Sunday, 21 September 2025

हमारे पास ऐसा कौन सा सबसे अधिक कीमती धन है जिसे किसी भी परिस्थिति में खोना नहीं चाहिए ---

 हमारे पास ऐसा कौन सा सबसे अधिक कीमती धन है जिसे किसी भी परिस्थिति में खोना नहीं चाहिए ---

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सबसे बड़ा धन जो हमारे पास हो सकता है, वह है -- स्वयं में श्रद्धा और विश्वास। जीवन में निरंतर अनंत आनंदमय अवस्था ही भगवान का ध्यान है। आनंद भी ऐसा जो सचेतन, नित्य-नवीन, और शाश्वत हो। बिना श्रद्धा और विश्वास के हम न तो ध्यान कर सकते हैं, और न ही कोई आराधना। भगवान हमसे हमारा अंतःकरण (मन बुद्धि चित्त अहंकार) माँगते हैं, और कुछ भी नहीं। हमें उन से परमप्रेम होगा तभी हम उन्हें अपना अंतःकरण दे सकते हैं।
बिना श्रद्धा और विश्वास के हम भगवान को तो क्या, किसी को भी कुछ भी नहीं दे सकते।
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"भवानी शङ्करौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्॥" (रामचरितमानस)
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"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥४:३९॥
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः॥४:४०॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥
श्रीमते रामचंद्राय नमः॥ ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ सितंबर २०२३

पितृ पक्ष चल रहा है, पूरी श्रद्धा से अपने पित्तरों का श्राद्ध करें ---

 पितृ पक्ष चल रहा है, पूरी श्रद्धा से अपने पित्तरों का श्राद्ध करे। जिस परिवार में बड़े-बूढ़ों की सेवा नहीं होती, पित्तरों का अनुग्रह उस परिवार पर नहीं होता। पित्तरों के देवता भगवान अर्यमा हैं। गीता में भगवान कहते हैं --

"अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्। पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥"
अर्थात् "मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ; मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ॥"
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श्राद्ध शब्द 'श्रद्धा' से बना है। स्कंद पुराण का कथन है कि 'श्राद्ध' नाम इसलिए पड़ा है कि उस कृत्य में श्रद्धा मूल है। ॠग्वेद में श्रद्धा को 'देवत्व' नाम दिया गया है। मनु व याज्ञवल्क्य ऋषियों ने धर्मशास्त्र में नित्य व नैमित्तिक श्राद्धों की अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए कहा कि श्राद्ध करने से कर्ता पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है, तथा पितर संतुष्ट रहते हैं जिससे श्राद्धकर्ता व उसके परिवार का कल्याण होता है। श्राद्ध महिमा में कहा गया है-
'आयु: पूजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्ष सुखानि च। प्रयच्छति तथा राज्यं पितर: श्राद्ध तर्पिता।।'
अर्थात - जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, संतान, धन, स्वर्ग, राज्य मोक्ष व अन्य सौभाग्य प्रदान करते हैं। हमारी संस्कृति में माता-पिता व गुरु को विशेष श्रद्धा व आदर दिया जाता है, उन्हें देवतुल्य माना जाता है। 'पितरं प्रीतिमापन्ने प्रियन्ते सर्वदेवता:' - अर्थात पितरों के प्रसन्न होने पर सारे ही देवता प्रसन्न हो जाते हैं।
२१ सितम्बर २०२१

भगवान कहाँ हैं और कहाँ नहीं हैं ? --- (पुनर्प्रेषित लेख).

 भगवान कहाँ हैं और कहाँ नहीं हैं ? --- (पुनर्प्रेषित लेख).

