भगवान के और हमारे मध्य एक परम प्रेममयी सत्ता अवश्य है, जिसे हम जगन्माता या भगवती कहते हैं। इस विषय पर मैंने अपनी अति सीमित व अति अल्प बौद्धिक क्षमतानुसार बहुत अधिक चिंतन-मनन किया है।
सिद्धान्त रूप से इस विषय पर मेरे कुछ संशय थे। मेरे एक परम विद्वान तपस्वी सन्यासी मित्र ने मुझे अपने सिद्ध गुरु महाराज से परिचय करवा कर उनसे अनेक सत्संग करवाये, और यह सुनिश्चित किया कि मेरे सारे संशय दूर हों।
.
अब कोई संशय नहीं है, लेकिन अनेक जन्मों से जमा हुआ मैल, इतनी आसानी से नहीं छूटता। अपने पूर्व जन्मों के व इस जन्म में जमा हुए मैल से छुटकारा पाना इतना आसान नहीं है। फिर भी एक ईश्वरीय शक्ति सहायता कर रही है, जिन्हें हम जगन्माता कहते हैं। वे भगवती अपने किसी भी सौम्य या उग्र रूप में स्वयं को व्यक्त कर सकती हैं। मेरे लिए उनके सारे रूप सौम्य ही हैं, उनके किसी भी रूप में कोई उग्रता नहीं है।
.
सिर्फ राजयोग ही पर्याप्त नहीं है, साधना में सफलता के लिए हठयोग और तंत्र का ज्ञान भी आवश्यक है। भूख और नींद पर विजय पाना भी एक चुनौती है। पर्याप्त शारीरिक व मानसिक क्षमता, संकल्प शक्ति, लगन, और पराभक्ति का होना भी आवश्यक है। बिना भक्ति के तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते।
.
भगवान की अनन्य पराभक्ति हमारा स्वभाव हो, और सभी के हृदयों में जागृत हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१ अप्रेल २०२४
No comments:
Post a Comment