Monday, 31 March 2025

अपनी मौत के कुछ दिनों बाद हर इंसान को वापस आ कर यह बताने का अवसर मिले कि मरने के बाद उसका कैसा अनुभव रहा?

 अपनी मौत के कुछ दिनों बाद हर इंसान को वापस आ कर यह बताने का अवसर मिले कि मरने के बाद उसका कैसा अनुभव रहा?

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जीवन में मेरी अनेक पादरियों से बातचीत हुई है। लगभग सभी ने एक बात कही है कि यदि तुम जीसस क्राइस्ट पर विश्वास नहीं करोगे तो अनंत काल तक नर्क की अग्नि में जलाये जाओगे। ऐसे ही मुसलमान मित्रों ने फरमाया है कि जो हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान नहीं लायेंगे, वे सब दोज़ख की आग में तड़फाए जाएंगे।
पता नहीं वास्तविकता क्या है?
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यदि ऊपर वाला सर्व शक्तिशाली है तो उसने जन्म से ही दिमाग में अपना संदेश डालकर क्यों नहीं भेजा? उसने काफिरों को जन्म ही क्यों दिया? जन्नत या दोज़ख किसने देखी है? आज तक कोई वहाँ से बापस नहीं आया है। पता नहीं वहाँ ७२ हूरें मिलेंगी या यमदूतों के डंडे।
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डरा-धमका कर या प्रलोभन देकर ही सारी बातें क्यों मनवाई जाती हैं? कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अपनी मौत के कुछ दिनों बाद हर इंसान को वापस आ कर यह बताने का अवसर मिले कि मरने के बाद उसका कैसा अनुभव रहा?
१ अप्रेल २०२३

सिर्फ राजयोग ही पर्याप्त नहीं है, साधना में सफलता के लिए हठयोग और तंत्र का ज्ञान भी आवश्यक है।

 भगवान के और हमारे मध्य एक परम प्रेममयी सत्ता अवश्य है, जिसे हम जगन्माता या भगवती कहते हैं। इस विषय पर मैंने अपनी अति सीमित व अति अल्प बौद्धिक क्षमतानुसार बहुत अधिक चिंतन-मनन किया है।

सिद्धान्त रूप से इस विषय पर मेरे कुछ संशय थे। मेरे एक परम विद्वान तपस्वी सन्यासी मित्र ने मुझे अपने सिद्ध गुरु महाराज से परिचय करवा कर उनसे अनेक सत्संग करवाये, और यह सुनिश्चित किया कि मेरे सारे संशय दूर हों।
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अब कोई संशय नहीं है, लेकिन अनेक जन्मों से जमा हुआ मैल, इतनी आसानी से नहीं छूटता। अपने पूर्व जन्मों के व इस जन्म में जमा हुए मैल से छुटकारा पाना इतना आसान नहीं है। फिर भी एक ईश्वरीय शक्ति सहायता कर रही है, जिन्हें हम जगन्माता कहते हैं। वे भगवती अपने किसी भी सौम्य या उग्र रूप में स्वयं को व्यक्त कर सकती हैं। मेरे लिए उनके सारे रूप सौम्य ही हैं, उनके किसी भी रूप में कोई उग्रता नहीं है।
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सिर्फ राजयोग ही पर्याप्त नहीं है, साधना में सफलता के लिए हठयोग और तंत्र का ज्ञान भी आवश्यक है। भूख और नींद पर विजय पाना भी एक चुनौती है। पर्याप्त शारीरिक व मानसिक क्षमता, संकल्प शक्ति, लगन, और पराभक्ति का होना भी आवश्यक है। बिना भक्ति के तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते।
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भगवान की अनन्य पराभक्ति हमारा स्वभाव हो, और सभी के हृदयों में जागृत हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१ अप्रेल २०२४