Sunday, 21 September 2025

हरिःद्वार की यात्रा चल रही है। हरिःद्वार (कूटस्थ) और उसका मार्ग (सुषुम्ना में ब्रह्मनाड़ी) स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।

 

हरिःद्वार की यात्रा चल रही है। हरिःद्वार (कूटस्थ) और उसका मार्ग (सुषुम्ना में ब्रह्मनाड़ी) स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। हरिःद्वार के मार्ग का पक्का पता चलते ही घड़ी में समय देखना बंद कर देना चाहिए। सिर्फ श्रीहरिः की ओर ही देखो, घड़ी की ओर नहीं। श्रीहरिः की ओर देखते देखते, उसी की चेतना में चलते रहो, चलते रहो, और चलते रहो। अचानक ही एक दिन पाओगे कि हरिःद्वार तो बहुत पीछे छूट गया है, और हम श्रीहरिः के मध्य उनकी गोद में हैं। श्रीहरिः के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है।
दिन का आरंभ और समापन, हृदय के सम्पूर्ण प्रेम से हो। जीवन का हर क्षण उन्हें समर्पित हो।
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आध्यात्म में जो हमारे स्वभाव के अनुकूल है वही ठीक है। जो बात समझ में आये, उसे स्वीकार करें, जो समझ में न आये उसे छोड़ दें। समय नष्ट न करें, आगे बढ़ते रहें। किसी भी तरह की उलझन में न पड़ें। सारा मार्गदर्शन भगवान से प्राप्त होगा। किसी भी बात के लिए रुकें मत।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ सितंबर २०२३

1 comment:

  1. इस समय मैं जिस बिंदु पर हूँ, वहाँ सब कुछ अवर्णनीय है। शिखर कै उस पार क्या है? यह देखने के लिये आप स्वयं को शिखर पर चढ़ना पड़ेगा।

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