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यह एक प्रश्न है जो मैं आप सब से पूछ रहा हूँ कि भगवान कहाँ हैं, और कहाँ नहीं हैं? लोग अपनी सीमित चेतना व सीमित अल्प ज्ञान से पूछते हैं कि भगवान कहाँ है? इसका कोई उत्तर है तो वह स्वयं के लिए ही हो सकता है| दूसरों को कोई संतुष्ट नहीं कर सकता| परमात्मा की स्पष्ट प्रत्यक्ष उपस्थिती कहाँ कितनी है यह हम अनुभूत ही कर सकते हैं|
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वर्षा ऋतु चल रही है| वर्षा के पश्चात पृथ्वी से एक बड़ी मोहक गंध निकलती है| वह गंध जहाँ जितनी अधिक मात्रा में है, वहाँ परमात्मा की उपस्थिति उतनी ही अधिक है| यह हम अनुभूत कर सकते हैं| किसी व्यक्ति को देखते ही मन श्रद्धा से भर उठता है, और हम स्वतः ही उसे नमन करते हैं| यह उस व्यक्ति का तप है जिसे हम नमन करते हैं| परमात्मा ही उसके तप में व्यक्त होते हैं| हम किसी भी प्राणी को देखते हैं तो उस व्यक्ति की जो प्राण चेतना है वह परमात्मा ही है| परमात्मा सभी प्राणियों के प्राणों में व्यक्त होते हैं| अग्नि का तेज और बर्फ की शीतलता भी परमात्मा ही है| हर पदार्थ के अणु जिस ऊर्जा से निर्मित हैं, वह ऊर्जा भी परमात्मा है| उस ऊर्जा के पीेछे का विचार भी परमात्मा है| सारा जीवन और उस से परे भी जो कुछ है वह परमात्मा ही है| और भी अधिक स्पष्ट अनुभूति ध्यान साधना में सर्वव्यापी ब्रह्म तत्व की आनंददायक अनुभूति से होती है, जिसके पश्चात कोई संदेह नहीं रहता| जो विकार हैं वे सांसारिक पुरुषों के अज्ञान और अधर्म आदि के कारण ही हैं|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ......
"पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ| जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु||७:९||"
अर्थात् पृथ्वी में पवित्र गन्ध हूँ और अग्नि में तेज हूँ सम्पूर्ण भूतों में जीवन हूँ और तपस्वियों में मैं तप हूँ||
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रामचरितमानस के आयोध्याकाण्ड में ऋषि वाल्मीकि भगवान श्रीराम से यही प्रश्न पूछते है कि जहाँ आप न हों वह स्थान तो बता दीजिये ताकि मैं चलकर वही स्थान आपको दिखा दूं? वे स्वयं सारे स्थान भी बता देते हैं जहाँ भगवान श्रीराम को रहना चाहिए| बड़ा ही सुंदर प्रसंग है जो सभी को एक बार तो पढ़ना और समझना ही चाहिए .....
"काम क्रोध मद मान न मोहा, लोभ न क्षोभ न राग न द्रोहा |
जिनके कपट दंभ नहीं माया, तिन्ह के ह्रदय बसहु रघुराया ||
जे हरषहिं पर सम्पति देखी, दुखित होहिं पर बिपति विशेषी |
जिनहिं राम तुम प्राण पियारे, तिनके मन शुभ सदन तुम्हारे ||
जाति पांति धनु धरम बड़ाई, प्रिय परिवार सदन सुखदाई |
सब तजि रहहुँ तुम्हहि उर लाई, तेहिं के ह्रदय रहहु रघुराई ||"
यहाँ इस बात का स्पष्ट उत्तर मिल जाता है कि भगवान कहाँ हैं और कहाँ नहीं हैं| आप सब में व्यक्त परमात्मा को नमन!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ सितंबर २०१९

