करते हैं।
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मेरी दृष्टि सदा सीधी सामने परमात्मा की ओर ही रहे। इधर उधर कहीं भी झाँक कर न देखे। मेरे चैतन्य में परमात्मा का ध्यान निरंतर तेलधारा की तरह अक्षय-अखंड बना रहे। उस धारा की निरंतरता बनी रहे, वही मेरी रक्षा कर रही है। उस धारा के टूटते ही ये असुर मुझ पर टूट पड़ेंगे। मुझे उनका शिकार नहीं बनना है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ अप्रेल २०२३