पितृ पक्ष चल रहा है, पूरी श्रद्धा से अपने पित्तरों का श्राद्ध करे। जिस परिवार में बड़े-बूढ़ों की सेवा नहीं होती, पित्तरों का अनुग्रह उस परिवार पर नहीं होता। पित्तरों के देवता भगवान अर्यमा हैं। गीता में भगवान कहते हैं --
"अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्। पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥"
अर्थात् "मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ; मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ॥"
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श्राद्ध शब्द 'श्रद्धा' से बना है। स्कंद पुराण का कथन है कि 'श्राद्ध' नाम इसलिए पड़ा है कि उस कृत्य में श्रद्धा मूल है। ॠग्वेद में श्रद्धा को 'देवत्व' नाम दिया गया है। मनु व याज्ञवल्क्य ऋषियों ने धर्मशास्त्र में नित्य व नैमित्तिक श्राद्धों की अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए कहा कि श्राद्ध करने से कर्ता पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है, तथा पितर संतुष्ट रहते हैं जिससे श्राद्धकर्ता व उसके परिवार का कल्याण होता है। श्राद्ध महिमा में कहा गया है-
'आयु: पूजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्ष सुखानि च। प्रयच्छति तथा राज्यं पितर: श्राद्ध तर्पिता।।'
अर्थात - जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, संतान, धन, स्वर्ग, राज्य मोक्ष व अन्य सौभाग्य प्रदान करते हैं। हमारी संस्कृति में माता-पिता व गुरु को विशेष श्रद्धा व आदर दिया जाता है, उन्हें देवतुल्य माना जाता है। 'पितरं प्रीतिमापन्ने प्रियन्ते सर्वदेवता:' - अर्थात पितरों के प्रसन्न होने पर सारे ही देवता प्रसन्न हो जाते हैं।
२१ सितम्बर २०२१
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