नेहरू-गांधी परिवार की अमर कहानी ---

 नेहरू-गांधी परिवार की अमर कहानी ---

अपनी पुस्तक "द नेहरू डायनेस्टी" में लेखक के.एन.राव लिखते हैं - ऐसा माना जाता है कि जवाहरलाल, मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे। मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर। जवाहर लाल की पुत्री का नाम इन्दिरा प्रियदर्शिनी था, और पत्नी का नाम था कमला नेहरू, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी।
आनन्द भवन का असली नाम था "इशरत मंजिल" जिसके मालिक थे मुबारक अली। मुबारक अली बहुत बड़े वकील थे, जिनके यहाँ मोतीलाल नेहरू सहायक की नौकरी करते थे।
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फ़िरोज़ गांधी का असली नाम फिरोज खान था जो नवाब अली खान के बेटे थे। नवाब अली खान एक गुजराती व्यापारी थे, जो इलाहाबाद और प्रतापगढ़ जिलों के दारू के सबसे बड़े ठेकेदार थे, और जवाहर लाल के घर पर किराने का सारा सामान, दारू, और आवश्यकता का हर सामान पहुंचाते थे। डिलीवरी बॉय का काम फिरोज खान करते थे। नवाब अली खान की कब्र इलाहाबाद में है जहाँ श्रद्धा-सुमन कोई अर्पित नहीं करता। नवाब अली खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फ़िरोज इसी महिला की सन्तान थे, और उनकी मां का उपनाम था "घांदी" (गांधी नहीं)। घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। एक झूठ हमें बताया जाता है कि राजीव गांधी पहले पारसी थे। एक भ्रम पैदा करने के लिये यह झूठ फैलाया गया था। इंदिरा प्रियदर्शिनी को शांति निकेतन में पढते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था। एक तन्हा जवान लड़की जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और मां लगभग मृत्यु शैया पर पडी़ हुई हों, थोड़ी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी और विपरीत लिंग की ओर क्यों ना आकर्षित होगी? इसी बात का फ़ायदा फ़िरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फ़ुसला कर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली। नाम रखा "मैमूना बेगम"। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए, लेकिन अब क्या किया जा सकता था? जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गांधी को मिली तो उन्होंने ताबड़तोड़ नेहरू को बुलाकर समझाया, राजनैतिक छवि की खातिर फ़िरोज को मनाया कि वह अपना नाम गांधी रख लें। यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये, बजाय धर्म बदलने के सिर्फ़ नाम बदला जाये तो फ़िरोज खान (घांदी) बन गये फ़िरोज गांधी। विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" लिखने वाले गांधी ने इस बात का उल्लेख कभी आज तक कहीं नहीं किया और वे महात्मा भी कहलाये। फिरोज खान और मेमुना बेगम को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुनः वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया, ताकि उनके खानदान की ऊंची नाक का भ्रम बना रहे।
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इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक "रेमेनिसेन्सेस ऑफ़ नेहरू एज"(पृष्ट ९४ पैरा २) (अब भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित) में लिखते हैं कि "पता नहीं क्यों नेहरू ने सन १९४२ में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीति-रिवाजों से किये जाने को अनुमति दी, जबकि उस समय यह अवैधानिक था। कानूनी रूप से उसे "सिविल मैरिज" होना चाहिये था। यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गांधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फ़िरोज अलग हो गये थे, हालांकि तलाक नहीं हुआ था। फ़िरोज गांधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे मांगते हुए परेशान किया करते थे, और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर नेहरू ने फ़िरोज का "तीन
मूर्ति भवन" मे आने- जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। मथाई लिखते हैं फ़िरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बडी़ राहत मिली थी। १९६० में फ़िरोज गांधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालत में हुई थी, जबकि वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। अपुष्ट सूत्रों, कुछ खोजी पत्रकारों और इन्दिरा गांधी के फ़िरोज से अलगाव के कारण यह तथ्य भी स्थापित हुआ कि श्रीमती इन्दिरा गांधी (या श्रीमती फ़िरोज खान) का दूसरा बेटा अर्थात संजय गांधी, फ़िरोज की सन्तान नहीं था। संजय गांधी एक पारिवारिक मित्र मोहम्मद यूनुस का बेटा था। संजय गांधी का असली नाम दरअसल संजीव गांधी था, अपने बड़े भाई राजीव गांधी से मिलता जुलता। लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था। ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गांधी का नाम बदल कर नया पासपोर्ट संजय गांधी के नाम से बनवाया था (इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था)। अब संयोग पर संयोग देखिये संजय गांधी का विवाह "मेनका आनन्द" से हुआ। कहां? मोहम्मद यूनुस के घर पर, है ना आश्चर्य की बात। मोहम्मद यूनुस की पुस्तक "पर्सन्स, पैशन्स एण्ड पोलिटिक्स" में बालक संजय का इस्लामी रीति- रिवाजों के मुताबिक खतना बताया गया है, हालांकि उसे "फ़िमोसिस" नामक बीमारी के कारण किया गया कृत्य बताया गया है, ताकि हम लोग (आम जनता) गाफ़िल रहें। मेनका जो कि एक सिख लडकी थी,संजय की रंगरेलियों की वजह से गर्भवती हो गईं थीं और फ़िर मेनका के पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी, फ़िर उनकी शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर "मानेका" किया गया, क्योंकि इन्दिरा गाधी को "मेनका" नाम पसन्द नहीं था। पसन्द तो मेनका, मोहम्मद यूनुस को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम लडकी संजय के लिये देख रखी थी फ़िर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ़ एक तौलिये में विज्ञापन किया था। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गांधी अपनी मां को ब्लैकमेल करते थे, जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी । ऐसा प्रतीत होता है कि शायद संजय गांधी को अपने असली पिता का नाम मालूम हो गया था और यही इन्दिरा की कमजोर नस थी। संजय की मौत के तत्काल बाद काफ़ी समय तक वे एक चाबियों का गुच्छा खोजती रहीं थी, जबकि मोहम्मद यूनुस संजय की लाश पर दहाडें मार कर रोने वाले एकमात्र बाहरी व्यक्ति थे। संजय गांधी के तीन अन्य मित्र कमलनाथ,अकबर अहमद डम्पी और विद्याचरण शुक्ल, ये चारों उन दिनों "चाण्डाल चौकडी" कहलाते थे। इनकी रंगरेलियों के किस्से तो बहुत मशहूर हो चुके हैं जैसे कि अंबिका सोनी और रुखसाना सुलताना (अभिनेत्री अमृता सिंह की मां) के साथ।
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राजीव गांधी ने, तूरिन (इटली) की महिला ऐंटोनिया माईनो से विवाह करने के लिये अपना 'तथाकथित' पारसी धर्म छोड़ कर कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया था। राजीव गांधी बन गये थे रोबेर्तो और उनके दो बच्चे हुए जिसमें से लड़की का नाम था "बियेन्का" और लड़के का "रॉल"। बड़ी ही चालाकी से भारतीय जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिये राजीव-सोनिया का हिन्दू रीति-रिवाजों से पुनर्विवाह करवाया गया और बच्चों का नाम "बियेन्का" से बदलकर प्रियंका और "रॉल" से बदलकर राहुल कर दिया गया। बेचारी भोली-भाली आम जनता !
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प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी ने लंदन की एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में अपने-आप को पारसी की सन्तान बताया था, जबकि पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था, क्योंकि वे तो एक मुस्लिम की सन्तान थे जिसने नाम बदलकर पारसी उपनाम रख लिया था। हमें बताया गया है कि राजीव गांधी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातक थे, यह अर्धसत्य है। ये तो सच है कि राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे, लेकिन उन्हें वहां से बिना किसी डिग्री के निकलना पड़ा था,क्योंकि वे लगातार तीन साल फ़ेल हो गये थे। लगभग यही हाल ऐंटोनिया माईनो का था। हमें यही बताया गया है कि वे भी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की स्नातक हैं। जबकि सच्चाई यह है कि सोनिया स्नातक हैं ही नहीं, वे कैम्ब्रिज में पढने जरूर गईं थीं लेकिन कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं । सोनिया गांधी कैम्ब्रिज में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी, ना कि विश्वविद्यालय में (यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा मांगी गई जानकारी के तहत खुद सोनिया गांधी ने मुहैया कराई है,उन्होंने बडे ही मासूम अंदाज में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे कैम्ब्रिज की स्नातक हैं,अर्थात उनके चमचों ने यह बेपर की उडाई थी)। खोजी पत्रकार कहते हैं कि अंतोनियों मायनों वहाँ एक दारूखाने में शराब परोसने की काम करती थी जहां राजीव गांधी शराब पीने आते थे। पैसे खत्म हो जाने पर उधार की शराब खूब पी। अंतोनियों ने सारी उधार अपने साथ शादी की शर्त पर माफ कर दी। क्रूरता की हद तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाजों के तहत किया गया,ना ही पारसी तरीके से ना ही मुस्लिम तरीके से। इसी नेहरू खानदान की भारत की जनता पूजा करती है, एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह इस खानदान की बहू है आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ता-धर्ता है और "रॉल" को भारत का भविष्य बताया जा रहा है। मेनका गांधी को विपक्षी पार्टियों द्वारा हाथों-हाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू हैं,इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी या प्राणियों पर दया रखने वाली हैं।और यदि कोई ऐंटोनिया माइनो की तुलना मदर टेरेसा या एनी बेसेण्ट से करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है और हिन्दुस्तान की बदकिस्मती पर सिर धुनना ही होगा।
आजकल रौल गांधी -- एक जनेऊधारी दत्तात्रेय-गौत्रीय कश्मीरी ब्राह्मण बन गए हैं। बियांका भी गले में जनेऊ डाल कर घूमती है। इस बढेरन ने भी अपने बेटे का नाम रखा है - रोहन राजीव गांधी। नेहरू-गांधी खानदान ज़िन्दाबाद। यहाँ सब गांधी ही पैदा होते हैं।